भारत के लिए ईरान में नए मौके
१८ जनवरी २०१६बहुत लंबे समय से ईरान अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा आर्थिक रूप से अलग-थलग किए जाने का खमियाजा भुगत रहा था लेकिन अब उसने समझ लिया है कि यदि उसे इस भूमंडलीय अर्थव्यवस्था का अंग बनकर प्रगति करनी है, तो फिर उसे आणविक अस्त्रों से लैस सामरिक शक्ति बनने की अपनी महत्वाकांक्षा को छोड़ना होगा. ईरान ने काफी लंबे अरसे तक अंतरराष्ट्रीय दबाव का डटकर सामना किया लेकिन जब उसने पाया कि इस इकलौती महत्वाकांक्षा के कारण उसके लिए सभी दरवाजे एक-एक करके बंद होते जा रहे हैं, तो उसने हालात की नजाकत को समझ कर समझौता करने में ही अपनी कुशल समझी और परमाणु करार कर लिया.
ईरान के भूमंडलीय अर्थव्यवस्था से दुबारा निर्बाध ढंग से जुड़ जाने का भारत के लिए बेहद महत्व है क्योंकि अब भारत बिना किसी अड़चन के ईरान के साथ हर प्रकार का कारोबार कर सकेगा. भारत की 77 प्रतिशत ऊर्जा जरूरत विदेशों से तेल और गैस आयात करके पूरी होती है. ईरान इन दोनों का ही बहुत बड़ा उत्पादक और निर्यातक है. काफी समय से जिस ईरान-पाकिस्तान-भारत गैस पाइपलाइन के बारे में चर्चा हो रही है, अब उस परियोजना को निर्णायक ढंग से आगे बढ़ाने के लिए अनुकूल माहौल बन रहा है. अंतरराष्ट्रीय आर्थिक प्रतिबंधों के चलते भारत को ईरान से तेल और गैस के आयात में भारी कटौती करनी पड़ी थी. अब वह आसानी से ईरान से जितना चाहे उतना तेल और गैस आयात कर सकता है.
ईरान के जरिए भारत अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक पहुंचना चाहता है क्योंकि फिलहाल भारत के सामने केवल थलमार्ग के इस्तेमाल का विकल्प है और रास्ते में पाकिस्तान पड़ता है. सूचना तकनीकी, बुनियादी ढांचे और पेट्रोरसायन के क्षेत्रों में भारत की निजी कंपनियों के लिए ईरान एक बहुत बड़ी संभावना के रूप में उभर सकता है और वह भारतीय उत्पादों के लिए एक विशाल बाजार भी बन सकता है. इस समय यह बहुत अच्छा मौका है जब भारतीय कंपनियां ईरान के साथ कारोबार कर सकती हैं और वहां बड़े पैमाने पर निवेश कर सकती हैं. वहां भारतीय कामगारों को विभिन्न क्षेत्रों में चल रही परियोजनाओं में जाकर निर्माण कार्य में भाग लेने का अवसर भी पैदा हो रहा है. ईरान की समुद्र तटीय सीमा बहुत लंबी है और भूराजनीतिक रूप से वह अफगानिस्तान, मध्य एशिया, पश्चिम एशिया और तुर्की के संगम-स्थल पर है. जाहिर है कि इसका भारत की दृष्टि से भी बहुत महत्व है.
लेकिन भारतीय राजनय के लिए चुनौतियां भी कम नहीं हैं. सऊदी अरब, इस्राएल और तुर्की ईरान के घोर विरोधी हैं और सीरिया में राष्ट्रपति बशर अल-असद की सरकार को उखाड़ने के अभियान में लगे हैं जबकि ईरान और रूस उसका समर्थन कर रहे हैं. भारत के सऊदी अरब और इस्राएल के साथ घनिष्ठ आर्थिक और सामरिक संबंध हैं. वह सऊदी अरब पर तेल और गैस तथा इस्राएल पर अत्याधुनिक हथियारों और तकनीकी के लिए निर्भर है. पूरे खाड़ी क्षेत्र में भारतीय फैले हुए हैं और उनके द्वारा घर भेजे जाने वाले धन का भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए बहुत महत्व है. इसलिए भारत को अपना हर कदम फूंक-फूंक कर रखना होगा. लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि ईरान पर प्रतिबंध हटने से भारत के सामने भी अनेक नई संभावनाएं आ खड़ी हुई हैं.