मनमोहन और सोनिया में मतभेद
१० अप्रैल २०१०10 नवंबर 2009 को प्रधानमंत्री के नाम लिखे पत्र में सोनिया ने कहा, "मेरी राय में बदलाव या संशोधनों की कोई जरूरत नहीं है. राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे कुछ अपवादों का इस कानून में पहले ही ध्यान रखा जा रहा है."
कांग्रेस अध्यक्ष मानती हैं कि यह कानून सिर्फ चार साल पुराना है और इसके जरिए सरकार के ढांचे को व्यापक रूप से पारदर्शी और जवाबदेह बनाने में कुछ समय लगेगा. उन्होंने लिखा, "प्रक्रिया शुरू हो गई है और इसे मजबूत करना होगा."
सोनिया गांधी ने कहा, "यह जरूरी है कि हम मौलिक उद्देश्यों से जुड़े रहें और इस कानून में बदलाव करने से परहेज करें. यह इसके उद्देश्य को हल्का कर देगा." कांग्रेस अध्यक्ष मानती हैं कि कानून को लेकर जागरूकता की कमी और सूचना के लिए आवेदन करने वाले लोगों के शोषण जैसे मुद्दों पर ध्यान देने की जरूरत है.
इसके जवाब में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा, "कानून में संशोधन किए बिना कुछ मुद्दों से निपटा नहीं जा सकता." सामाजिक कार्यकर्ता सुभाष चंद्र अग्रवाल की तरफ से सूचना के अधिकार कानून के तहत ही प्रधानमंत्री के जवाब की जानकारी हासिल की गई.
मनमोहन सिंह ने कहा, "यह कानून केंद्रीय सूचना आयोग के कामकाज के तरीके की जानकारी मुहैया नहीं कराता है. मुख्य सूचना आयुक्त का पद अचानक खाली होने की स्थिति में वैकल्पिक व्यवस्था के बारे में भी प्रावधान नहीं है.
भारत के मुख्य न्यायधीश कह चुके हैं कि इस कानून को लागू करते समय उच्च न्यायपालिका की स्वतंत्रता की सुरक्षा के लिए उपाय करने की जरूरत है. कैबिनेट के दस्तावेजों और आंतरिक चर्चा से जुड़े भी कुछ मुद्दे हैं."
हालांकि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को भरोसा दिलाया है कि कानून में किसी भी बदलाव के बारे में फैसला करने से पहले इससे जुड़े सभी पक्षों से विचार विमर्श किया जाएगा.
रिपोर्टः एजेंसियां/ए कुमार
संपादनः एस गौड़