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भारत ने दी तंजानिया को रोशनी

१४ जून २०१४

अफ्रीकी देश तंजानिया के चेकेलानी गांव में 10 साल की लड़की हैरान है. उसकी मां पहले तो घर पर रहती थी लेकिन अचानक कुछ दिनों के लिए गई और लौटी तो इंजीनियर बन कर लौटी. वह गांव की बिजली की समस्या हल कर रही है.

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तस्वीर: DW

उसकी मां नेता भी है और गांव की बिजली समिति की सदस्य है. वह अपनी बेटी के लिए प्रेरणा भी है, "जब मैं बड़ी होऊंगी तो मैं भी नेता बनूंगी और अध्यक्ष बनूंगी." चेकेलानी गांव में एक साल पहले तक अलग नजारा था. सूरज के साथ पूरा गांव अंधेरे में डूब जाता था. आज वहां सोलर लाइटें लगी हैं. औरतें सोलर कूकर पर खाना बना रही हैं और बच्चे सोलर लैंप में अपना होमवर्क कर रहे हैं. करीब 200 घरों में अपने सोलर पैनल लगे हैं.

भारत की मदद

तंजानिया के म्तवारा और लिंडी जिलों में छह महिलाओं की मेहनत का नतीजा है कि तीन दूरदराज के गांवों में बिजली आ पाई है. अफ्रीका की कुल 25 औरतों ने राजस्थान के तिलोनिया में बेयरफुट कॉलज में सोलर पैनल को लगाने और इससे बिजली पैदा करने पढ़ाई की और अब वे इसका प्रयोग अपने गांवों में कर रही हैं. इनमें से ज्यादातर अनपढ़ मांएं या दादियां हैं. तंजानिया की छह महिलाएं भी उसी 25 औरतों के ग्रुप में थीं. चेकेलानी की उस बच्ची की मां भी कुछ दिनों के लिए पढ़ने के लिए ही घर से बाहर थी.

Solarlampe made in Freilassing
सोलर लैंप में पढ़ाई संभवतस्वीर: Christine Haberlander

बेयरफुट कॉलज ने 2011 में संयुक्त राष्ट्र के साथ एक कार्यक्रम तैयार किया है, "ग्रामीण महिलाएं अफ्रीका में रोशनी लाएं." इन औरतों की ट्रेनिंग उसी कार्यक्रम का हिस्सा है. छह महीने की ट्रेनिंग के बाद ये औरतें बेयरफुट सोलर इंजीनियर की डिग्री हासिल करती हैं और अपने गांवों में लौट कर बिजली की व्यवस्था करती हैं. इन पर पांच सालों तक बिजली के उपकरणों की मरम्मत और रखरखाव की भी जिम्मेदारी होती है.

तंजानिया में नितेकेला गांव की मरियम लुवोंगो भी ऐसी ही एक इंजीनियर हैं. उनका कहना है, "हमें उम्मीद है कि दूसरी औरतें भी इसे चुनौती की तरह लेंगी और गरीबी मिटाने की दिशा में काम करेंगी." ये औरतें सिर्फ अपने समुदाय में बिजली ही नहीं लाती हैं, बल्कि ऐसी अक्षय ऊर्जा की शुरुआत करती हैं, जिससे दूसरे समुदाय भी फायदा उठा सकते हैं.

कमाल की औरतें

ये औरतें निरक्षर हैं और भारत जाने से पहले तंजानिया से बाहर कभी नहीं गई थीं. फिर भी वे ट्रेनिंग के बाद घर लौटती हैं, तो देखते ही देखते कुछ ही हफ्तों में चेकेलानी, नितेकेला और म्जिमवेमा में सोलर पैनल लगा देती हैं. ये गांव तंजानिया के दक्षिण में मोजांबिक की सीमा पर हैं. इसके लिए उपकरण भी स्थानीय तौर पर ही तैयार किया जा रहा है.

गांववाले अपने उपकरणों की कीमत और उसके रखरखाव की फीस देते हैं. वह पैसा पांच साल तक किश्तों में दे सकते हैं. इसका फायदा यह होता है कि महिलाओं को हर महीने कुछ पैसे मिलते रहते हैं. शुरू में करीब 20,000 तंजानियाई शिलिंग (करीब 700 रुपये) जमा कराने होते हैं और फिर हर महीने का 60,000 शिलिंग (करीब 2100 रुपये). इसके बदले उन्हें एक 20 वाट का सोलर पैनल, 12 वोल्ट की बैट्री, एक सेलफोन चार्जर और नौ वाट के तीन बल्ब मिलते हैं.

ये महिलाएं जब भारत में ट्रेनिंग करती हैं, तो इन उपकरणों को वहीं तैयार कर लेती हैं. फिर तंजानिया की सरकार संयुक्त राष्ट्र महिला संगठन से इन उपकरणों को खरीदता है. गांववालों को फायदा यह होता है कि उनका केरोसीन का 1000 शिलिंग प्रति महीने का खर्चा बच जाता है और बाजार जाकर सेलफोन चार्ज नहीं कराना पड़ता है. इससे पर्यावरण का भी फायदा है.

एजेए/एमजे (आईपीएस)