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भारत में धर्मनिरपेक्षता पर विवाद

३१ जनवरी २०१५

शुरू में उसे भूल बताया गया लेकिन अब संशोधन के बाद संविधान में शामिल किए गए धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी शब्दों को हटाने की मांग हो रही है. विपक्ष उसमें हिंदूवादी पार्टियों की चाल देख रहा है.

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Indien Feier zum Tag der Republik 26.01.2015 Bangalore
तस्वीर: picture-alliance/epa/Jagadeesh NV

नरेंद्र मोदी के सत्तारूढ़ गठबंधन की सहयोगी पार्टी शिव सेना ने संविधान की प्रस्तावना से समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष शब्दों को हटाने की मांग की है और केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा है कि इस पर बहस होनी चाहिए. शिव सेना के सांसद संजय राउत ने धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी शब्दों को संविधान की प्रस्तावना से बाहर निकालने की मांग करते हुए कहा कि इसे स्थायी तौर पर हटा दिया जाना चाहिए. बहस की शुरुआत डीएवीपी के एक विज्ञापन से हुई थी जिसमें दिखाई गई संविधान की प्रस्तावना से धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी शब्द गायब थे. इन्हें 1976 में 42वें संशोधन के जरिए संविधान में शामिल किया गया था.

सूचना और प्रसारण राज्य मंत्री राठौड़ ने इस विज्ञापन पर स्पष्टीकरण देते हुए कहा कि इसमें संविधान की मूल कॉपी का इस्तेमाल किया गया है. विवाद इसके साथ ही समाप्त हो जाना चाहिए था लेकिन शिव सेना के संजय राउत ने इस शब्दों को संविधान से हटाने की मांग कर बखेड़ा खड़ा कर दिया और आईटी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने इसका बचाव करते हुए बहस कराने की दलील दे डाली.

कांग्रेस पार्टी ने रविशंकर प्रसाद की टिप्पणी पर तीखी प्रतिक्रिया जताई है और कहा है कि यह मोदी सरकार का नियोजित एजेंडा लगता है. विपक्षी पार्टी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से संविधान की भावना से "खिलवाड़ " पर अपनी सरकार का इरादा और धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी शब्दों पर अपना रुख साफ करने की मांग की है. पार्टी के प्रवक्ता रणदीप सूरजेवाला ने कहा, "कैबिनेट की बैठक के बाद बहस शुरू करने पर सरकार के प्रवक्ता की टिप्पणी संविधान के मुख्य विचारधारा की समीक्षा की मोदी सरकार के नियोजित एजेंडे को दिखाता है."

मोदी सरकार की सहयोगी पार्टी पीएमके ने संविधान की प्रस्तावना पर बहस के सुझाव पर चिंता जताई है तो बिहार के मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी और महात्मा गांधी के परपोते तुषार गांधी ने भी इसकी आलोचना की. पीएमके पार्टी नेता रामदॉस ने कहा, "समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता इस देश की मौलिक पहचान है और हमेशा ऐसा ही रहना चाहिए. ये शब्द रहने चाहिए और भारत में किसी को उसे बदलने के बारे में नहीं सोचना चाहिए." तो मांझी और तुषार गांधी ने इसे नादानी और कट्टरता से पैदा विध्वंसक, निंदनीय और अपमानजनक बयान बताया.

नरेंद्र मोदी की सरकार द्वारा संविधान के सिद्धांतों पर बहस करने की तैयारी दिखाने के कारण मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने प्रधानमंत्री की चुप्पी के लिए आलोचना की है. पार्टी नेता वृंदा करात ने कहा कि भारत में धर्मनिरपेक्षता के लिए संघर्ष देश के अस्तित्व और उसके विकास का संघर्ष है. करात ने कहा, "यह अत्यंत चिंता की बात है कि केंद्र में 31 प्रतिशत मतों के साथ सत्ता में आने वाली प्रधानमंत्री की सरकार है, जो संविधान के सिद्धांतों पर बहस करना चाहती है." कम्युनिस्ट पार्टी के राष्ट्रीय सचिव डी राजा ने आरोप लगाया है कि फासीवादी ताकतों ने सत्ता हथिया ली है. उन्होंने राजनीतिक दलों और लोगों से इसका विरोध करने की अपील की.

एमजे/आईबी (पीटीआई)