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महिलाओं के खिलाफ अपराध रोकने की पहल

सुहैल वहीद, लखनऊ ११ अप्रैल २०१५

महिलाओं के खिलाफ अपराधों को रोकने की उत्तर प्रदेश सरकार ने पहल जरूर की है, लेकिन प्रभावी तंत्र के अभाव में उतनी सफलता नहीं मिल रही. खासकर एसिड हमलों के शिकारों को चिकित्सा सुविधा देने और स्वाबलंबी बनाने की कोशिश है.

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तस्वीर: DW/S. Waheed

अंशु कक्षा नौ में पढ़ती थी जब 55 साल के एक अधेड़ उसका पीछा करने लगा. मना किया तो तेजाब फेंक कर चेहरा जला दिया. शाइस्ता परवीन और ताजरियान पर उनके देवरों ने तेजाब फेंका. इतना सितम शायद कम नहीं था, विकृत जैसी हो चुकी इन दोनों को उनके शौहरों ने भी छोड़ दिया. प्रिया और अंजली पर तब तेजाब फेंका गया तब वह 12वीं में थीं, दोनों से अधेड़ उम्र के पुरुषों ने प्यार का दावा किया, मना किया तो यह हश्र कर दिया. बृजरानी 11वीं में थी तो दो शोहदों ने उस पर तेजाब फेंक कर जिंदगी भर के लिए अपंग बना दिया. मीना और संध्या अपने अपने पति के हाथों तेजाब से जला दी गईं. राजेंद्री देवी को आपसी दुश्मनी का खामियाजा तेजाब पीकर भुगतना पड़ा. सात साल हो गए, अब भी खाना निगलने में दर्द होता है!

तकरीबन 80 ऐसी महिलाओं के नाम दर्ज हैं यूपी के सरकारी दस्तावेजों में जिनका दर्द न देखा जाता है और न सुना जाता है. एसिड अटैक की शिकार इन महिलाओं को नहीं पता कि उन्हें किस बात की इतनी भयावह सजा मिली है. वह जिंदा जरूर हैं पर तन्हा कैद में. उन्हें उनके अपने घर में भी कोई देखना नहीं चाहता. किसी समारोह में जाने के बारे में सोच भी नहीं सकतीं. कोई उनके करीब भी आना नहीं चाहता.

वित्तीय मदद

पिछले दिनों यूपी सरकार के मुखिया अखिलेश यादव ने इनमें से 60 को अपने सरकारी आवास पर बुलाया और सम्मानित किया. उन्होंने तीन तीन लाख के चेक भी दिए. साथ ही पांच प्रमुख मेडिकल कालेजों में इनके कैश लेस इलाज के निर्देश भी दिए. हर तरफ से मायूस इन एसिड पीड़िताओं को ससम्मान बुलाने का देश में यह शायद पहला मौका था और यह शायद पहला सरकारी कार्यक्रम था जिस पर हर तरफ संवेदना हावी थी. एसिड हमलों की शिकार महिलाओं में कोई नहीं थी जिसका गला नहीं भर आया. कई के आंसू छलक पड़े तो कोई मंच पर चेक लेते हुए फूट फूट कर रो पड़ी. लेकिन लखनऊ की कविता को इस बात का मलाल है कि उसे अखिेलश यादव ने नहीं बुलाया. सबीना, सुलताना, नाजनीन, तमन्ना सहित करीब दर्जन भर पीडि़ताओं का नंबर नहीं आ पाया.

तेजाब की शिकार इन महिलाओं को दर्द के अंधेरे से बाहर निकालने का श्रेय मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की सांसद पत्नी डिंपल यादव को जाता है. उन्हीं की प्रेरणा से यूपी सरकार पिछले तीन वर्षों में महिलाओं के प्रति इतनी संवेदनशील हुई है. इसी कार्यक्रम में अखिलेश यादव ने प्रदेश की 39 ऐसी महिलाओं को भी सम्मानित किया जिन्होंने किसी न किसी क्षेत्र में अहम योगदान किया है. प्रदेश सरकार ने 100 करोड़ से एक महिला कोष भी शुरु किया है.

महिला अपराध रोकने की दिशा में यूपी सरकार की पहल के पीछे डिंपल यादव की सक्रियता बताई जाती है. साइबर छेड़छाड़ के खिलाफ महिला हेल्पलाइन 1090 इतनी लोकप्रिय हुई कि मुख्यमंत्री ने पीएम नरेंद्र मोदी को इसे देश भर में लागू करने के लिए पत्र लिख दिया. केंद्र सरकार जल्दी ही इसी तर्ज पर 181 महिला हेल्पलाइन शुरु करने जा रही है. दो साल में ही 1090 पर तीन लाख से अधिक शिकायतें दर्ज हुईं जिसमें से 2.82 लाख मामलों का समाधान भी हो गया. पिछले साल इस हेल्पलाइन का मोबाइल फोन एप भी लांच किया गया जो सीधा पुलिस थानों को वीडियो, ऑडियो भेजता है. 1090 के तहत हजारों छात्राएं पावर ऐंजिल्स भी बनाई गई.

तेजाब की बिक्री

एडवा की महासचिव मधु गर्ग इन प्रयासों को अच्छा तो बताती हैं पर कहती हैं कि महिला थानों की स्थिति में सुधार नहीं हो रहा है. अखिलेश सरकार ने अपराध रोकने में ड्रोन कैमरों, अत्याधुनिक पुलिस कंट्रोल रूम और मोबाइल पीसीआर जैसी अत्याधुनिक सुविधाएं यूपी पुलिस को उपलब्घ कराई हैं लेकिन अमला तो पुराना ही है और वह टेक सेवी नहीं है जबकि सरकार तकनीक से विकास और अपराध नियंत्रण चाहती है.

कानून को सख्ती से लागू करने का भी कोई प्रभावी तंत्र अभी तक विकसित नहीं हो पाया है. इसीलिए पाबंदी के बावजूद जगह जगह तेजाब की खुली बिक्री रोकी नहीं जा पा रही है. नाली चोक होने से लेकर बाथरूम सफाई तक और प्लंबरिंग के कामों में ब्रांडेड तेजाब की खपत बढ़ती जा रही है. जो कंपनियां इसे बनाती हैं वह इस पर तेजाब लिखती भी नहीं हैं. शुगर, स्टील, प्लास्टिक, पेपर सहित दर्जनों उद्यमों में कई किस्म का तेजाब इस्तेमाल किया जाता है. इसकी वास्तविक खपत का पैमाना और मात्रा का अंदाजा कोई सरकारी विभाग बता नहीं पा रहा है. लखनऊ हाईकोर्ट के वकील आलोक श्रीवास्तव का कहना है कि हाल में जो कानून बना है वह तेजाब की किस्मों की व्याख्या में लचर है.