मुर्सी को सजा पर अंतरराष्ट्रीय चिंता
२२ अप्रैल २०१५मुस्लिम ब्रदरहुड के नेता मुहम्मद मुर्सी को मिस्र की अदालत ने 20 साल कैद की सजा सुनाई है. मुर्सी पर आरोप था कि मिस्र के राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने मुस्लिम ब्रदरहुड का समर्थन किया और उसकी मदद से विपक्षी प्रदर्शनकारियों की हत्या करवाई. मुर्सी के साथ उनके 12 समर्थकों को भी सजा सुनाई गई. इनमें से कुछ के वकीलों का कहना है कि वे फैसले के खिलाफ अपील करेंगे. अदालती कार्रवाई का प्रसारण राष्ट्रीय टीवी चैनल पर किया गया. इन लोगों पर 2012 के सरकार विरोधी प्रदर्शनों के दौरान विरोधियों के अपहरण, हिंसा और हत्या के आरोप थे. इन्हें हत्या के आरोपों से बरी कर दिया गया जिसमें मौत की सजा मिलती है.
जून 2012 में मुहम्मद मुर्सी के नेतृत्व में मुस्लिम ब्रदरहुड की सरकार बनी थी. इसके बाद मुर्सी ने सेना के शीर्ष अधिकारी भी बदल दिए. नवंबर 2012 में मुर्सी ने कानून बदलकर राष्ट्रपति को अथाह अधिकार देने का फैसला किया. इसके बाद ही सरकार विरोधी प्रदर्शन शुरू हो गए. अदालत के इस कानून को असंवैधानिक करार देने पर जून 2013 में मिस्र की सेना ने मुर्सी को हिरासत में ले लिया. मिस्र की सत्ता फिर से सेना के हाथ में आ गई. मुर्सी के रक्षा मंत्री और सेना प्रमुख रह चुके अब्देल फतह अल सिसी राष्ट्रपति बने. मुर्सी समेत मुस्लिम ब्रदरहुड के नेताओं पर मुकदमे चलाए गए.
चिंता के स्वर
तुर्की के विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा है, "पूर्व राष्ट्रति मुर्सी के बारे में अदालत का फैसला मिस्र में लोकतंत्र के भविष्य पर चिंता पैदा करता है." अमेरिका ने इस फैसले पर चिंता जताई है लेकिन ऐसे कोई संकेत नहीं दिए कि इससे अमेरिका और मिस्र के कूटनीतिक संबंधों पर कोई असर पड़ेगा. व्हाइट हाउस के प्रवक्ता जॉश अर्नेस्ट ने कहा, "दूसरे अभियुक्तों की तरह मुर्सी को भी मुकदमे में मूल न्यायिक अधिकार मिलने चाहिए." उन्होंने कहा कि संयुक्त राज्य अमेरिका राजनीतिक गिरफ्तारियों और नजरबंदी का विरोध करता है. मानवाधिकार संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल ने अदालत के फैसले को "कानून का मजाक उड़ाने वाला" बताया. एमनेस्टी इंटरनेशनल के मुताबिक इस फैसले के साथ मिस्र में स्वतंत्रता या आपराधिक न्यायतंत्र में निष्पक्षता के बारे में जितने भी भ्रम थे ढह गए.
2011 में अरब वसंत के दौरान मिस्र में बड़े पैमाने पर सरकार विरोधी प्रदर्शन हुए. तत्कालीन राष्ट्रपति होस्नी मुबारक ने पहले बल प्रयोग कर उनपर काबू पाने की कोशिश की लेकिन हालात बिगड़ते चले गए. आखिरकार फरवरी 2011 में तीन दशक से मिस्र की सत्ता पर बैठे होस्नी मुबारक को राष्ट्रपति पद छो़ड़ना पड़ा. तब से देश में राजनीतिक अस्थिरता बनी हुई है. इसके बाद ही मुर्सी स्वतंत्र रूप से चुने गए पहले राष्ट्रपति बने. लेकिन 2012 में हुई उथल पुथल का असर अब तक जारी है. मुर्सी के तख्तापलट के बाद अल सिसी ने ब्रदरहुड को आतंकी तंत्र कहते हुए दबाने की कोशिश की. उनके मुताबिक मुस्लिम ब्रदरहुड मुस्लिम और पश्चिमी विश्व के लिए बड़ा खतरा है. मुर्सी के समर्थक मुस्लिम ब्रदरहुड के सैकड़ों लोगों को अब तक मौत की सजा सुनाई जा चुकी है.
एसएफ/एमजे (रॉयटर्स/एएफपी)