मीठे ड्रिंक्स पर ज्यादा टैक्स लगाने की अपील
१२ अक्टूबर २०१६विश्व स्वास्थ्य संगठन के डिपार्टमेंट ऑफ द प्रिवेंशन ऑफ नॉनकम्युनिकेबल डिजीजेज के निदेशक डॉक्टर डगलस बेचर ने यह अपील की है. डॉक्टर बेचर ने कहा, "अगर सरकारें शुगर वाले ड्रिंक्स पर टैक्स लगाती हैं तो इससे मुश्किलें कम होंगी और कई जानें बचेंगी. वे स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च होने वाली रकम को घटा भी पाएंगी."
अमीर देशों में कई दशकों से मोटापा एक बड़ी समस्या बना हुआ है. अब भारत, चीन और मेक्सिको जैसे देशों में भी मोटापा और उसकी वजह से होने वाली बीमारियां बढ़ रही हैं. एक अनुमान के मुताबिक दुनिया भर में पांच साल से छोटे 4.2 करोड़ बच्चे मोटापे के शिकार हैं. इनमें से 48 फीसदी एशिया में रहते हैं और 25 फीसदी अफ्रीका में. सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़े अधिकारी इससे निपटने के कई तरीके सुझा रहे हैं.
एक तरीका है कोला, सोडा, एनर्जी, आइस्ड और फ्रूट ड्रिंक्स पर ज्यादा टैक्स लगाना. कोला, जूस, आईस टी या एनर्जी ड्रिंक्स के नाम पर बिक रहे मीठे पेय पदार्थ शरीर में जरूरत से ज्यादा कैलोरी देते हैं. इन ड्रिंक्स का मोटापे, डायबिटीज और दांतों की बीमारी से सीधा संबंध है. टैक्स की वकालत करने वालों की दलील है कि अगर मीठे ड्रिंक्स की खपत कम हुई तो कम लोग बीमार होंगे.
यही वजह है कि मंगलवार को विश्व स्वास्थ्य संगठन के जेनेवा स्थित मुख्यालय ने इस बारे में बेहद स्पष्ट अपील की. संगठन के मुताबिक बेहद विस्तृत अध्ययन करने के बाद यह अपील की गई है. विशेषज्ञों का तर्क है कि मीठे ड्रिंक्स पर लगाए जाने वाले टैक्स से जो आय होगी, उससे ताजा फलों और सब्जियों के दाम में रियायत दी जा सकती है. अगर फलों और सब्जियों के दाम में 10 से 30 फीसदी रियायत दी गई तो खपत बढ़ेगी. सब्सिडी के चलते किसानों को भी नुकसान नहीं होगा और लोगों को भी सेहतमंद खाना मिलेगा.
ऐसे टैक्स का असर मेक्सिको में देखा जा चुका है. 2013 में मेक्सिको ने मीठे ड्रिंक्स पर शुगरी टैक्स लगाया, इसके चलते खपत में अच्छी खासी गिरावट देखी गई. हंगरी में भी चीनी, नमक और कैफीन वाले पैकेज्ड फूड पर ऐसा टैक्स है.
(देखिये किन खाद्य पदार्थों में कितनी चीनी होती है)