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मुजफ्फरनगर की हिंसा आस पास फैली

९ सितम्बर २०१३

मुजफ्फरनगर जिले की सांप्रदायिक हिंसा में मरने वालों की संख्या 31 हो गई है. इलाके में तनाव है और सुरक्षाकर्मियों को दंगाइयों को देखते ही गोली मारने के आदेश दे दिए गए हैं.

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तस्वीर: Reuters

मुजफ्फरनगर के कवाल गांव में तीन युवकों की हत्या के बाद पैदा हुए विवाद ने सांप्रदायिक हिंसा का रूप ले लिया. पुलिस ने सोमवार तक 90 लोगों को गिरफ्तार कर लिया. लेकिन इस बीच हिंसा पास के शामली और मेरठ जिलों में भी फैल गई. उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ सरकारी अधिकारी कमल सक्सेना ने बताया कि दंगाइयों को देखते ही गोली मार देने के आदेश जारी कर दिए गए हैं.

उत्तर प्रदेश पुलिस उप महानिदेशक अरुण कुमार ने बताया, "हम हाई अलर्ट पर हैं. मुजफ्फरनगर के कुछ इलाकों में कर्फ्यू जारी रहेगा. सेना के जवान प्रभावित गांवों में गश्त कर रहे हैं."

सोशल मीडिया पर सवाल

हिंसा बढ़ने में सोशल मीडिया पर जारी एक फर्जी वीडियो की भूमिका मानी जा रही है. पुलिस ने बार बार अपील की है कि लोग इस वीडियो पर भरोसा न करें. अधिकारियों ने इलाके में अखबार और टीवी चैनल पर रोक लगा दी है लेकिन सोशल मीडिया और मोबाइल सेवा से परेशानी बढ़ी है. राज्य पुलिस अधिकारी आशीष गुप्ता ने बताया कि सोशल मीडिया और मोबाइल के जरिए वीडियो शेयर होने से पुलिस को हिंसा पर काबू पाने में दिक्कत आ रही है.

Indien Armee Gewalt in Uttar Pradesh 07.09.2013
तस्वीर: picture alliance/AP Photo

कैसे भड़की हिंसा

अरुण कुमार ने बताया कि 27 अगस्त को पंचायत में हुई बहस के बाद मामले ने तूल पकड़ा. तीन युवकों की हत्या के बाद आसपास के इलाकों में सभी स्कूल, कॉलेज और दुकानें बंद हैं.

कई जगहों से लोग घर बार छोड़ कर भाग गए हैं. कुतबा गांव के ऐसे ही एक परिवार का कहना है कि उन्हें रास्ते में पकड़ कर दंगाइयों ने लोहे की छड़ों और लाठियों से पीटा. इस परिवार के 24 साल के सदस्य को इतनी चोट लगी है कि पूरा शरीर खून से लथपथ है. वह अपने परिवार के साथ अस्पताल पहुंचा. उसका कहना है, "गांव में हालात बहुत खराब हैं इसीलिए मैं अपने परिवार को सुरक्षित जगह पहुंचाने की कोशिश कर रहा था."

मुजफ्फरनगर के एक अस्पताल में भर्ती 26 साल के किसान ने बताया कि उस रात जब वह बैठक से वापस आ रहे थे, तो पुरवलियां गांव में उन पर हमला हुआ. तलवारों और लाठियों से लैस उपद्रवियों ने उनके ट्रैक्टर को घेर लिया और मारपीट की. उन्होंने बताया, "अगली सुबह जब तक पुलिस नहीं पहुंची, हम खेतों में ही छिपे रहे." स्थिति इतनी गंभीर है कि अस्पताल में अलग अलग समुदाय के घायलों को अलग अलग कमरों में रखा गया है.

राजनीतिक उथल पुथल

उत्तर प्रदेश की हिंसा ऐसे वक्त में हुई है, जब भारत में अगले साल आम चुनाव होने वाले हैं. केंद्र सरकार का कहना है कि राज्य सरकार को इस बारे में आगाह किया गया था. केंद्रीय गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे के मुताबिक भारत में इस साल धार्मिक असहिष्णुता बढ़ी है. उन्होंने बताया कि 2012 में सांप्रदायिक झड़पों के कुल 410 मामले सामने आए, जबकि इस साल अभी तक 451 मामले सामने आ चुके हैं.

इस बीच प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से फोन पर बात की और हिंसा को लेकर चिंता प्रकट की. हालांकि अखिलेश यादव इसमें विपक्षी पार्टी बीजेपी को घेरते हैं, "दो लोगों के बीच हुए मामूली विवाद को बीजेपी नेताओं ने हवा दे दी. उनके पास आम चुनाव से पहले हिन्दू वोट के अलावा और है भी क्या."

उधर, विपक्ष ने समाजवादी पार्टी पर हिंसा रोकने में विफल होने का आरोप लगाया है. बहुजन समाज पार्टी ने अखिलेश यादव की जमकर निंदा की राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने की मांग की है.

राज्य पुलिस ने भड़काऊ भाषण देने के आरोप में छह नेताओं के खिलाफ केस दायर किया है. इनमें से तीन बीजेपी के हैं, जबकि एक कांग्रेस का. भारतीय मीडिया में कुछ रिपोर्टों के मुताबिक शनिवार को भाषण के बाद कुछ लोगों ने इनकी गाड़ी पर हमला किया.

एसएफ/एजेए (एपी/रॉयटर्स)