मिरो: कैनवास का कवि
साहित्य हो या कला, खोआन मिरो (1893-1983) से इन्हें अलग नहीं किया जा सकता. स्पेन के मिरो 20वीं शताब्दी के सबसे अहम पेंटरों में गिने जाते हैं. हैम्बर्ग में लगी एक प्रदर्शन मिरो के साहित्य प्रेम को भी दर्शाती है.
किताबी शुरुआत
खोआन मिरो का जन्म 1893 में बार्सिलोना के पास एक छोटे से गांव में हुआ. 1920 के दशक में वो पेरिस चले गए, जहां उनकी मुलाकात पाब्लो पिकासो, अतियथार्थवादी माक्स एंर्स्ट, आंद्रे मासॉन, कवि माक्स याकोब और पियर रिवेर्डी से हुई. उस वक्त उन्होंने ये पेटिंग "हॉर्स, पाइप एंड रेड फ्लावर" बनाई.
ग्लव एंड न्यूजपेपर
1921 में पेरिस में मिरो की पहली एक्सलूसिव एक्जीबिशन हुई, हालांकि वह बहुत सफल नहीं रही. इसके बावजूद स्पेनिश कलाकार पेंटिंग करते रहे. उनके कला में अक्षरों की भूमिका बढ़ने लगी. इसी को दर्शाती उनकी पेंटिंग "ग्लव एंड न्यूजपेपर."
डाडा और अतियथार्थवादी
डाडा और अतियथार्थवादीडाडा और अतियथार्थवाद के प्रभाव के चलते मिरो का काम ज्यादा एब्सट्रैक्ट होता चला गया. 1933 में आई इस पेंटिंग का नाम "पेंटिंग" है. आज उनके काम को बहुरंगी और प्रवाह भरा माना जाता है. समय के साथ उनका नजरिया बदलता चला गया.
कला का कत्ल
1930 के दशक में मिरो की "एसेसिनेट" पेंटिंग आई. तब तक पेंटिंग का मतलब पारंपरिक चित्रण ही था. मिरो ने इस धारणा को नकार दिया. उन्होंने कला में वैकल्पिक चीजों का विकास किया, जैसे 1924 की इस तस्वीर "रिदमिकल फिगर्स" में.
कैनवास पर कविताएं
पूरी जिंदगी, मिरो पेंटिंग और कविताओं में फर्क नहीं कर पाए. वो खुद को एक पेंटिंग करने वाले कवि के तौर पर देखते रहे. उनके काम में शब्द और रंग साथ बसते थे. इस पेंटिंग में कैनवास का आधा हिस्सा शब्दों ने घेरा है.
बातों में छुपी बात
बड़ी आंखों वाली एक युवा लड़की एक पार्क में खड़ी है. उसके पीछे खड़े चार लोग अपने सामने मौजूद कई आकर्षणों को देख रहे हैं. सामने एक चरखा है, बायीं तरफ पानी के निशान. क्या मिरो भी वही सोच रहे थे जो हम सोच रहे हैं. 1950 की लिटिल "फेयर गर्ल इन द पार्क" पेंटिंग के कई मतलब निकाले जा सकते हैं.
फिर पेंटिंग
23 फरवरी 1960 को एक विवाद खड़ा हो गया. इसकी वजह 1937 में बनाई गई मिरो को खुद की तस्वीर थी. जिन्होंने कलाकार के इस काम को अपनी आंखों से देखा वो भड़क गए.
शुद्ध अतियथार्थवाद
अतियथार्थवाद का मकसद मौजूदा दृष्टिकोण को बदलते हुए वास्तविकता के बाहर आना है. इसका मतलब पांरपरिक पेंटिंग तकनीक को बदलना भी है. यही वजह है कि सल्वाडोर डाली जैसे पेंटर इतने सफल हुए. इसकी तुलना में मिरो की पूरी तरह एब्स्ट्रैक्ट पेंटिंग हर तरह के वास्तविकतावाद से परे हैं. इस पेंटिंग का नाम "रेड सर्कल स्टार" है.
रंगों की कविता
साहित्य, कविता, शब्द और छवियों से प्रभावित मिरो अलग तरह से खुद को व्यक्त करते थे. थोड़ा नीला, थोड़ा काला, एक लाल धब्बा और कुछ अक्षर और नतीजा, एक जबरदस्त पेंटिंग कविता. यही कारण है कि इस पेंटिंग का नाम "पोयम" यानी कविता है.
सोच में डुबोते शब्द
शब्दों और कविताओं से सराबोर जिंदगी को मिरो ने आभासी काम की तरफ मोड़ा. हमेशा एक ही तरह नहीं. मिरो की पेंटिंग्स आज भी इस बात की गवाही देती हैं.