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मंगल पर वैज्ञानिकों का इतिहास है ऑडिसी

२५ दिसम्बर २०१०

अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के यान ऑडिसी ने लाल ग्रह यानी मंगल पर अब तक के सबसे अधिक देर तक सक्रिय रहने वाले यान के रूप में नाम कमा लिया है. ऑडिसी 24 अक्तूबर 2001 को मंगल की कक्षा में दाखिल हुआ.

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तस्वीर: AP

अब से कुछ दिन पहले यानी 15 दिसंबर को उसने मंगल की परिक्रमा के 3,340 दिन पूरे कर लिए. इस तरह, ऑडिसी ने नासा के मार्स ग्लोबल सर्वेयर के रिकॉर्ड को पीछे छोड़ दिया है, जो 11 सितंबर 1997 से नवंबर 2006 तक मंगल की परिक्रमा करता रहा था.

नासा के अधिकारी इस अपूर्व सफलता का सारा श्रेय ऑडिसी के वैज्ञानिकों और कर्मियों को देते हैं. ऑडिसी के परियोजना वैज्ञानिक जैफरी प्लॉट के शब्दों में, "यह ऑडिसी की टीम के लिए वास्तविक सराहना का अवसर है. उन लोगों के लिए, जिन्होंने इस अंतरिक्षयान का निर्माण किया, इसके उपकरणों के डिज़ाइन तैयार किए और जो वर्षों से यान का संचालन करते आ रहे हैं. हम मंगल ग्रह पर नौ वर्षों के लगातार संचालन का रिकॉर्ड कायम करने में सफल हुए हैं. यह सचमुच एक ग़ज़ब सफलता है."

Marssonde Phoenix Flash-Galerie
तस्वीर: AP

लंबी उम्र

ऑडिसी की लंबी उम्र के नतीजे में मंगल पर वहां से संबंधित विज्ञान का काम जारी रखना मुमकिन हुआ है, जिसमें वहां हर वर्ष मौसम में आने वाले बदलाव पर निगाह रखना और अधिकांश ग्रह के अब तक के सबसे ब्यौरेवार नक्शे तैयार करने का काम शामिल है. 2002 में ऑडिसी ने मंगल के ऊंचाई वाले सारे इलाक़ों में सतह के ठीक नीचे हाइड्रोजन होने का पता चलाया. जमे हुए पानी में हाइड्रोजन होने के निष्कर्ष के परिणाम में फ़ीनिक्स मार्स लैंडर मिशन रवाना किया गया, जिसने 2008 में हाइड्रोजन होने की उस धारणा की पुष्टि की.

मिशन की इस सबसे बड़ी वैज्ञानिक सफलता की चर्चा करते हुए जैफरी प्लॉट कहते हैं, "ऑडिसी के विज्ञान की शायद सबसे अधिक जानी-पहचानी सफलता थी, ग्रह के उत्तरी और दक्षिणी, दोनों ध्रुवीय इलाकों के ऊपर की कुछ फ़ुट ज़मीन के अंदर भारी मात्रा में जमी हुई बर्फ़ का पता लगाना. इस खोज का नतीजा था एक अवतरक यानी लैंडर यान के रास्ते उन इलाक़ों का विकास, जिस काम ने फीनिक्स मिशन का रूप ले लिया. फीनिक्स दरअसल ऊपर की मिट्टी को खुरचकर बर्फ तक पहुंच गया और उसके नमूने निकालकर इस बात की पुष्टि कर दी कि वहां पानी की बर्फ मौजूद है. "

Flash-Galerie Meteoriten
तस्वीर: picture-alliance/ dpa/dpaweb

ग्रह पर मानव मिशन भेजने की तैयारी में किया जाने वाला पहला परीक्षण भी ऑडिसी पर ही भेजा गया था. यान ने पाया कि मंगल ग्रह के गिर्द सौर लपटों और ब्रह्मांड किरणों से पैदा होने वाले विकिरण की, रेडिएशन की मात्रा, पृथ्वी के गिर्द मौजूद ऐसी मात्रा की तुलना में दो से तीन गुना अधिक है.

सशक्त संचार

ऑडिसी यान संचार संपर्क के माध्यम के रूप में भी उपयोगी साबित हुआ है. फीनिक्स यान और नासा के घुमन्तू खोजी यानों स्पिरिट और ऑपर्च्यूनिटी द्वारा पृथ्वी को भेजे जाने वाला अधिकांश ब्यौरा ऑडिसी से ही रिले किया जाता रहा है. मंगल ग्रह के मौसम पर लगातार निगाह रखने वाले यानों मार्स ग्लोबल सर्वेयर और मार्स रैनेसांस ऑर्बिटर यानी एम आर ओ के ब्यौरा पहुंचाने का माध्यम भी ऑडिसी यान है.

ऑडिसी परियोजना के वैज्ञानिक जैफरी प्लॉट मिशन की उपलब्धियों को एक निजी सफलता के रूप में देखते हैं, "ऐसे सफल मिशन में हिस्सा लेना मेरे लिए व्यक्तिगत तौर पर संतोषजनक रहा है और इस मिशन को सफल बनाने के पीछे जिन लोगों का हाथ है, वह एक गजब की टीम है. मिशन की कामयाबी के पीछे केवल उसकी मशीनें और उपकरण नहीं, बल्कि वे लोग होते हैं, जो हर दिन उसे सफल बनाने के लिए काम करते हैं. मेरा सोचना है कि ऑडिसी ने मंगल ग्रह के इतिहास पर अपनी छाप छोड़ी है, जिसका सारा श्रेय इन लोगों की कोशिशों को जाता है."

08.01.2010 DW-TV Projekt Zukunft Mars 2
तस्वीर: DW-TV

मील का पत्थर

2012 में ऑडिसी मार्स साइंस लैबोरेटरी एम एस एल के मंगल पर उतरने और उसकी सतह पर उसकी खोज कार्रवाइयों में सहायता करेगा. इस नए यान एम एस एल का काम होगा इस बात की परख करना कि उसके उतरने के स्थल का पर्यावरण जीवाणुओं के जीवन के लिए अनुकूल है या नहीं. और ऐसे प्रमाणों को संरक्षित करने की दृष्टि से भी कि वहां कभी जीवन मौजूद रहा है या नहीं. एमएसएल नाम के इस घुमंतू यान पर मंगल ग्रह की सतह पर अब तक पहुंचाए गए सबसे उन्नत उपकरण ले जाए जाएंगे. और अब तक की सबसे अधिक मात्रा में.

इस तरह ऑडिसी के इतिहास और उसकी संभावनाओं की रोशनी में उसे मंगल ग्रह के वैज्ञानिक अभियान में बाक़ायदा मील का पत्थर कहा जा सकता है. हैरत नहीं कि अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी अपनी इस उपलब्धि पर गर्वित महसूस कर रही है.

वॉशिंगटन स्थित नासा मुख्यालय में मंगल पर खोज-कार्यक्रम के निदेशक डग मैक्विस्शन का कहना है कि मंगल कार्यक्रम से स्पष्ट प्रदर्शित होता है कि विश्वस्तर के विज्ञान और ठोस और रचनात्मक इंजीनियरी के जोड़ का नतीजा है कार्यक्रम की सफलता और उसका इतनी देर तक जारी रहना.

रिपोर्टः गुलशन मधुर, वॉशिंगटन

संपादनः आभा एम

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