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मनमोहन पर फिदा खुशवंत

१८ अगस्त २०१०

मनमोहन सिंह ने 1999 के लोकसभा चुनाव में खुशवंत सिंह से दो लाख रुपये उधार लिए. वह चुनाव हार गए और फौरन बाद खुशवंत को यह कहकर पैसे लौटा दिए कि वे इस्तेमाल नहीं हुए. अपनी नई किताब में खुशवंत पीएम की ईमानदारी पर फिदा हैं.

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मनमोहन सिंह पर नई किताबतस्वीर: UNI

प्रधानमंत्री की इस ईमानदारी का जिक्र खुशवंत सिंह ने अपनी नई किताब द एब्सॉल्यूट खुशवंतः द लो डाउन ऑन लाइफ, डेथ एंड मोस्ट थिंग इन बिटवीन में किया है. मशहूर लेखिका हुमैरा क़ुरैशी के साथ लिखी इस किताब में खुशवंत ने मनमोहन को भारत का सबसे अच्छा प्रधानमंत्री करार दिया है और इस मामले में उन्हें देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से भी ऊपर रखा है.

खुशवंत ने लिखा है," मैंने उन्हें दक्षिणी दिल्ली से चुनाव हारने के बाद ही पहचाना. ये साल 1999 की बात है. मैं दंग रह गया क्योंकि मनमोहन के दामाद जिन्हें मेरा परिवार जानता था, मेरे पास आए और कहा कि चुनाव प्रचार के लिए टैक्सी किराए पर लेने के भी पैसे नहीं हैं. मैंने नगद पैसे उन्हें उठा कर दे दिए." खुशवंत याद करते हैं, "चुनाव के कुछ दिनों बाद मनमोहन सिंह ने मुझे फोन किया और मिलने के लिए समय मांगा. वो जब मुझसे मिलने आए तो उनके हाथ में एक पैकेट भी था. मनमोहन ने मुझे पैकेट दिया और कहा कि उन्होंने इसका इस्तेमाल नहीं किया. पैकेट में उतने ही रुपये थे जितने मैंने उनके दामाद को दिये थे. मनमोहन इस तरह के राजनेता हैं"

खुशवंत कहतें हैं "जब लोग ईमानदारी की बात करते हैं तो मैं मनमोहन का उदाहरण उनके सामने रखता हूं कि किस तरह देश के सर्वोच्च पद पर रहते हुए वो कैसा जीवन जीते हैं."

Lok Sabha, Delhi Indisches Parlament
लंबे वक्त से प्रधानमंत्री हैं मनमोहनतस्वीर: Picture-Alliance / Photoshot

मनमोहन सिंह को जवाहरलाल नेहरू से ऊपर रखने के पीछे भी खुशवंत की अपनी दलीलें हैं. वो मानते हैं कि नेहरू करिश्माई नेता थे और दूरदर्शी भी. लेकिन उन्होंने गलतियां भी कीं. खुशवंत कहते हैं कि नेहरू ने अमेरिका की मुखालफत की और समाजवाद के साथ सोवियत संघ पर भी आंख मूंद कर भरोसा किया. उनमें धैर्य नहीं था और वो अपने लोगों के बीच घिरे थे.

खुशवंत की किताब पेंग्विन पब्लिकेशन ने छापी है. इसमें उन्होने ये भी लिखा है कि मनमोहन सिंह के पास नेहरू के समाजवाद को चुनौती देने की हिम्मत है और वो मिसेज गांधी की छाया से भी बाहर निकल चुके हैं. खुशवंत के शब्दों में, "मनमोहन ने अमेरिकी सहयोग वाली नीति अपनाई और भारत के लिए दुनिया के दरवाजे खोल दिए. निजी क्षेत्र को मजबूत किया और भारत के हितों की अनदेखी किए बगैर आर्थिक विकास के लिए रास्ता बनाया." खुशवंत मानते है कि मनमोहन ने भारत की बीमार अर्थव्यवस्था में जान भर दी.

खुशवंत सिंह 95 साल का सफर तय कर चुके हैं और उन्हें लिखते हुए 60 साल से ज्यादा वक्त बीत चुका है. ऑपरेशन ब्लू स्टार के विरोध में पद्मभूषण सम्मान लौटाने वाले खुशवंत सिंह ने लिखा है कि कभी प्रोफेसर रह चुके मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बनने के बाद भी ज़मीन से जुड़े हुए हैं. खुशवंत के मुताबिक देश के पहले सिख प्रधानमंत्री मनमोहन बेहद सरल और विनयशील हैं. छोटे से गांव के एक गरीब परिवार में पैदा हुए मनमोहन सिंह को पढ़ने के लिए भी काफी संघर्ष करना पड़ा. मनमोहन का शुरुआती दिनों में बस एक ही लक्ष्य था कि प्रोफेसर बनना और चंडीगढ़ में एक छोटा सा फ्लैट लेकर बस जाना. बाद में ज़िंदगी मनमोहन को कैंब्रिज, ऑक्सफोर्ड और संयुक्त राष्ट्र ले गई और भारत के वित्तीय संस्थानों के उच्च पदों से होते हुए अब वो प्रधानमंत्री तक बन गए लेकिन अब भी जमीन से जुड़ाव नहीं खत्म हुआ.

रिपोर्टः एजेंसियां/ एन रंजन

संपादनः ए जमाल