भोलेपन का शिकार हुई जर्मन संसद
११ जून २०१५हम कंप्यूटर में अपने डाटा को लेकर बहुत लापरवाह हैं. यह बात सारे आंकड़ों से पता चलती है. हम सोशल नेटवर्क में सक्रिय हैं और वहां अपने बारे में बहुत कुछ जानकारी देते हैं. हम इंटरनेट में खरीदारी करते हैं, बैंक का लेनदेन करते हैं और सिक्योरिटी सॉफ्टवेयर तथा पासवर्ड के बारे में अत्यंत लापरवाही दिखाते हैं. फिर राजनीतिज्ञ क्यों हमसे अलग होंगे.
लेकिन शायद उन्हें होना चाहिए. क्योंकि अब जब बुंडेसटाग का नेटवर्क हैकिंग हमले का निशाना बना है तो बात दूसरी हो गई है. हमला किसने किया है, इस पर सिर्फ अटकलें लगाई जा सकती हैं. ज्यादातर राजनीतिज्ञ इसके पीछे एक बड़े अपराधी संगठन का हाथ देखते हैं, संभवतः पूर्वी यूरोप से. शायद इसके पीछे सरकारें भी हैं.
गोपनीय सूचना पर हमला
संसद के नेटवर्क में अब संभवतः सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर बदलना होगा, शायद पूरी तरह से. क्योंकि हमला नेटवर्क की संरचना में गहराई तक किया गया है. चोरी हुए डाटा में एडमिनिस्ट्रेटिव अधिकार भी शामिल हैं. साइबर हमला या डाटा की चोरी अभी जारी है. यह कोई मजाक नहीं है. संसद के रक्षा आयोग में हथियारों की बिक्री पर चर्चा होती है, विदेश नीति आयोग में जर्मनी की रणनीति पर और दूसरे देशों के प्रति जर्मनी के हितों की चर्चा होती है, चाहे वे दोस्त देश हों या दूसरे. लेकिन ऐसा लगता है कि इस बात की चेतना नहीं है कि जिस नेटवर्क के जरिए ये सूचनाएं बांटी जाती हैं उसकी अत्याधुनिक तकनीक से सुरक्षा की जानी चाहिए.
पिछले चार हफ्तों से सांसदों को पता नहीं है कि हमला कितना गंभीर है और उन्हें अब क्या करना चाहिए. बुंडेसटाग के अध्यक्ष चुप्पी लगाए हैं और उन्हीं की तरह सूचना तकनीक की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार संघीय कार्यालय और खुफिया एजेंसी भी. शायद इसलिए कि उन्हें भी ज्यादा पता नहीं है. अगर ऐसा है तो यह चिंता की बात है. और यह सब ऐसे समय में हो रहा है जब साफ हो रहा है कि अमेरिकी खुफिया एजेंसी एनएसए ने जर्मनी में व्यापक स्तर पर लोगों की जासूसी की है और वह जर्मन खुफिया सेवा के साथ भी सहयोग कर रहा है. इसलिए बहुत से लोगों और राजनीतिज्ञों की प्रतिक्रिया निराशावादी है कि हम ऐसे ही कुछ नहीं कर सकते या यह है कि जिसे कुछ छुपाना नहीं उसे चिंता कैसी.
सीधी सादी चांसलर
बहुत से लोगों में खुशी का अहसास भी देखा जाता है जब उन्हें पता चलता है कि चांसलर के फोन की भी जासूसी हुई है. जहां तक मैर्केल का सवाल है तो बुंटेसटाग पर हुआ साइबर हमला उनके बर्ताव के साथ मेल खाता है. हाल ही में मैर्केल ने इंस्टाग्राम पर अकाउंट खोला है और उस पर तस्वीरें पोस्ट करवा रही हैं लेकिन उन्हें रूसियों के मजाक का सामना करना पड़ा. नफरत भरे संदेश और जर्मनी की यूक्रेन नीति पर कटु टिप्पणियां. और चांसलर कार्यालय में इसके लिए कोई तैयार नहीं था. इसलिए रूसी अक्षर में लिखे संदेशों को फटाफट मिटा दिया गया.
लापरवाही या फिर सरकार और संसद का भोलापन. लेकिन बुंडेसटाग के इतने सारे सदस्य इस बीच नाराज हैं कि अब जल्दबादी में वह सब करना संभव हुआ है जो पहले ही हो जाना चाहिए था. यानि कि ज्यादा आईटी कर्मचारी, सिक्योरिटी सॉफ्टवेयर पर अधिक खर्च और ज्यादा सावधानी. हैकर हमलों को पूरी तरह रोकना शायद कभी संभव न हो, लेकिन उसे गंभीरता से लेना अत्यंत जरूरी है.