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समाज

मुंबई: बारिश से मुहाल, किसी को नहीं ख्याल

७ सितम्बर २०१७

किस्से-कहानियों और फिल्मों ने मुंबई की बारिश को बेहद ही हसीन बना दिया है लेकिन असलियत में इसे महसूस करने वाले लोग कुछ अलग ही परेशानी बयां करते हैं. इस परेशानी में सरकार से इन्हें कोई मदद नहीं मिलती.

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Mumbai Monsun Überflutete Straßen
तस्वीर: picture-alliance/AA/I.Shaikh

मुंबई में रहने वाली 60 वर्षीय सुरेखा चिपलुंकर के घर में जब इस बार भी बारिश का पानी घुसने लगा तो उन्हें कोई हैरानी नहीं हुई क्योंकि वह जानती थीं कि इस स्थिति में उन्हें क्या करना होगा. मध्य मुंबई के छोटे से अपार्टमेंट में निचले तल पर अपने परिवार के साथ रहने वाली सुरेखा का घर शहर के उन हजारों घरों में से एक है जो मुंबई में पड़ने वाली बारिश(जून-सितंबर) से सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं. सुरेखा बताती हैं कि वे अपना सारा सामान लेकर ऊपर कि मंजिलों पर रहने वाले पड़ोसियों के घर में चली जाती हैं. इस साल भी मंजर नया नहीं था क्योंकि यह दिक्कत और परेशानी उनके सामने हर साल की है लेकिन कुछ नहीं आती तो वह है मदद. इनके पास सरकार की मदद का कोई भरोसा नहीं है.

ऐसा नहीं है कि बारिश का कहर सिर्फ मुंबई पर ही टूटा है, इस साल तो अमेरिका के टेक्सास प्रांत में आई बाढ़ ने अमेरिकी लोगों को भी परेशान कर दिया. अमेरिका के चौथे सबसे बड़े शहर ह्यूस्टन में आये भयंकर तूफान हार्वे ने भी लोगों को अपना घर छोड़ने के लिये मजबूर कर दिया. लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने इन प्रभावित इलाकों का दो बार दौरा दिया और लोगों को भरोसा दिलाया कि सरकार उनकी हर संभव मदद करेगी.

Mumbai Monsun Überflutete Straßen
तस्वीर: picture-alliance/AA/I.Shaikh

जब अमेरिका इस परेशानी से जूझ रहा था उसी समय मुंबई में भी बारिश अपने जोरों पर थी. यहां करीब 2 करोड़ लोग इससे प्रभावित हुये और 10 लोगों की जान भी चली गई. लेकिन देश की आर्थिक राजधानी की हालत देखने न तो प्रधानमंत्री पहुंचे, न कोई झुग्गी-झोपड़ी में रहने वालों की मदद करने के लिये सामने आया. सरकार से न किसी को मदद का आश्वासन मिला और न ही संकट से निपटने के लिये कोई वादा किया गया. लेकिन कुछ एनजीओ ने इन लोगों की मदद जरूर की.

BdT Monsunregen in Indien
तस्वीर: AP

सुरेखा कहती हैं, "सरकार की तरफ से कोई ये देखने भी नहीं आया कि बारिश में फंसे लोग जिंदा भी है या नहीं". मुंबई की 50 फीसदी से भी अधिक आबादी झुग्गियों में रहती है जो हर साल मानसून से बचने के हर संभव प्रयास करते हैं. सुरेखा के पड़ोसी आदित्य जाधव कहते हैं "हर मानसून में हम सामान पैक करते हैं और बाल्टियों को तैयार रखते हैं." लेकिन इस बार बारिश की रफ्तार इतनी अधिक थी कि तैयारियां धरी की धरी रह गईं और इन परिवारों को आर्थिक रूप से बहुत नुकसान हुआ.          

कार्यकर्ताओं का दावा है कि पिछले कुछ सालों से शहर में अंधाधुंध निर्माण कार्यों ने बाढ़ की आशंकाओं को बढ़ा दिया है. एक अनुमान के मुताबिक पिछले एक दशक के दौरान मुंबई का मैंग्रोव क्षेत्र लगभग 40 फीसदी घटा है. इसने भी प्रकृति को नुकसान पहुंचाया है और बारिश की आशंकाओं में इजाफा किया है. सुरेखा और जाधव जैसे तमाम लोग कुछ समय के लिये तो बारिश से बचाव कर लेते हैं लेकिन उनके लिये वापस अपने घर और सामान्य जीवन में लौटना आसान नहीं है. सुरेखा ने बताया "गंदगी के चलते बहुत से लोग बीमार हो जाते हैं, जमा पानी गंदा होता है और उसमें मरे हुये चूहे नजर आने लगते हैं. बच्चे अलग बीमार हो जाते हैं. लेकिन उनकी मदद करने वाला कोई नहीं है." 

एए/एनआर(एएफपी)