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मां बाप बच्चों के पहले गुरु

१ मई २०१३

पिछले हफ्ते फेसबुक साप्ताहिक प्रतियोगिता के अंतर्गत हमने आपसे पूछा था कि बच्चों को घर से ही किस तरह महिलाओं का सम्मान करना सिखाया जाए. हमें पाठकों से बहुत दिलचस्प जवाब मिले, जिनमें से तीन विजेताओं का चयन किया गया है.

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For shopping © Deklofenak #25371182 - Fotolia.com Themenbild schrumpfende Mittelschicht in Deutschland . Glückliche Familie beim Einkaufen
तस्वीर: Fotolia/Deklofenak

जानिए विजेताओं के नाम और उन्होंने क्या लिखा है.....

1) कपिल देव अत्री, करनाल - घर में बड़े सदस्यों को चाहिए कि वे घर की बेटियों या बहुओं, पत्नी हो उनके साथ प्यार के साथ पेश आये. बात बात पर उनको यह दिखाने की कोशिश न करे कि वे घर में सिर्फ काम करने के लिए हैं. अगर घर में छोटी छोटी बातों में ऐसा किया जाएगा तो बच्चों के मन में यही जाएगा कि औरत तो सिर्फ हाऊसवाइफ हो सकती है. अपने बच्चों के मन में औरतों के प्रति सम्मान जगाना चहिए. बच्चों को सिखाए कि परिवार की तरह ही समाज की लड़कियां भी उतनी ही सम्माननीय हैं. बच्चों से इस मामले में लगातार बात करनी चहिये. सेक्स एजुकेशन के बारे में भी खुल कर बात करनी चाहिए. टीवी के ऐसे सीरियल घर में नहीं चलने चाहिए जिनमें औरतों पर अत्याचार होते देखाए जा रहे हो. अपने घर का एक साफ वातावरण तैयार करे. बच्चों के दोस्त कैसे हैं वे स्कूल में कैसे माहौल में रहते हैं, उनके साथ खेलने वाले बच्चे कैसे हैं, यह बातें ध्यान देने योग्य हैं.

2) त्रिशला,करनाल - सबसे बड़ी शिक्षा घर से तभी आएगी जब बेटे बेटी को एक जैसा पालापोसा जायेगा. इससे एक दूसरे के प्रति सम्मान की भावना आयेगी. समानता से दिल और दिमाग बदलेंगे. समाज में बच्चो से लेकर सबका महिलाओं के प्रति सम्मान पर दृष्टिकोण भी बदलेगा.

3) सचिन सेठी, करनाल- हर बच्चा पहला सबक घर से सीखता है. हर मां बाप का यह कर्तव्य है कि वे बच्चों को आने वाले समय के अनुसार हर रिश्ते की ऊंच नीच बताये. साथ ही बताएं जैसे तुम्हारी बहन, मां, बुआ बहने हैं वैसे ही दूसरों की भी होती हैं. ये समझाने से बच्चों में महिलाओं के प्रति बदलाव जरूर आयेगा.

सभी विजेताओं को डॉयचे वेले की तरफ से बधाई!

कुछ अन्य प्रतिभागियों के विचार भी हम आपसे शेयर करते हैं .....

- एक अरब से ज्यादा की आबादी पर यदि कुछ हज़ार लोग बुरे हैं तो इसका मतलब पूरा समाज बुरा नहीं हो जाता… हां हमारे देश की पुलिस और क़ानून व्यवस्था पर ज़रूर सवाल खड़े होते हैं. हमें अपनी पुलिस और न्यायाधिकरण पर अफ़सोस होता है..... देवेन्द्र कुमार मौर्या

- मेरे ख्याल से पश्चिम संस्कृति से अपने बच्चों को हम जितना हो सके दूर रखे तो हो सकता है कि ऐसी घटनाओं से बचा जा सके - राजीव रतन

- महिलाओं को सम्मान तब मिल सकता है जब कुछ ठेकेदार उनका अपमान बंद करे. मैं फिल्म और धारावाहिक नाटकों की अभिनेत्रियों की बात कर रहा हूं, जो पैसे के लिए सब कुछ कर रही हैं और महिलाओं की मर्यादाओं की कोई चिंता नही. बहुत आसान है कहना कि पुरुषों को सोच बदलनी चाहिए, पर क्या ये जरूरी है कि मॉडर्न बनने के लिए सबके सामने अश्लील कपडे पहनो. सब बहानेबाजी है पैसा कमाने और खुद को सही साबित करने का. मीडिया बहुत जिम्मेदार है. जब छोटे छोटे बच्चे गंदे गानों पर डांस करते हैं और उल्टी सीधी हरकते करते हैं तो मां-बाप बहुत खुश होते हैं. घर पर अच्छे हंसी ख़ुशी वाले प्रोग्राम देखिए और सबसे जरूरी बात शुरू से ही यह बात मन में डालो कि लड़कियां देवी स्वरुप होती हैं. पर जब 24घंटे टीवी पर कपडे उतार कर बेशर्मी परोसी जाएगी तो ये सब बात बेमानी हो जाती है ... अनूप अग्रवाल

- कहते हैं घर ज्ञान की पाठशाला और मां बाप बच्चों के पहले गुरु होते हैँ, मां बाप के जैसे संस्कार होंगे वैसे ही संस्कार उनके बच्चों में भी आयेंगे. इसके साथ साथ सामाजिक परिवेश और गलत संगत का भी असर बच्चों पर पडता है. घर के बड़े और मां बाप को बच्चों को पूरा समय देना चाहिए. उन्हें धार्मिक और अच्छी बातों का ज्ञान कराए और उनकी मानसिक स्थिति को परखे. उनके घर से बाहर के वातावरण पर भी नजर रखे. खुद भी दूसरों का सम्मान करें और बच्चों से भी करने को कहे. समाज में महिलाओं पर हो रहे अत्याचार और बलात्कार जैसी घटनाओं के विषय में उनके साथ मिलकर गहनता से मंथन करें, उन्हें बतायें कि यह सब गलत है इनसे बचना चाहिए...रूबी नाज़ मंसूरी, देश प्रेमी रेडियो लिस्नर्स क्लब,बरेली

- बच्चों की परिवरिश पूरे समाज की जिम्मेदारी है. दिनभर बच्चों के सम्पर्क में आने वाले माता, पिता, दादा, दादी, पडोसी, मेहमान, दुकानदार, अध्यापक सबकी जिम्मेदारी है कि बच्चों को जिम्मेदार नागरिक बनाने में सहयोग करे.....अनिल कुमार द्विवेदी, सैदापुर अमेठी

- किसी भी समाज में बच्चों को ऐसा करना या न करना नहीं सिखाया जाता. असल जरूरत कानून लागू करने और दोषियों को सख्त से सख्त सजा देने की है, जिससे दूसरे भी ऐसा करने से पहले 100 बार सोच लें और ये केवल गिनती के लोग ही हैं..... आज़म अली सूमरो

- बच्चों को महिलाओं का सम्मान सिखाने में परिवार की भूमिका महत्वपूर्ण है. परिवार बालक की प्रथम पाठशाला और माता उसकी प्रथम अध्यापक है. माता,परिवार का कर्तव्य है कि बालक को मानसिक सामाजिक संवेगात्मक नैतिक आध्यात्मिक प्रेरणा प्रदान करे. इसके लिए बालकों को प्रेरक प्रसंग सुनाने चाहिए. परिवार के सदस्यों के अच्छे विचारों, मूल्यों, विश्वास एवं आदर्शों का विकास बालकों को अनुशासित,चारित्रवान, समाज का श्रेष्ठ नागरिक बनाता है..... अर्चना राजपूत

- नारी के सम्मान को फिर से स्थापित करने के लिए घर में मूल्यवान संस्कार, आदर्श, नैतिकता, परिश्रम की अच्छी आदतें विकसित करनी चाहिए..... अंक प्रताप सिंह

संकलनः विनोद चड्ढा

संपादनः आभा मोंढे