लाइलाज संक्रमण के इलाज की थेरेपी
१ मार्च २०१६जब डॉक्टरों ने 47 वर्षीय फ्रांसीसी क्रिस्टोफ नावो को बताया कि उनके पैर को एक बैक्टीरियल संक्रमण के कारण पूरा काटना पड़ेगा, तो उनके जेहन में आत्महत्या कर लेने का खयाल आया. एक खतरनाक सड़क हादसे के बाद जान बचाने के लिए हुए दर्जनों ऑपरेशनों के बाद महज व्हील चेयर में जिंदगी बिताने का उन्हें कोई मतलब समझ नहीं आ रहा था. इसी बीच उनकी नजर एक लेख पर पड़ी. इसमें जॉर्जिया के एक ऐसे क्लीनिक के बारे में लिखा था जो एक जिंदा वायरस की मदद से कठिन से कठिन संक्रमणों का भी इलाज कर सकता है. लेख पढ़ने के कुछ ही घंटों में क्रिस्टोफ अपना इलाज करवाने तिब्लिसी जा रहे एक विमान में सवार थे.
इस तकरीबन भूले जा चुके इलाज के तरीके पर पेरिस में चल रहे एक सम्मेलन में पहुंचे क्रिस्टोफ कहते हैं, ''बिना इसके, मैं आज यहां नहीं होता.'' इलाज का ये तरीका अब पुराने सोवियत संघ के कुछ देशों में ही बचा है. इस इलाज में फेग नाम के एक वायरस का इस्तेमाल किया जाता है. ये वायरस 'सुपरबग' के साथ ही उन खतरनाक वैक्टीरिया को भी मार देता है जिन पर एंटीबायोटिक दवाएं भी असर नहीं करतीं.
क्रिस्टोफ को स्टेफीलोकोकस नाम के एक सामान्य वैक्टीरिया से संक्रमण हुआ था. इस वैक्टीरिया के चलते सामान्य फोड़े फुंसी से लेकर अंग को बरबाद कर देने वाला खतरनाक संक्रमण तक हो सकता है. उपचार के प्रचलित तरीकों में शामिल नहीं किए जाने वाले ये वैकल्पिक तरीके खासकर फ्रांस, बेल्जियम और अमेरिका में पिछले 15 सालों से फिर से अपनी जगह बनाने लगे हैं. हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इन तरीकों के बढ़ते इस्तेमाल की वजह को 'वैश्विक स्वास्थ्य संकट' बताया है. इसमें कहा गया है कि जानलेवा रोगाणुओं की एंटीबायोटिक प्रतिरोधी क्षमता में काफी बढ़ोत्तरी हुई है.
बीते नवंबर में डब्लूएचओ प्रमुख मार्गरेट चान ने एक 'पोस्ट-एंटीबायोटिक दौर' की चेतावनी दी है जिसमें सामान्य संक्रमण भी जानलेवा हो सकते हैं. फ्रांस में इस उपचार पद्धति को फिर से इस्तेमाल में लाए जाने के हिमायती डॉक्टर अलाँ डब्लांचेट कहते हैं, ''फेग थेरेपी खासकर हड्डियों और जोड़ों संबंधी संक्रमण के लिए है. लेकिन इसका इस्तेमाल मूत्र, फेफड़े और आंखों के संक्रमण में भी किया जा सकता है.
पहले विश्वयुद्ध के दौरान खोजी गई और 1920 और 30 के दशक में विकसित की गई इस उपचार पद्धति के कुछ साइड इफेक्ट्स भी हैं. रिटायर्ड डॉक्टर अलाँ डब्लांचेट बताते हैं कि उन्होंने कम से कम 15 ऐसे मरीजों का इस तरीके से इलाज किया है जो सड़क हादसों का शिकार हो गए थे. वे कहते हैं इन मरीजों में एंटीबायोटिक दवाएं असर ही नहीं कर रही थीं. सामान्यतया इस इलाज में कुछ हफ्ते लगते हैं और ये हजारों रूपयों की एंटीबायोटिक दवाओं की तुलना में बेहद सस्ता होता है. लेकिन दवा कंपनियों ने फेग थेरेपी पर कम ही रुचि दिखाई है. पेरिस सम्मेलन में जुटे भागीदार इसकी वजह ये बताते हैं क्योंकि वायरस को पेटेंट नहीं किया जा सकता. संक्रमित रोगों के विशेषज्ञ और डब्लूएचओ के सलाहकार जीन कार्लेट कहते हैं, ''प्रयोगशालाओं ने इसकी तरफ इसलिए पीठ कर ली है क्योंकि इसमें किए निवेश से बहुत बड़े मुनाफे की गुंजाइश नहीं है.'' कुछ नए स्टार्टअप्स ने जरूर 2011 में यूरोपीय संघ की ओर से दवा के बतौर वर्गीकृत की गई इस थेरेपी पर निवेश किया है. लेकिन इसके परीक्षण में अभी आसानी से एक दशक का समय और लगेगा, इसलिए ये एक लंबी अवधि का निवेश है.
अब तक फेग थेरेपी में इस्तेमाल किया जा रहा कोई भी वायरस इलाज के लिए स्वीकृत नहीं किया गया है. पूर्व सोवियत ब्लॉक के बाहर ब्रसेल्स में इस थेरेपी पर शोध कर रहे सैन्य अस्पताल के डॉक्टर जाँ पॉल पिर्ने कहते हैं, '' इसमें अभी कई साल लग जाएंगे और ढेर सारा पैसा भी.''
क्योंकि फ्रांस में फेग थेरेपी के बारे में लोग नहीं जानते इसलिए डॉ. डब्लांचेट और दूसरे डॉक्टर अक्सर पूर्वी यूरोप से इन वायरसों को खरीदकर लाते हैं. अमरीका में फेग वायरस का इस्तेमाल केवल एंटी खाद्यसामग्रियों के एंटी-बैक्टीरियल इलाज के लिए होता है. ये जानने के लिए कि बुरी तरह झुलसे लोगों के इलाज में ये वायरस कितना कारगर है, 'फगोबर्न' नाम से एक क्लिनिकल ट्रायल शुरू किया गया है. इसमें शामिल 220 रोगियों में से आधे लोगों का सामान्य इलाज कराया जा रहा है और आधे लोगों को फेग थेरेपी दी जा रही है. फ्रांस सरकार की ओर से दवाओं को मान्यता देने वाली संस्था एएनएसएम की प्रवक्ता कैरोलिन सेमाइल कहते हैं, ''अगर अच्छी क्वालिटी के वायरस मिलें और ये थेरेपी प्रभावशाली हो तो फ्रांस में इसे अस्थाई तौर पर मान्यता मिल सकती है.''
2013 में क्रिस्टोफ ने तिब्लिसी जाकर अपना इलाज कराने में तकरीबन 8 हजार यूरो खर्च किए, लेकिन उन्हें इस बात का कोई अफसोस नहीं है. डब्लांचेट कहते हैं कि फ्रांस में सैकड़ों ऐसे लोग यही कर रहे हैं और अधिकतर लोग ठीक होकर वापस लौट रहे हैं. वे कहते हैं, ''इसका मतलब एंटीबायोटिक की जगह फेग चिकित्सा का इस्तेमाल करना नहीं है. जबकि ये एक दूसरे को मदद पहुंचाएगी.'' डब्लांचेट इलाज में इस्तेमाल हो रहे इस वायरस के पर्यावरण में फैल जाने की भी चेतावनी देते हैं और कहते हैं इसके चिकित्सकीय उपयोग की सख्ती से निगरानी की जानी चाहिए.
आरजे/एमजे (एएफपी)