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मरने के बाद आपके फेसबुक एकाउंट का क्या होगा?

२९ मई २०१७

एक जर्मन जोड़ा अपनी मृत बेटी के फेसबुक एकाउंट में लॉग इन करने की अनुमति मांग रहा था लेकिन फेसबुक के इनकार के बाद मामला बर्लिन हाईकोर्ट जा पहुंचा है. डिजिटल लेगेसी को लेकर इस पूरे मामले ने कई तरह के सवाल उठाये हैं.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa/O. Berg

बर्लिन की एक अदालत में इन दिनों एक मां अपनी 15 साल की बेटी की मौत के बाद उसके फेसबुक एकाउंट में लॉग इन कर पाने के लिये फेसबुक के साथ कानूनी लड़ाई में उलझी हुई है. साल 2012 में इस बच्ची की संदेहास्पद स्थिति में मौत हो गई थी और जिसके बाद मृत लड़की के अभिभावकों ने कोर्ट में गुहार लगायी थी.

मई के आखिर में बर्लिन के उच्च न्यायालय में इस मामले का ट्रायल शुरू हुआ. अभी इस मामले में कोई फैसला नहीं आया है लेकिन न्यायाधीशों ने दोनों पक्षों, लड़की के माता-पिता और सोशल मीडिया कंपनी फेसबुक को न्यायालय के बाहर इस मामले पर आपसी सहमति से हल निकालने का मौका दिया है. इस लड़की की मौत पांच साल पहले बर्लिन के सब-वे स्टेशन पर ट्रेन के सामने आ जाने से हो गई थी लेकिन अब तक माता-पिता यह नहीं जान पाये हैं कि वह कोई हादसा था या आत्महत्या. इसलिये इस घटना की तह तक जाने के लिये वह अब अपनी बेटी द्वारा भेजे संदेश और पोस्ट की मदद लेना चाहते हैं. उन्हें उम्मीद है कि फेसबुक पर भेजे गये संदेशों के जरिये उन्हें अपनी बेटी की मौत के बारे में ठोस जानकारी मिल सकेगी.

क्या चिट्ठी-पत्र जैसे हैं फेसबुक संदेश

अब सवाल ये है कि क्या डिजिटल खातों को भी एनालॉग संपत्ति के दायरे में रखा जा सकता है. बर्लिन की स्थानीय अदालत में साल 2015 में पहले ट्रायल के दौरान अदालत ने अभिभावकों के पक्ष में फैसला सुनाते हुये फेसबुक को एकाउंट का एक्सेस देने का आदेश दिया था. अदालत ने कहा था कि एनालॉग और डिजिटल संपत्तियों के साथ समान रुख नहीं अपनाया जाए तो यह विरोधाभास पैदा होगा कि चिट्ठी-पत्र, डायरी, सामग्री के लिहाज से स्वतंत्र है लेकिन ईमेल और फेसबुक नहीं. अदालत ने तर्क दिया था कि बेटी की निजी संपत्ति पर माता-पिता की पहुंच से निजी अधिकार का उल्लघंन नहीं होता क्योंकि उन्हें यह जानने का पूरा हक है कि उनके नाबालिग बच्चे ऑनलाइन क्या कर रहे हैं. 

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उपयोगकर्ताओं के अधिकार

फेसबुक ने इस फैसले के खिलाफ अपील की. अमेरिकी सोशल नेटवर्क के प्रतिनिधियों का तर्क है कि यह फैसला अन्य उपभोक्ताओं को भी प्रभावित करेगा जिन्होंने लड़की के साथ संदेश साझा करते वक्त यही समझा होगा कि ये संदेश निजी रहेंगे. यह एक ऐसा मसला है जिस पर विशेषज्ञ चर्चा भी कर रहे हैं.

डिजिटल लेगेसी 

ज्यूरिख यूनिवर्सिटी में आईटी सर्विस मैनेंजमेंट के लेक्चरर एल्के ब्रुकर-क्ले के मुताबिक, "हम उस परिवार की भावनाओं को समझते हैं लेकिन सवाल है कि क्या प्लेटफॉर्म ऑपरेटर और सर्विस प्रोवाइडर भी जानकारी दे सकते हैं." उन्होंने कहा कि मृत व्यक्ति के अपने दोस्त होंगे जिन्होंने अपना डाटा उस व्यक्ति के साथ साझा किया जो अब दुनिया में नहीं है न कि उसके रिश्तेदारों के साथ.

मेमोरियल एकाउंट

फेसबुक ने यूजर्स को ऐसे कई विकल्प मुहैया कराये हैं जो सोशल मीडिया पर यूजर के मरने के बाद इस्तेमाल में ला सकते हैं. इसमें से पहला विकल्प है अकाउंट को स्थायी रूप से डिलीट करना. यूजर्स इस सेटिंग का कभी भी इस्तेमाल कर सकते हैं. एक अन्य विकल्प है रीमेम्बरिंग (स्मरण), जो यूजर के प्रोफाइल पर उसकी मौत के बाद नजर आता है. इस अकाउंट की खास बात ये है कि कोई भी इसमें लॉग इन नहीं कर सकता हालांकि इस मसले पर भी बर्लिन के उच्च न्यायालय में चर्चा की जा रही है. दरअसल मृत बच्ची के माता-पिता ने उसे फेसबुक पर अपना अकाउंट बनाने की अनुमति सिर्फ इसी शर्त पर दी थी कि वह उसका पासवर्ड उनके साथ साझा करेगी. लेकिन बेटी की मौत के बाद जब उसकी मां ने अकाउंट में लॉग इन करने की कोशिश की तो उसमें रीमेम्बरिंग आ गया, जिसके चलते उसे अब ऑपरेट नहीं किया जा सकता. हालांकि यह अब तक साफ नहीं हुआ है कि किसने इस विकल्प को चुना था.

लेगेसी कॉन्ट्रेक्ट

फेसबुक यूजर्स एक लेगेसी कॉन्ट्रेक्ट भी तय कर सकते हैं जिसमें यह लिखा होगा कि उनके दुनिया में ना रहने बाद मेमोरियलाइज्ड अकाउंट किसकी निगरानी में होगा. लेकिन इसकी इजाजत 18 वर्ष से अधिक उम्र वाले लोगों को ही मिलेगी, जिसका इस्तेमाल इस लड़की के मामले में नहीं किया जा सकता था. लेकिन इस लेगेसी कॉन्ट्रेक्ट के जरिये किसी यूजर के असली अकाउंट में नहीं घुसा जा सकता और न ही उसके मैसेज पढ़े जा सकते हैं. बर्लिन की अदालत में लड़की की मां इसी की मांग कर रही हैं.

अंतिम शब्द

फेसबुक ऐप "इफ आई डाई" यूजर्स को अंतिम संदेश देने का मौका देती है जो उसकी मौत के कुछ दिन बाद फेसबुक पर दिखता है. लेकिन यह ऐप उन्हीं यूजर्स को मौका देती हैं, जिन्हें ये पता हो कि उनके पास कितना समय बचा है, उनको नहीं जिनकी मौत अचानक हो जाती है. "इफ आई डाई" में यूजर्स के पास अंतिम चंद शब्द या छोटा वीडियो अपलोड करने का मौका होता है. ऐप फेसबुक पर कंटेट तभी साझा करेगा जब पहले से चुने गये ट्रस्टी यूजर की मौत की पुष्टि करेंगे.

ब्रुकर-क्ले कहती है कि डिजिटल लेगेसी को सुरक्षित रखने वाले कदम तभी कारगर हो सकते हैं जब यूजर्स इनका इस्तेमाल अपने जीवन काल में करें, लेकिन अधिकतर युवा ऐेसा नहीं करते.

कार्ला ब्लाइकर/एए