माक्स फ्रिश: होमो फाबर
४ जनवरी २०१९कहानी शुरू होती है एक सीधे स्पष्ट आख्यान सेः वाल्टर फाबर यूनेस्को के लिए काम करने वाला एक स्विस इंजीनियर है. वो निरंतर बाहर ही रहता है, किसी न किसी वजह से दुनिया घूमता हुआ. फिर एक बार संयोग से न्यू यार्क से पेरिस की जहाज यात्रा के दौरान वो एलिजाबेथ नाम की एक लड़की से मिलता है, जिससे उसे प्यार हो जाता है.
"हर बार हम जब भी रेस्तरां में जाते, मैं लड़की को देखते हुए ताजगी भरा आनंद महसूस करता था, सलाद को लेकर उसकी प्रसन्नता, बच्चों जैसे मचलते हुए रोल्स को गटकना, और खुद को कौतुहल से निहारना,....”
वाल्टर उसे प्यार से "जाबेथ” बुलाता है क्योंकि उसे एलिजाबेथ कहकर पुकारना बहुत साधारण लगता है. और बदले में जाबेथ, अपने 50 साल के साथी को उसके आखिरी नाम "फाबर” से बुलाती है. वो एक दूसरे को जहाज से यूरोप के लंबे सफर के दौरान जानने लगते हैं. ये एक ऐसी यात्रा थी जो वाल्टर फाबर कभी न करता अगर उसकी सबसे हाल की उड़ान मेक्सिको के रेगिस्तान में आपात लैंडिंग न करती.
समुद्री जहाज पर फाबर अपने पाठक के साथ सोचना शुरू करता हैः "मुझसे करीब 30 साल छोटी ये कमसिन लड़की कौन है?”
त्रासदी के सर्पीले मोड़
मेक्सिको में उनका रुकना होता है, लेकिन ये एक दुर्भाग्यपूर्ण और अप्रत्याशित स्टॉप बनता है जो ऐसी घटनाओं के सिलसिले को हवा देता है कि वाल्टर फाबर की जिंदगी बदल जाती है, और उसका अतीत उसके वर्तमान के सामने आ खड़ा होता है.
क्रैश लैंडिंग के बाद बचाये जाने का इंतजार करते हुए, वाल्टर विमान में सवार अपने एक सहयात्री से मिला था जो उसके एक पुराने दोस्त योआखिम हेन्के का भाई निकलता है. फाबर को जब ये पता चलता है कि योआखिम पास ही ग्वाटेमाला में रहता है और वहां तंबाकू की खेती करता है, वो वक्त निकालकर उससे मिलने का फैसला करता है. लेकिन वहां पहुंचते ही उसे मिलती है अपने दोस्त की निर्जीव देह, योआखिम खुद को फांसी लगा चुका होता है.
आपात लैंडिंग से जीवित बचकर और अपने दोस्त की लाश देखकर, फाबर न्यू यार्क में अपनी तत्कालीन गर्लफ्रेन्ड से रिश्ता तोड़ देने का फैसला करता है. इसके बाद वो फौरन यूरोप की समुद्री यात्रा पर निकल पडता है, इसी यात्रा के दौरान उसकी मुलाकात जाबेथ से होती है. ये प्रेम प्रसंग गाढ़ा होता जाता है, और प्रेम की सघनता में ये जोड़ा फ्रांस से होते हुए इटली और यूनान की सड़क से यात्रा करता है.
उम्र के फर्क के बावजूद, वाल्टर जब भी "लड़की” के इर्दगिर्द होता है तो खुश रहता है. ये खुशी और ये चाहत, फ्रांसीसी शहर अवीन्यों के होटल हेनरी IV में बिताई एक मदहोश रात में तब्दील हो जाती है जहां प्रेमी जोड़ा सेक्स करते हैं. वे एक दूसरे के और करीब आते जाते हैं. वाल्टर कम्पारी (एक तरह की हल्की इतालवी शराब) की चुस्कियां लेता हुआ और उसके साथ अद्भुत सेक्स की रात को याद करता हुआ उसकी कला की चाहत को निहारता रहता है. उसे ये भी पता चलता है कि जाबेथ की मां, हाना एथेन्स में रहती है. उसे फौरन नहीं सूझता कि वो और उसका अब मृत दोस्त योआखिम भी हाना नाम की एक महिला को जानते थे.
आखिरकार, ये पता चलता है कि फाबर जिस लड़की के प्यार में पड़ा है वो कोई और नहीं, उसकी अपनी बेटी है. लेकिन संताप में घिर गये इंजीनियर की त्रासदी और भी थी.
किस्मत या संयोग?
किताब घटनाओं के पुनरावलोकन की शैली में लिखी गई है, फाबेर के नजरिए से जैसे किसी पत्रिका की धारावाहिक प्रविष्टियां हों. ओवरलैप करते कालखंडों और कथानक में आने वाले अक्सर बदलावों के बावजूद कहानी किस दिशा में जाएगी, ये पहले ही स्पष्ट हो जाता है. घटनाओं के निष्पक्ष प्रस्तुतिकरण और गहरे अवलोकन के क्षणों के बीच कहानी खिसकती रहती हैः
"जाबेथ हो सकता है जिंदा हो. मैं इस बात से इंकार नहीं करता कि जो कुछ भी होता चला गया वो संयोग से कुछ ज्यादा था.”
क्या ये भाग्य था या संयोग? अपनी अनुभूत चीजों को वो कैसे समझा सकता है? बाद में परिस्थिति का विश्लेषण करने के लिए फाबर अपने इंजीनियरिंग दिमाग का सहारा लेता है, "मैं दैवी शक्ति या किस्मत में यकीन नहीं करता हूं. प्रौद्योगिकी से जुड़ा होने के नाते मैं संभाव्यता के फॉर्मूले के हिसाब से देखने का आदी हूं.”
दूसरे विश्व युद्ध के साए
स्विट्जरलैंड के लेखक माक्स फ्रिश का लिखा 200 पन्नों का उपन्यास, सबसे पहले जर्मन भाषा में 1957 में प्रकाशित हुआ था. इससे 12 साल पहले ही अधिकांश यूरोप को तबाह कर देने वाला दूसरा विश्व युद्ध खत्म हुआ था. होमो फाबर के आख्यान में युद्ध अदना सा लेकिन निर्णायक रोल निभाता है.
पाठक को ज्ञात होता है कि वाल्टर की पूर्व प्रेमिका 1936 में गर्भवती हो गई थी. हाना अर्ध-यहूदी थी तो वाल्टर उसकी हिफाजत की खातिर उससे शादी की पेशकश करता है. लेकिन जब हाना, वाल्टर को अपने पेट में पल रहे बच्चे को "तुम्हारा बच्चा” कहते हुए सुनती है, तो वो उसे छोड़ देने का फैसला करती है, आश्वस्त करती हुई कि वो गर्भपात करा लेगी.
लेकिन उसके फौरन बाद पता चलता है कि उसके और योआखिम हेन्के के बीच संबंध बन जाते हैं जिसके साथ वो पेरिस और लंदन जाती है और आखिरकार दोनों शादी कर लेते हैं.
जाबेथ ये मानते हुए बड़ी होती है कि योआखिम हेन्के ही उसका असली पिता है. वाल्टर के बारे में उसे कभी पता नहीं चलता.
मनुष्य हालात का पर्यवेक्षण
फाबर के साथ जो घटनाएं हुईं उसमें यूं उसका कोई सीधा रोल नहीं था लेकिन वो फिर भी ताज्जुब करता है कि आखिर उसने ऐसा क्या गलत किया था जो उसे ये सब देखना पड़ा. उसके अवलोकनों को विस्तृत गणनाओं के सहारे अभिव्यक्त किया गया है जो उसे और उसके किरदार को आधुनिक दुनिया के आदमी की तरह पेश करती हैं. एक इंजीनियर जो तारीखों और समयों और अन्य मापों को बारीकी से दर्ज करते रहने की एक तरह की सुनिश्चितता से लगाव रखता है.
लेकिन इनमें से कोई भी उद्देश्यपरक पाठ उसे मानवीय हालात की अतार्किक प्रकृति से बचा नहीं सकता, जिसमें उसका अपना स्वभाव भी शामिल हैः फाबर पहले तो अपनी एक सुखद अनभिज्ञता में ही रहता है जब उसे पता चलता है कि जाबेथ की मां का नाम हाना है. जाबेथ के प्रति उसकी भावनाएं इतनी ज्यादा तीव्र हैं. और इस तरह एक यूनानी आकार की त्रासदी घटित होने लगती है.
वाल्टर फाबर की बदकिस्मती तब और बढ़ने लगती है जब वो करीब करीब निश्चिंत हो जाता है कि उसकी प्रेमिका जाबेथ उसकी अपनी बेटी होगी. यूनान में उनकी यात्रा के खत्म होते होते, जाबेथ को एक सांप काट लेता है. वो जहर से बच जाती है, लेकिन गिरने से लगी चोटों की वजह से दम तोड़ देती है. और माक्स फ्रिश की किताब के शीर्षक के ठीक उलट, फाबर निरुपाय है, वो कुछ भी कर पाने या रोक पाने की स्थिति में नहीं है.
पेशे से फ्रिश एक वास्तुकार थे. उन्होंने अपनी किताब का शीर्षक होमो फाबर, एक यूनानी अवधारणा से लिया था जिसके मुताबिक मनुष्य अपने कर्म और श्रम की बदौलत अपनी किस्मत को नियंत्रित कर सकता है. लेकिन फाबर के मूल्यों और किताब में उसकी जिंदगी की वास्तविकता में अंतर है. प्रौद्योगिकी और मनुष्य का आधुनिक विश्व में एक साथ रहने का सवाल, 1950 के दशक में एक प्रमुख विषय था. और ये थीम उस कालखंड के साहित्य और कला में बार बार प्रकट हुई है. भाग्य और प्रतिकार जैसी अवधारणाएं आधुनिक विश्व में कितनी व्यवहार्य हैं? जाहिरा तौर पर मनुष्यों द्वारा नियंत्रित इस उन्नत विश्व में उनकी जगह कहां है?
मुक्ति की कामना
किताब दो भागों में विभाजित है. पहला भाग "काराकास में जून 21 से जुलाई 8 तक लिखा हुआ” है, जिसमें फाबर की मेक्सिको और ग्वाटेमाला की यात्रा और फिर जाबेथ के साथ यूरोप की यात्रा का ब्यौरा दिया गया है जहां आखिरकार जाबेथ की मौत हो जाती है. आखिर में एक विस्तृत मेडिकल रिपोर्ट दी गई है, ये दिखाते हुए कि उस त्रासदी को टाला जा सकता था.
दूसरा भाग पाठकों को दुनिया के विभिन्न कोनों की दूसरी यात्रा पर ले जाता है, काराकास, न्यू यार्क और क्यूबा, ये वे जगहें थीं जहां माक्स फ्रिश ने खुद भी दौरा किया था. किताब के इसी हिस्से में वाल्टर फाबर एक बड़े बदलाव से गुजरना शुरू करता है. वो महसूस करता है कि वो असल में जिंदगी में एक अटूट जुड़ाव चाहता था, जो वो हाना के साथ अपने फिर से बहाल रिश्ते में दिखाना चाहता थाः "मैं इस जिंदगी से ऐसे जुड़ना चाहता हूं जैसा पहले कभी न जुड़ा था...”
लेकिन त्रासदी फिर अपना सर उठाती है. इस मोड़ पर, फाबर बुरी तरह बीमार है. प्रथम पुरुष में उसकी रिपोर्ट इन शब्दों के साथ खत्म होती हैः "वे आ रहे हैं” – उसे सर्जरी के लिए ले जाया जा रहा होता है जिसमें वो बचेगा नहीं.
आत्मावलोकन वाले किताब के इस हिस्से की, 1991 में आई फोल्कर शोएलेनडॉर्फ की "होमो फाबर” उपन्यास पर आधारित फिल्म में, ज्यादातर अनदेखी कर दी गई थी. फिल्म "वोयेजर” नाम से रिलीज हुई थी. फ्रिश उस समय जीवित थे, और उन्होंने अभिनेताओं सैम शेपार्ड, जूली डेल्पी और बारबरा सुकोवा के लिए संवाद लिखकर फिल्म में मदद की थी. लेकिन फिल्म किताब की तरह जरा भी लोकप्रिय नहीं हो पाई जो 20 शताब्दी की सबसे ज्यादा पढ़ी जाने वाली किताबों में एक रही है.
किताब में वर्णित बहुत पहले पुरानी पड़ चुकी लैंगिक भूमिकाओं के बावजूद, कहानी के केंद्र में जिस संघर्ष को दिखाया गया है वो आज भी कायम हैः दो तरह की मान्यताओं वाले लोगों के बीच का द्वंद्व 21वीं शताब्दी में भी तीव्रता से जारी है. एक वे हैं जो इस बात की वकालत करते हैं कि दुनिया में मनुष्य, प्रौद्योगिकी की मदद से अपनी नियति को नियंत्रित कर सकता है और दूसरे वे हैं जो मानते हैं कि लोग ऐसी शक्तियों के अधीन हैं जो उनके बस से बाहर हैं, चाहे वो भाग्य हो या मिथक.
माक्स फ्रिशः होमो फाबर, पेग्विंन क्लासिक्स, 1957
1911 में ज्युरिख में पैदा हुए माक्स फ्रिश ने शुरुआत में जर्मन साहित्य की शिक्षा ली लेकिन बाद में अपने पिता के पदचिन्हों पर चलते हुए ये पढ़ाई छोड़कर आर्किटेक्ट बन गए. 1942 में उन्होंने वास्तुकला की अपनी कंपनी खोल दी लेकिन लिखना भी जारी रखा. 1954 में उनका उपन्यास, "आईएम नॉट स्टिलर” बड़ा कामयाब हुआ. उसके बाद उन्होंने वास्तुकला छोड़ दी और लेखन पर ही पूरा ध्यान केंद्रित कर दिया. फ्रिश एक उत्साही घुमक्कड़ भी थे, उन्होंने अमेरिका, मेक्सिको, क्यूबा और इटली जैसे देशों की यात्राएं ऐसे समय में कीं जब ऐसी यात्राएं ज्यादा नहीं होती थीं. "आईएम नॉट स्टिलर”, होमो फाबर, और गान्टेनबाइन(1964) समेत उनकी बहुत सी किताबें, जर्मन कक्षाओं में अनिवार्य रूप से पढ़ाई जाती हैं. कई पुरस्कारों से सम्मानित लेखक और नाटककार फ्रिश का 1991 में निधन हो गया.