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'भीड़तंत्र' पर विश्वास करते हैं केजरीवाल

२३ जनवरी २०१४

दिल्ली में सत्ता में आने के बाद से आम आदमी पार्टी (आप) के नेताओं के तौर तरीकों ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री हैं या मुख्य आंदोलनकारी?

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तस्वीर: UNI

इसके साथ ही संविधान के प्रति निष्ठा की शपथ लेने के बावजूद एक संवैधानिक पद पर आसीन व्यक्ति का कानून तोड़कर धरना पर बैठना क्या उसकी विश्वसनीयता पर सवालिया निशान नहीं लगा देता? एक प्रश्न यह भी है कि सरकार चलाने वाला मुख्यमंत्री कैसे अपने को अराजकतावादी घोषित कर सकता है क्योंकि अराजकतावाद का अर्थ ही किसी भी प्रकार की सरकार में विश्वास न करना है.

कितना परिपक्व है आप

पिछले कुछ दिनों के घटनाक्रम के मद्देनजर आप के उदय से उत्साहित लोग भी इस बात पर सोचने लगे हैं कि क्या उसमें सत्ता संचालन के लिए आवश्यक योग्यता और परिपक्वता है? यह प्रश्न इसलिए भी महत्वपूर्ण हो चला है क्योंकि लोक सभा चुनाव होने में केवल तीन महीने बचे हैं और दिल्ली में मिली सफलता से उत्साहित होकर इस पार्टी ने देश भर में पहले 300 उम्मीदवार खड़े करने की घोषणा की और बाद में इस संख्या को बढ़ाकर 400 तक कर दिया.

पिछले दिनों हुए जनमत सर्वेक्षणों की मानें तो लोक सभा चुनाव में भी आप को अप्रत्याशित सफलता मिल सकती है और वह केंद्र में अगली सरकार बनवाने या दिल्ली की तरह कोई और विकल्प न होने की स्थिति में अल्पमत में होते हुए भी स्वयं सरकार बनाने की स्थिति में आ सकती है. ऐसे में उसके समर्थकों और विरोधियों, दोनों को उम्मीद है कि वह संयम और राजनीतिक सूझबूझ का परिचय देगी. लेकिन अभी तक उसने ऐसा कुछ भी नहीं किया है जिससे इस उम्मीद को बल मिले.

केंद्र सरकार से मुठभेड़

इस सन्दर्भ में लोग यह सवाल भी उठाने लगे हैं कि क्या संविधान में कोई ऐसी व्यवस्था नहीं होनी चाहिए जिसके तहत संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति द्वारा कानून या संविधान का उल्लंघन करते ही उसका पद उससे छिन जाए क्योंकि तभी संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों पर किसी तरह का अंकुश लग सकता है.

समस्या यह है कि कांग्रेस के समर्थन से सत्ता में आने के बाद से ही मुख्यमंत्री केजरीवाल और उनके सहयोगियों ने केंद्र सरकार से मुठभेड़ का रास्ता अपनाया हुआ है. अपनी छवि के बारे में अतिरिक्त रूप से सजग केजरीवाल को यह डर है कि यदि उन्होंने कांग्रेस के साथ टकराव मोल न लिया तो जनता को यह संदेश जा सकता है कि कांग्रेस के समर्थन से सत्ता में आने के कारण अब वह उसके प्रति नर्म रवैया अपना रहे हैं.

पिछले दो वर्षों से चल रहे उनके भ्रष्टाचारविरोधी आंदोलन का मुख्य निशाना कांग्रेस पार्टी ही थी. इसके अलावा उनका लक्ष्य लोक सभा चुनाव आने तक यह दिखाना भी है कि सत्ता में आने के बाद वह और उनके सहयोगी जनता के मुद्दों पर और भी अधिक सक्रिय हो गए हैं ताकि उनकी पार्टी को अधिक से अधिक जनसमर्थन और सीटें हासिल हो सकें.

सोमनाथ भारती पर आरोप

लेकिन क्या ऐसा हो पाएगा? उनके सहयोगियों और स्वयं उनकी कारगुजारियों को देखकर इस रणनीति के सफल होने में संदेह है. दिल्ली सरकार में कानून मंत्री सोमनाथ भारती के बारे में यह तथ्य उजागर हुआ कि एक मामले में अदालत ने उन्हें सुबूतों के साथ छेड़छाड़ करने और गवाहों को प्रभावित करने का दोषी पाया था और उनके इस फैसले पर सर्वोच्च न्यायालय तक ने मुहर लगाई. दिल्ली का मुख्यमंत्री बनने से पहले केजरीवाल इससे बहुत कम आरोप होने पर भी मंत्रियों से इस्तीफे की मांग कर लिया करते थे, लेकिन भारती के इस्तीफे की मांग को उन्होंने और उनके प्रशांत भूषण जैसे साथियों ने ठुकरा दिया.

मनीष सिसोदिया के साथ सोमनाथ भारती
तस्वीर: UNI

फिर कुछ दिन पहले आधी रात को भारती अपने समर्थकों के साथ खिड़की कॉलोनी पहुंच गए और वहां के थानेदार से कुछ अफ्रीकी महिलाओं के घरों पर तत्काल छापा मारने के लिए कहने लगे. उसके मना करने पर वे स्वयं उनके घरों में घुस गए. उनका आरोप था कि ये महिलाएं वेश्यावृत्ति और नशीली दवाओं का धंधा करती हैं. अब इन अफ्रीकी महिलाओं का आरोप है कि उनके साथ दुर्व्यवहार किया गया. अफ्रीकी देशों के राजदूतों ने भी भारत सरकार से इस घटना पर विरोध प्रकट किया.

केजरीवाल ने भारती के खिलाफ कोई कार्रवाई करने के बजाय पुलिसकर्मियों को निलम्बित किये जाने और पुलिस को दिल्ली सरकार के अधिकार क्षेत्र में लाए जाने की मांग को लेकर संसद भवन के निकट धरना शुरू कर दिया. संसद भवन के चारों ओर धारा 144 लगी रहती है और वहां धरना-प्रदर्शन करने की इजाजत नहीं है. लेकिन केजरीवाल ने न सिर्फ कानून तोड़कर धरना जारी रखा बल्कि इस इलाके में 26 जनवरी को निकलने वाली गणतंत्र दिवस परेड में भी अड़चन डालने की धमकी दी.

आम आदमी देशभक्त है

आम आदमी पर जो स्वभाव से देशभक्त है, उनकी इस धमकी का प्रतिकूल असर हुआ. धरनास्थल पर केजरीवाल के समर्थन में भीड़ भी कोई खास नहीं जुटी, इसलिए जब उपराज्यपाल नजीब जंग ने दो पुलिसकर्मियों को अवकाश पर भेजने का प्रस्ताव किया तो केजरीवाल ने उसे तत्काल स्वीकार करते हुए दिल्ली की जनता की भारी जीत का दावा कर डाला और अपना धरना खत्म कर दिया.

पुलिस ने अज्ञात लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया है लेकिन सभी को पता है कि कानून तोड़ कर धरना देने और भीड़ जमा करने के लिए जिम्मेदार कौन है. केजरीवाल ने अपने आप को अराजकतावादी घोषित करके लोकतंत्र में नहीं, 'भीड़तंत्र' में अपनी आस्था व्यक्त की है. उनके कानून मंत्री ने निजी घरों में गैर कानूनी ढंग से घुसकर खुले आम कानून तोड़ा है और महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार किया है. आश्चर्य नहीं कि आठ महिला संगठनों ने केजरीवाल को पत्र लिखकर विरोध जताया है और राष्ट्रीय महिला आयोग ने भी इस मामले का संज्ञान लिया है.

कांग्रेस और बीजेपी के अलावा अब एनसीपी भी आम आदमी पार्टी के खिलाफ कड़े तेवर अपना रही है. ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि आगामी अप्रैल में लोकसभा चुनाव होने तक इस पार्टी की राजनीतिक यात्रा इसे किस मुकाम पर ले जाकर छोड़ती है.

ब्लॉग: कुलदीप कुमार

संपादनः मानसी गोपालकृष्णन

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