मुफ़्त और अनिवार्य शिक्षा विधेयक संसद में पास
५ अगस्त २००९इस विधेयक के पास होने से बच्चों को मुफ़्त और अनिवार्य शिक्षा का मौलिक अधिकार मिल गया है. विकलांग बच्चों के लिए मुफ़्त शिक्षा के लिए उम्र बढ़ाकर 18 साल रखी गई है. यूपीए सरकार बनने के बाद पहले 100 दिनों के लिए निर्धारित लक्ष्यों में यह प्रमुख योजना थी. राज्यसभा में यह बिल पहले ही पारित हो चुका था और मंगलवार को लोकसभा में भी इसे पास कर दिया गया.
राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल के हस्ताक्षर के बाद यह क़ानून का रूप ले लेगा और बच्चों को मुफ़्त शिक्षा मुहैया कराना राज्य और केंद्र सरकार की ज़िम्मेदारी होगी. मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने इस विधेयक को देश में एक नए युग की शुरूआत बताया है और कहा है कि इससे 21वीं सदी की चुनौतियों का सामना करने में मदद मिलेगी.
कपिल सिब्बल ने कहा कि यह विधेयक एक ऐतिहासिक अवसर है जिसके ज़रिए बच्चों के भविष्य को सुधारने में मदद मिलेगी और ऐसा पिछले 62 सालों में नहीं हुआ है.
इस विधेयक में दस अहम लक्ष्यों को पूरा करने की बात कही गई है. इसमें मुफ़्त और अनिवार्य शिक्षा उपलब्ध कराने, शिक्षा मुहैया कराने का दायित्व राज्य सरकार पर होने, स्कूल पाठ्यक्रम देश के संविधान की दिशानिर्देशों के अनुरूप और सामाजिक ज़िम्मेदारी पर केंद्रित होने और एडमिशन प्रक्रिया में लालफ़ीताशाही कम करना शामिल है.
एडमिशन के समय कई स्कूल केपिटेशन फ़ीस की मांग करते हैं और बच्चों और माता-पिता को इंटरव्यू की प्रक्रिया से गुज़रना पड़ता है. एडमिशन की इस प्रक्रिया को बदलने का वादा भी इस विधेयक में किया गया है. कपिल सिब्बल के अनुसार स्कूलों में आरक्षण लागू करने की ज़िम्मेदारी राज्य सरकारों की होगी. मुफ़्त और अनिवार्य शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए वित्तीय संसाधनों की व्यवस्था पर सिब्बल ने कहा कि वित्त आयोग से चर्चा के बाद इसका स्वरूप तय होगा.
विधेयक राज्यसभा में पहले ही पारित हो चुका था और लोकसभा ने इसे बहस के बाद मंगलवार को पारित कर दिया. हालांकि सामाजिक कार्यकर्ता और कुछ सांसदों ने इस विधेयक पर सवाल उठाए हैं और पूछा है कि सरकार सिर्फ़ 6 साल से 14 साल के बच्चों की ही ज़िम्मेदारी क्यों ले रही है.
रिपोर्ट: एजेंसियां/एस गौड़