मच्छर ने खोले करोड़ों साल पुराने राज
३० जनवरी २०१७13 करोड़ साल पहले दुनिया का एक मात्र विशाल महाद्वीप गोंडवाना टूटा. भूगर्भीय बदलावों के चलते हुई इस घटना के बाद दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका, अंटार्कटिका, ऑस्ट्रेलिया, भारत और मेडागास्कर अलग अलग हुए. इसके बाद अगले तीन करोड़ साल तक भारत हिंद महासागर में तैरता हुआ उत्तर की तरफ आता गया. और अंत में यूरेशिया प्लेट से टकराया. ये टक्कर इतनी जोरदार थी कि हिमालय जैसी बड़ी पर्वत श्रृंखला बनी.
वैज्ञानिकों का अनुमान है कि भारत की समुद्री यात्रा करीब 3 करोड़ साल चली. और इस दौरान वह बाकी दुनिया से कटा रहा. इस यात्रा के दौरान लगातार भारत ने अलग अलग किस्म की जलवायु का सामना किया. इसी वजह से भारतीय उपमहाद्वीप में आज भी कई ऐसे जीव और पौधे मिलते हैं जो दुनिया में और कहीं नहीं होते. दुनिया भर में अब तक यही सिद्धांत माना जाता है.
लेकिन अब जर्मनी की बॉन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता एक चौंकाने वाली जानकारी लेकर आए हैं. पोलैंड की ग्दांस्क और लखनऊ की यूनिवर्सिटी के साथ मिलकर बॉन यूनिवर्सिटी के जीवाश्म विज्ञानियों ने करोड़ों साल पुराने एम्बरों का अध्ययन करने के बाद दावा किया है कि समुद्र में तैरने के दौरान भी भारत का यूरोप और एशिया से संबंध जुड़ा था और कुछ जीव एक महाद्वीप से दूसरे में जा रहे थे. इसका पता मच्छरों की वजह से चला है.
बॉन यूनिवर्सिटी के श्टाइनमन इंस्टीट्यूट की जीवाश्म विज्ञानी फ्राउके स्टेबनर कहती हैं, "भारत में उस वक्त कुछ मच्छर थे, ये उस वक्त के यूरोप और एशिया के मच्छरों से बहुत ही मिलते हैं." बॉन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने सूरत के पास मौजूद एक कोयला खदान में एम्बर भी खोजे. इस दौरान उन्हें 5.4 करोड़ साल पुराने पेड़ के लीसे में कैद कई मच्छर मिले. मिलीमीटर से छोटे इन मच्छर की पीढ़ियां आज भी जर्मनी के जंगलों में मिलती हैं.
वैज्ञानिकों ने सूरत की खदान से मिले मच्छर के जीवाश्म को उतने ही पुराने चीन और यूरोप के जीवाश्म से मिलाया. इसके आधार पर ही दावा किया गया है कि भारत पूरी तरह अलग थलग नहीं था. वैज्ञानिकों का अनुमान है कि चीन ने यूरोप और तैरते भारत के बीच पुल का काम किया. स्टेबनर कहती हैं, "भारत के एम्बर से मिले कुछ काटने वाले मच्छर शायद लंबी दूरी तक उड़ने में बहुत अच्छे नहीं थे." लिहाजा किसी और जरिये वे एक महाद्वीप से दूसरे पर पहुंचे. तो आखिर वो जरिया क्या था? वैज्ञानिकों के सामने अगला सवाल यही है.
(कभी ये भी धरती पर थे, लेकिन फिर हमेशा के लिए लुप्त हो गए)