1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें
कानून और न्याय

भारत के मुख्य न्यायाधीश का दफ्तर आरटीआई कानून के तहत

चारु कार्तिकेय
१३ नवम्बर २०१९

भारत के सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मुख्य न्यायाधीश का दफ्तर भी अब सूचना के अधिकार के कानून के तहत आएगा. इस से न्यायपालिका के प्रशासन में और पारदर्शिता आने की उम्मीद है. 

https://p.dw.com/p/3SwvC
Indien  Supreme Court in New Delhi Oberster Gerichtshof
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/A. Qadri

भारत में सूचना के अधिकार (आरटीआई) कानून को बुधवार को और बल मिला जब सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों वाली एक संविधान पीठ ने कहा कि भारत के मुख्य न्यायाधीश का कार्यालय भी आरटीआई कानून के अधीन है. संविधान पीठ ने एकमत से दिए गए फैसले में कहा, "संवैधानिक लोकतंत्र में न्यायाधीश कानून से ऊपर नहीं हो सकते. पारदर्शिता से न्यायिक स्वतंत्रता का नुकसान नहीं होता." इस फैसले की वजह से अब मुख्य न्यायाधीश के दफ्तर से जुड़ी हर प्रशासनिक जानकारी सार्वजनिक हो जाएगी.

पारदर्शिता पर जोर

ये फैसला दिल्ली हाई कोर्ट ने 2010 में ही दे दिया था लेकिन तब सुप्रीम कोर्ट के ही सेक्रेटरी जनरल और केंद्रीय सूचना अधिकारी ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी थी. संविधान पीठ ने इन अपीलों को खारिज कर दिया और दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले को सही ठहराया. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि गोपनीयता और निजता के अधिकार को बरकरार रखना होगा और इस बात का भी ख्याल रखना होगा कि आरटीआई का इस्तेमाल निगरानी के लिए ना हो. 

नौ साल पहले हाई कोर्ट का फैसला आरटीआई कार्यकर्ता सुभाष चंद्र अग्रवाल की याचिका पर आया था. उनके वकील प्रशांत भूषण ने तब कहा था कि जब किसी ऊंचे पद पर बैठे व्यक्ति का सवाल हो तब जनहित को निजी हित से ऊपर रखना चाहिए. अग्रवाल ने डॉयचे वेले से कहा कि ये एक बहुत ही महत्वपूर्ण और सराहनीय फैसला है और इसका वे तहे दिल से स्वागत करते हैं. उन्होंने कहा, "सर्वोच्च न्यायालय ने अपने ही जन सूचना अधिकारी की अपील को खारिज कर दिया है." अग्रवाल ने ये भी कहा कि न्यायपालिका का न्याय संबंधी विभाग ना आरटीआई के तहत आता है ना आना चाहिए, लेकिन न्यायपालिका के प्रशासनिक विभाग को लेकर आज बात और साफ हो गई कि मुख्य न्यायाधीश का कार्यालय भी आरटीआई कानून के अधीन है.

सूचना का अधिकार

आरटीआई आंदोलन से जुड़े जाने माने सामाजिक कार्यकर्ता निखिल डे ने डॉयचे वेले से कहा, "बड़ी बात ये है कि आज एक विडम्बना का अंत हो गया जिसके तहत सुप्रीम कोर्ट ने खुद से ही अपील की हुई थी, तो एक तरह से आज सुप्रीम कोर्ट ही सुप्रीम कोर्ट में हार गया." उन्होंने बताया कि इस अपील में तीन मामले एक साथ थे - एक मुख्य न्यायाधीश के कार्यालय से संबंधित, दूसरा उनके कार्यालय में जमा की जाने वाली जजों की संपत्ति की जानकारी से संबंधित और तीसरा कॉलेजियम के फैसले और जजों की नियुक्ति के विषय में सरकार से हुए पत्राचार से संबंधित और अब ये तीनों ही आरटीआई के दायरे में ला दिए गए हैं. 

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से एक बार फिर आरटीआई कानून की श्रेष्ठता उभर कर आई है और एक बार फिर ये कानून न्याय की कसौटी पर खरा उतरा है. ये खासकर इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि सरकारें लगातार इस कानून को और इससे जन्मी प्रणाली को कमजोर करने की कोशिश करती रहती हैं. मौजूदा एनडीए सरकार ने हाल ही में इस कानून में संशोधन करके सूचना आयुक्तों के कार्यकाल और उनके वेतन पर अपना नियंत्रण और बढ़ा दिया. मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार के कार्यकाल में भी कानून को कमजोर करने के कई प्रयास हुए थे. एक संशोधन के तहत सभी राजनीतिक पार्टियों को इस कानून के दायरे से बाहर रख दिया गया था.