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मिलियन डॉलर कचरा

९ सितम्बर २०१०

भारत के गांवों शहरों की गलियों में घूमने वाले रद्दी ख़रीदते लोग सभी को याद होंगे. कबाड़िये का धंधा कोई खेल नहीं है. ये आजकल ग्लोबल बिजनेस हो गया है. इलेक्ट्रो कचरे की तो बात ही और है. इसके जितना कीमती कचरा और कोई नहीं

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तस्वीर: AP

जर्मनी में नगर पालिकाएं और कंपनियां आपस में लड़ रही हैं कि कौन कचरा बेचेगा. मोबाइल से पड़ रहा है खोना बहुत सारा सोना. यूरोप में कचरा रिसाइकलिंग करने वाली सबसे बड़ी कंपनी रेमोंडिस के प्रेस प्रवक्ता मिशाएल श्नाइडर की बात से पता लग सकता है, "हर मोबाइल फोन में औसतन 23 मिलीग्राम सोना होता है. दुनिया भर में हर साल करीब एक दशमलव तीन अरब मोबाइल फोन बनते हैं और इन सारे में से सिर्फ 10 फीसदी मोबाइल रिसाइकलिंग के लिए आते हैं. इसका मतलब है कि हर साल कम से कम बीस बाईस टन सोना इन्सान कचरे में फेंक देता है."

Indien Neu-Delhi Müllkipppe
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बढ़ता कचरा

सोना तो हम जानते हैं लेकिन ऐसी भी कई धातुएं हैं जो दुनिया में बहुत कम हैं और तेजी से खत्म हो रहीं हैं. उदाहरण के लिए इंडियम. टच स्क्रीन बनाने के लिए इंडियम सबसे अहम पदार्थ है. लेकिन जानकार कहते हैं कि ज्यादा से ज्यादा अगले दस साल में इंडियम दुनिया से खत्म हो जाएगा. अब जब टच स्क्रीन के टीवी, मोबाइल, कंप्यूटर सब कुछ बाज़ार में हैं तो आप सोच सकते हैं कि इस पदार्थ की कितनी जरूरत है. दुनिया की जनसंख्या बढ़ रही है और साथ ही कचरा भी और कचरे का व्यापार भी. जर्मनी के रिसाइकलिंग संगठन के योर्ग लाखर कहते हैं, "खनिज खत्म होने वाले पदार्थ हैं. ये खनिज पदार्थों की बढ़ती कीमत से भी समझ में आता है. कीमत बढ़ने का कारण मांग में बढ़ोतरी है. इस मांग के बढ़ने का कारण विकासशील देशों में तेज़ी से हो रहा विकास है. इस कारण रिसाइकलिंग से बनने वाले उत्पादों की मांग धीरे धीरे बढ़ेगी."

कचरे का धंधा

जर्मनी में भी कचरे का धंधा एक बड़ा मामला हो गया है. पानी, प्लास्टिक, कांच, धातुएं सभी की रिसाइकलिंग यहां होती है. शुरू में जब जर्मनी ने कचरा अलग अलग करने के लिए अलग अलग रंग की थैलियां बनाई तो उसकी हंसी उड़ाई गई थी लेकिन अब धीरे धीरे पूरे यूरोप में इसका इस्तमाल किया जा रहा है. प्लास्टिक की थैलियों के लिए पीली थैली, तो बाग़ीचे के कचरे और सब्जी वगैरा के लिए ग्रीन डब्बा. अलग अलग कचरे के लिए डब्बा तय कर दिया गया है. इसमें से इलेक्ट्रो कचरा सबसे कीमती है. श्नाइडर बताते हैं, "यहां पर अलग अलग उत्पाद हैं. वेक्यूम क्लीनर, कंप्यूटर, की बोर्ड, प्लास्टिक और महंगी धातुओं वाले उत्पाद भी हैं. इन सबको एक मशीन में डाला जाता हैं जहां सभी पदार्थ एक दूसरे से अलग हो जाते हैं. इससे फिर कॉपर यानी तांबा, धातु और अधातु अलग अलग हो जाती हैं."

Müllkippe Meer
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सब कुछ रिसाइकल

रेमोन्डिस यूरोप की सबसे बड़ी कंपनी है जो रिसाइकलिंग के क्षेत्र में है. "लिपनवर्क का ये रिसाइकलिंग कारखाना यूरोप का सबसे बड़ा और आधुनिक है. इससे पर्यावरण को फायदा है. विकासशील देशों को ग़ैर कानूनी तरीके से निर्यात होने वाले इलेक्ट्रो कचरे को यहीं रिसाइकल किया जा सकता है क्योंकि हमें इसकी ज़रूरत है."

जानकारों का मानना है कि अगले बीस साल में कुछ धातुओं की मांग तिगुनी हो जाएगी. लीथियम, इंडियम, जर्मेनियम की मांग बढ़ जाएगी क्योंकि हाई टेक तकनीक के लिए इनकी जरूरत है. दूसरा कचरे की रिसाइकलिंग से पर्यावरण को भी नुकसान कम होगा.

"यहां बायोडीजल बनाया जाता है. प्लास्टिक यहां रिसाइकल होता है. इसके अलावा एक और कारखाना है जहां पुरानी लकड़ियां जलाई जाती हैं. इससे हमें और ल्यूनन शहर को बिजली मिलती है. ये लड़कियां इस तरह से जलाई जाती हैं कि कार्बन डाइ ऑक्साइड के जैसी ज़हरीली गैसों का उत्सर्जन नहीं होता है."

जिस तरह से हमें धातुओं और कच्चे तेल की जरूरत है उसके आधार पर जानकारों का कहना है कि तांबा तीस साल में खत्म हो जाएगा तो कच्चा तेल अगले 60-70 साल में खत्म हो जाने की आशंका है

तो कबाड़ी और कचरे की रिसाइकलिंग के काम में पैसा ही पैसा है. चूंकी एशिया और अफ्रीका विकास की दौड़ में तेज़ी से भाग रहे हैं तो प्राकृतिक संसाधनों के जरिए उनकी और बाकी दुनिया की जरूरते तो पूरी की नहीं जा सकती हैं इसलिए इस तरह की रिसाइकलिंग का भविष्य उज्जवल है.

रिपोर्टः डॉयचे वेले/आभा एम

संपादनः ए जमाल

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