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महंगाई से मनमोहन सिंह की छवि धूमिल

२१ जनवरी २०११

भारत में बढ़ती हुई महंगाई, खासकर खाने-पीने की चीजों की लगातार बढ़ती हुई कीमतें - अब जर्मनभाषी समाचार पत्रों मे भी इन पर ध्यान दिया जा रहा है.

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महंगाई से परेशानतस्वीर: UNI

प्रधान मंत्री मनमोहन सिह ने हाल में कहा है कि मार्च के महीने से कीमतें घटने लगेंगी. इस महंगाई से निपटने में उनकी सरकार नाकाम लग रही है - म्युनिख से प्रकाशित दैनिक सुएडडॉएचे त्साइटुंग का कहना है. समाचार पत्र में आगे कहा गया है -

काफी समय से खाने-पीने की चीजों की आसमान छूती कीमतें प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह की सरकार के लिए समस्या बनी हुई हैं, हालांकि सरकारी नीतियों का इन कीमतों पर कम ही असर होता है. लेकिन कुछ एक मंत्री पिछले हफ्तों के दौरान उपभोक्ताओं से खोखले वादे करते रहे कि जल्द ही इन कीमतों पर लगाम लगाया जा सकेगा...सरकारी नेताओं की घोषणाओं के बावजूद कीमते नहीं घटी, जिससे सरकार की हालत डांवाडोल हो रही है...मुख्य विपक्षी दल बीजेपी के लिए सरकार पर हमला करने का मुंहमांगा मौका मिल गया है. खासकर वे कृषि मंत्री शरद पवार पर नाकामी का आरोप लगा रहे हैं. विपक्ष का कहना है कि जनता को राहत दिलाने के लिए उन्होंने कोई कदम नहीं उठाया है. प्रधान मंत्री सिंह की छवि धूमिल हो रही है. लंबे समय तक उन्हें ईमानदार माना जाता रहा, लेकिन अब उन्हें इस आरोप का सामना करना पड़ रहा है कि कीमतों पर काबू पाने के लिए उनके पास कोई नुस्खा नहीं है.

सुएडडॉएचे त्साइटुंग के अन्य एक लेख में कहा गया है कि भारत का बढ़ता हुआ मध्यवर्ग अब चाय के बदले कॉफी पीने लगा है. आने वाले महीनों में अमेरिकी कैफे चेन स्टारबक्स की ओर से खासकर लक्जरी होटलों और मॉल्स में कैफे खोले जाएंगे. रिपोर्ट में आगे कहा गया है -

देश के बढ़ते हुए मध्यवर्ग और नए अमीरों के बीच कॉफी पीना फैशन बनता जा रहा है. आखिर यह वेस्टर्न टेस्ट और संभ्रांत होने की निशानी है. इस बात का इंतजार ही था कि अमेरिकी चेन स्टारबक्स इस विशाल बाजार में कूदेगा, जहां पहले से ही अनेक प्रतिस्पर्धी मौजूद हैं. एक एस्प्रेसो की कीमत 60 रुपए से अधिक होती है, जो अधिकतर लोगों के लिए बहुत अधिक है, लेकिन लगातार बढ़ते हुए मध्यवर्ग के बटुए ऐसी ललचाने वाली चीजों के लिए खुले होते हैं...इसकी खातिर स्टारबक्स टाटा के साथ सहयोग कर रहा है, जो सिर्फ नैनो जैसी छोटी कारों का ही उत्पादन नहीं करता है, बल्कि बीमा, बिजली व दर्जनों अन्य क्षेत्रों में व्यापार कर रहा है - अब कॉफी का भी. प्रेक्षकों का कहना है कि कॉफी की खपत हर साल पांच फीसदी की दर से बढ़ती जाएगी.

एक दूसरा विषय. माइक्रोक्रेडिट के प्रणेता नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद युनूस के खिलाफ बांगलादेश में मानहानि का मुकदमा चल रहा है. इसके अलावा वहां की सरकार ने उनके फर्म के खिलाफ जांच शुरू कर दी है. ज्युरिख से प्रकाशित नोए त्स्युरिषर त्साइटुंग का कहना है कि ये दोनों कदम राजनीति से प्रेरित हैं. सन 2007 मे एक साक्षात्कार में गरीबों का बैंकर समझे जाने वाले मोहम्मद युनूस ने कहा था कि बांगलादेश के राजनीतिज्ञ सिर्फ पैसा बटोरना जानते हैं. समाचार पत्र में आगे कहा गया है -

बांगलादेश के राजनीतिक नेता इस बात के लिए बदनाम हैं कि वे सरासर भ्रष्ट होते हैं और 1971 में देश की आजादी के बाद से अपने सत्तासंघर्ष के जरिये उन्होंने देश को बार-बार अराजकता के गर्त में धकेला है. युनूस के वक्तव्य से एक छोटी सी वामपंथी पार्टी के एक स्थानीय नेता को लगा कि उनका अपमान हुआ है और उन्होंने मुकदमा दायर कर दिया. अब इस मामले को फिर से खोद निकाला गया है. यह नेता जिस पार्टी के हैं, सत्तारूढ़ अवामी लीग के साथ उसका गंठजोड़ है, और लगता है कि इस कदम के पीछे राजनीतिक मकसद है. देश की प्रधान मंत्री शेख हसीना मोहम्मद युनूस को बर्दाश्त नहीं कर पाती हैं. युनूस के समर्थकों को डर है कि सरकार ग्रामीण बैंक को अपने कब्जे में लेना चाहती है. यह एक ट्रैजेडी होगी. यह भ्रष्ट और नालायक राजनीतिज्ञों की ही बलिहारी है कि प्रति व्यक्ति वार्षिक 640 डॉलर की आमदनी के साथ बांगलादेश आज दुनिया के सबसे गरीब देशों में शामिल है.

और अब पाकिस्तान. आतंक, युद्ध, बाढ़ और भूख - कैसे यह देश इन सबके बीच कैसे जिंदा रह सकेगा? बर्लिन के दैनिक डी वेल्ट में पूछा गया है. एक अग्रलेख में कहा गया है -

सिंध नदी में आई बाढ़ के बाद लगभग आधा साल गुजर चुका है. अब भी पाकिस्तान में लाखों लोग बेघर हैं...और पाकिस्तान में इंकलाब के कोई आसार नहीं दिख रहे हैं. इस्लामाबाद में सरकारी मोर्चा रेंग रहा है, टूट रहा है, फिर जुड़ रहा है. भ्रष्टाचार की ऐसी बाढ़ कभी देखने को नहीं मिली थी, सभी बंध टूटते दिख रहे हैं. बेघरों की आवाज नक्कारखाने में तूती हो गई है. बाढ़ से हुए नुकसान के साथ आर्थिक क्षेत्र में नाकामी जुड़ गई है.

लेकिन समाचार पत्र का यह भी कहना है कि पाकिस्तान की अराजकता हर कदम से निपटते हुए जिंदा रहती है. लेख में कहा गया है -

उसे गिराया नहीं जा सकता, वह बार-बार उठ खड़ी होती है, देश में व्यवस्था और पारदर्शिता लाने की हर कोशिश के मुकाबले वह मजबूत है. यह नाउम्मीदी का दायरा है, जो खुद अपने पैरों पर खड़ा है. सबसे खतरनाक तो यह होगा कि किसी दिन इस्लामपंथी देश की बागडोर संभाल लेगे, क्योंकि पाकिस्तान के लोग धोखे और नाउम्मीदी से तंग आ चुके हैं.

संकलन: अना लेमान्न/उभ

संपादन: महेश झा