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भारत के 'कोविन' से दुनिया में वैक्सीनेशन बढ़ने की उम्मीद

अविनाश द्विवेदी
७ जुलाई २०२१

भारत ने अपने सरकारी वैक्सीनेशन प्लेटफॉर्म 'कोविन' को अब ओपेन सोर्स प्लेटफॉर्म बना दिया है. यानी अब कई दूसरे देश भी अपने वैक्सीनेशन कार्यक्रम को आगे बढ़ाने और इसकी ट्रैकिंग के लिए 'कोविन' का इस्तेमाल कर सकेंगे.

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 Indien Covid-19 Impfstoff
तस्वीर: Sondeep Shankar/Pacific Press/picture alliance

कोविन (CoWIN) 'कोविड वैक्सीनेशन इंटेलिजेंस नेटवर्क' का छोटा रूप है. भारत में इसके जरिए लोगों का वैक्सीनेशन के लिए रजिस्ट्रेशन कराकर उन्हें वैक्सीन डोज दी जाती है. सरकार का दावा है कि कोविन का प्रयोग कर अब तक कोरोना वैक्सीन की 35 करोड़ डोज लगाई जा चुकी हैं. भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 'कोविन ग्लोबल कॉन्क्लेव 2021' में कोविन को सभी देशों के लिए उपलब्ध कराने की घोषणा की.

कोविन वर्चुअल कार्यक्रम में अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, मालदीव, गुयाना और जाम्बिया सहित 142 देशों के प्रतिनिधि शामिल थे. मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक अब तक 76 देशों ने अपने कोविड वैक्सीनेशन प्रोग्राम के प्रबंधन के लिए 'कोविन' के इस्तेमाल में रुचि दिखाई है. भारतीय मीडिया में इस कदम की खूब चर्चा हुई लेकिन कई जानकारों ने डर जताया है कि इससे इन देशों को कोई खास मदद नहीं मिलेगी.

क्या है 'कोविन' की खासियत?

'कोविन' के जरिए वैक्सीन अभियान को प्रभावशाली और आसान बनाए जाने का दावा रहा है. इसके जरिए वैक्सीन वितरण का ध्यान रखा जाता है और वैक्सीन की बर्बादी का भी पता चलता है, जिससे उसे रोका जा सकता है. 'कोविन' को ओपेन सोर्स प्लेटफॉर्म बनाने की घोषणा करते हुए भारतीय प्रधानमंत्री ने कहा, "कोविन प्लेटफॉर्म के जरिए लोग आसानी से अपना वैक्सीनेशन सर्टिफिकेट पा सकते हैं और उन्हें वैक्सीन प्रमाण के तौर पर कागज के कमजोर टुकड़ों की जरूरत नहीं होती."

कोरोना ने छीना जुबान का स्वाद

भारत सरकार के मुताबिक कोविन प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने का काम भी करता है क्योंकि इसके जरिए वैक्सीन की एक-एक डोज की खपत पर नजर रखी जा सकती है. यह वैक्सीन की जमाखोरी और कालाबाजारी को भी रोकता है. इतना ही नहीं कोविन एक फीडबैक टूल के तौर पर भी काम करता है. यानी इसमें वैक्सीनेशन के बाद हुई स्वास्थ्य समस्या को लेकर शिकायत भी की जा सकती है. सरकार कहती है इसके जरिए नीति निर्माताओं को डाटा आधारित फैसले लेने में मदद मिलती है.

भारत क्यों शेयर कर रहा कोविन

जानकार मानते हैं विदेश संबंधों के मामले में ऐसे कदम जरूरी हैं. कूटनीतिक संबंधों के मामले में हर देश की अपनी अहमियत होती है, ऐसे में भारत इन्हें टेक्नोलॉजी देकर अपने साथ लाना चाहता है. भारत का यह कदम उसे कई मंचों पर मदद दे सकता है. लंदन के किंग्स कॉलेज में इंटरनेशन रिलेशंस के प्रोफेसर हर्ष वी पंत ने डीडब्ल्यू को बताया, "कोरोना के दौरान भारत की कूटनीति स्पष्ट रही है. वह कोरोना वायरस की वैश्विक समस्या के लिए वैश्विक समाधान की बात करता आया है. ऐसे में यह टेक्नोलॉजी शेयरिंग भी उसके कोरोना के खिलाफ पहले किए प्रयासों का ही विस्तार है. वैक्सीन वितरण को लेकर भी भारत ने ऐसा ही किया था."

Indien | Coronavirus | Impfungen
टीका प्रबंधन का भारत का सॉफ्टवेयरतस्वीर: Mayank Makhija/NurPhoto/picture alliance

चीन की वैक्सीन कूटनीति से तुलना पर हर्ष वी पंत कहते हैं, "भारत इस मामले में चीन के साथ किसी प्रतिस्पर्धा में नहीं है. चीन बड़ी आर्थिक शक्ति है, वह ज्यादा मदद कर सकता है लेकिन जहां चीन को दुनिया संशय के नजरिए से देखती है, भारत के साथ ऐसा नहीं है. भारत ने शुरुआत से ही कोरोना के मामले में वैश्विक मंचों पर 'जब तक सब सुरक्षित नहीं, हम भी सुरक्षित नहीं' वाक्य दोहराया है. यही वजह है कि भारत वैक्सीन पेटेंट खत्म करने की बात उठा चुका है ताकि दुनिया भर में वैक्सीन प्रोडक्शन बढ़ाया जा सके."

कोविन से देशों को बहुत लाभ होने पर संशय

हालांकि परिस्थितियां इतनी भी सकारात्मक नहीं है. खुद भारत में ही कोविन के इस्तेमाल के बावजूद गलत टीके लगाने की घटनाएं सामने आती रही हैं. कई जिलों से वैक्सीनेशन के रजिस्ट्रेशन में गड़बड़ी की खबरें आई हैं. इतना ही नहीं बिना टीका लगे कोविन पर वैक्सीनेशन सर्टिफिकेट आ जाने और टीका लगने के बावजूद वैक्सीनेशन सर्टिफिकेट न मिलने की घटनाएं भी सामने आई हैं. इसके अलावा वैक्सीन रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया के पूरी तरह ऑनलाइन होने के चलते गरीब, अशिक्षित और बेघर लोगों के वैक्सीनेशन से छूट जाने का डर भी जताया गया था. जिसके बाद सरकार ने वैक्सीनेशन की ऑफलाइन प्रक्रिया की गाइडलाइन जारी की थी. जिन देशों ने कोविन में रुचि दिखाई है, उनमें से ज्यादातर गरीबी और खराब मेडिकल सिस्टम की समस्या से जूझ रहे हैं. ऐसे में कोविन से उन्हें बहुत लाभ होने की बात पर संशय है.

Indien | Impfung in Rajasthan
देश भर में टीकाकरण अभियानतस्वीर: Sumit Saraswat/Pacific Press/picture alliance

दिल्ली यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान के असिस्टेंट प्रोफेसर जसप्रताप बरार कहते हैं, "पिछले कुछ दशकों में भारत ने फार्मा और आईटी के सेक्टर में काफी तरक्की की है. इनके दम पर वह अब दुनिया की मदद करना चाहता है. यही वजह है कि 'वैक्सीन कूटनीति' के बाद अब 'कोविन कूटनीति' की जा रही है. लेकिन हमें ध्यान रखना होगा कि जिन देशों के साथ यह तकनीक शेयर की जा रही है, उनमें यह ट्रैक करने का इंतजाम भी किया जाए कि लोग वैक्सीनेशन से छूटें नहीं. ऐसा नहीं हुआ तो कोविन तकनीक को शेयर करने का मकसद पूरा नहीं हो सकेगा और यह पूरी कोविन डिप्लोमेसी एक प्रतीकों की राजनीति बनकर रह जाएगी."

'कोविन' से जरूरी वैक्सीन और मेडिकल सिस्टम

भारत में वैक्सीन के रजिस्ट्रेशन के लिए आधार का इस्तेमाल किया जा रहा है, लेकिन जिन छोटे देशों के साथ कोविन को शेयर किया जा रहा है, उनमें से कई में आधार जैसी किसी प्रक्रिया के तहत पूरी जनसंख्या की प्रोफाइलिंग नहीं की गई है. असल समस्या यही है. अगर उनके पास ऐसी कोई प्रोफाइलिंग होती तो उनके लिए वैक्सीनेशन की प्रक्रिया कोई बड़ी समस्या नहीं बनती. वे आसानी से वैक्सीन नहीं पा सकी जनसंख्या की पहचान कर उसे वैक्सीनेट कर सकते थे. ऐसे में कोविन शेयर करने से ज्यादा जरूरी इन देशों में वैक्सीन पहुंचाना और इसे जनता तक पहुंचाने वाला मेडिकल सिस्टम खड़ा करना है."

जानकार यह भी मानते हैं कि भारत में इंटरनेट भले ही सुलभ हो लेकिन अब भी लोगों में आईटी साक्षरता (फोन और कंप्यूटर के इस्तेमाल की समझ) कम है. अब भी यहां ज्यादातर बुजुर्ग घर के छोटे सदस्यों के जरिए टीका बुक कराकर वैक्सीनेशन करवाते हैं. इन्हीं वजहों के चलते दिल्ली जैसे महानगरों में अभी संतोषजनक वैक्सीनेशन नहीं हो सका है. जिन देशों से कोविन साझा करने की बात चल रही है, उनमें से ज्यादातर गंभीर समस्याओं से घिरे हैं और भारत को एक मजबूत सहयोगी मानकर उसके कदम के समर्थन में हैं. दरअसल उन्हें आगे भी भारत से मदद की आशा है. यही वजह है इनमें से किसी ने कोविन से बहुत फायदा होने की बात नहीं कही है.

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