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भारत में नई बजट परंपरा की शुरुआत

मारिया जॉन सांचेज
१ फ़रवरी २०१७

बुधवार को बजट पेश करने के साथ 28 फरवरी के बजाय एक फरवरी को बजट पेश करने की नई परंपरा की शुरुआत हुई. कई सांसदों के चुनाव में फंसे होने के कारण बजट पर सार्थक चर्चा की संभावना कम.

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Indien - Neu Delhi - Finanzminister Arun Jaitley beim Parlament um das Indien Union Budget zu präsentieren
तस्वीर: Getty Images/AFP/P. Singh

विपक्षी दलों का आग्रह था कि बजट को पांच राज्यों में होने जा रहे विधानसभा चुनावों की समाप्ति के बाद पेश किया जाए ताकि उसमें की जाने वाली घोषणाओं का मतदाता की राय निर्धारित करने पर कोई असर न पड़े, लेकिन केंद्र सरकार ने उसे नहीं माना. चुनाव आयोग ने सरकार को सलाह दी है कि बजट में इन पांच राज्यों से संबंधित घोषणाएं न की जाएं. यदि सरकार विपक्ष की बात मान लेती तो बजट आठ मार्च को मतदान समाप्त होने के बाद कभी भी पेश किया जा सकता था. अतीत में भी ऐसे मिसालें हैं जब बजट 12 मार्च को पेश किया गया लेकिन सरकार का तर्क है कि वह बजट पेश करने और उसके पारित होने की प्रक्रिया को 31 मार्च से पहले-पहले पूरा कर लेना चाहती है ताकि एक अप्रैल को नया वित्त वर्ष शुरू होते ही बजट के प्रावधान लागू किए जा सकें.

लेकिन आर्थिक विशेषज्ञ इन तर्कों से संतुष्ट नहीं हैं, खासकर उस स्थिति में जब स्वयं सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक नोटबंदी के बारे में प्रामाणिक आंकड़े देने में असमर्थ हैं. नोटबंदी के कारण अर्थव्यवस्था में आई अनिश्चितता के कारण भी बजट तैयार करने की प्रक्रिया पहले से अधिक कठिन हो गई है. बजट तैयार करने में चालू वित्त वर्ष और आने वाले वित्त वर्ष के लिए राजकोषीय संभावनाओं के आकलन की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. यदि चालू वित्त वर्ष एक सामान्य वर्ष होता, तब भी एक माह पहले बजट पेश करने में जिन समस्याओं का सामना करना पड़ता वे काफी गंभीर होतीं क्योंकि सिर्फ सात-आठ माह के लिए प्राप्त आंकड़ों के आधार पर ही पूरे वित्त वर्ष के लिए जीडीपी की विकास दर, कर राजस्व की उगाही और सार्वजनिक व्यय आदि का आकलन करना पड़ता. फिर यह चालू वित्त वर्ष तो नोटबंदी के कारण नितांत असामान्य वित्त वर्ष बन गया है क्योंकि नकदी की कमी के कारण अर्थव्यवस्था के अनेक क्षेत्रों पर बहुत भारी असर पड़ा है जिसका ठीक-ठीक अनुमान लगाया जाना बाकी है. केंद्रीय सांख्यिकी संगठन ने जो आंकड़े जारी किये हैं, उनमें नोटबंदी के असर को शामिल नहीं किया गया है.

Indien Kalkutta - Arbeiter kreuzen Gleise einen Tag vor General Budget 2017
तस्वीर: picture-alliance/ZUMAPRESS/P. Saikat

फिर, स्वयं सरकार कह रही है कि नोटबंदी के कारण पैदा हुई नकदी की कमी अप्रैल तक जाकर दूर हो पाएगी. यह भी एक आश्वासन ही है और जिस तरह सरकार के अन्य अनेक आश्वासन पूरे नहीं हो पाये, मसलन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि पिछले वर्ष 8 नवंबर की रात को घोषित नोटबंदी के कारण पैदा हुई समस्याएं 30 दिसंबर तक दूर हो जाएंगीं, उसी तरह इसके पूरा न हो पाने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता. कर राजस्व की उगाही के बारे में सही-सही आकलन करना बेहद कठिन है क्योंकि बहुत संभव है कि नोटबंदी के बाद पुराने नोटों के जरिये लोगों ने बहुत अधिक मात्रा में अग्रिम आय कर जमा करा दिया हो और वित्त वर्ष की अंतिम चौथाई यानी जनवरी-मार्च 2017 में यह राशि काफी कम हो जाए. अंतरराष्ट्रीय तेल कीमतों में 20 प्रतिशत वृद्धि के कारण भी अप्रत्यक्ष करों की वसूली में बढ़ोतरी हुई है क्योंकि पेट्रोलियम उत्पादों पर कई तरह के अप्रत्यक्ष कर लगे हुए हैं. सरकार ने प्राथमिक सार्वजनीन आय मुहैया कराने का वादा किया है लेकिन साथ ही अपेक्षाकृत कड़े राजकोषीय लक्ष्य भी निर्धारित किए हैं. बजट पेश होने के बाद भी एक माह से अधिक समय तक सांसदों और राजनीतिक दलों का ध्यान विधानसभा चुनावों और उनमें किए जाने वाले प्रचार पर केन्द्रित रहेगा. ऐसे में संसद में बजट पर कितनी सार्थक चर्चा हो पाएगी, कहना मुश्किल है.

Indien Kalkutta - Strassenszene einen Tag vor Indien Union Budget
तस्वीर: picture-alliance/ZUMAPRESS/P. Saikat