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उत्तरी आयरलैंड प्रोटोकॉल पर ब्रिटेन-ईयू तनाव में कानूनी मोड़

स्वाति बक्शी
१८ मार्च २०२१

ब्रिटेन और यूरोपियन यूनियन के बीच ब्रेक्जिट समझौते में उत्तरी आयरलैंड प्रोटोकॉल पर बनी सहमति पर टकराव, कानूनी कहा-सुनी की तरफ बढ़ चुका है. यूरोपियन कमिशन ने ब्रिटेन से एक महीने में जवाब मांगा है.

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England London | Brexit Unterstützer aus Ghana Joseph Afrane
तस्वीर: Matt Dunham/AP/picture alliance

ईयू की कार्यकारी संस्था यूरोपियन कमिशन ने ब्रिटेन को कानूनी नोटिस देकर एक महीने के भीतर अपना पक्ष रखने को कहा है. ब्रिटेन ने कहा है कि मुनासिब जवाब सामने रखा जाएगा. ब्रेक्जिट समझौते में शामिल इस प्रोटोकॉल का मकसद उत्तरी आयरलैंड (संयुक्त ब्रिटेन) और रिपब्लिक ऑफ आयरलैंड (ईयू) के बीच कड़ी सीमाओं से होने वाली दिक्कतों को दूर रखना था.

ब्रेक्जिट के दौरान चली बातचीत में सभी पक्षों ने ये माना कि दोनों देशों के बीच गुड फ्राइडे संधि के तहत बनी शांति को बनाए रखने के लिए उनकी साझा सीमा को ब्रेक्जिट के असर से बचाना जरूरी है. इसका अर्थ ये है कि उत्तरी आयरलैंड से सामान बिना किसी नई औपचारिक जांच के आयरलैंड की सीमा के भीतर प्रवेश कर सकता है लेकिन इस व्यवस्था के तहत ही 1 जनवरी से ब्रिटेन और उत्तरी आयरलैंड के बीच एक नई नियंत्रक सीमा का जन्म हो गया है.

इसके लिए ब्रिटेन से जाने वाले दूध, मीट, अंडा, मछली जैसे सामान को उत्तरी आयरलैंड में प्रवेश करने से पहले ईयू मानदंडों के तहत कस्टम और गुणवत्ता जांच से गुजरना होगा जिसकी व्यवस्था लागू करने के लिए मार्च के अंत तक का समय रखा गया. ईयू में निर्यात होने वाले मांस और अंडे जैसी खाद्य सामग्री के लिए कड़े मानदंड हैं जिनकी जांच पर खरा उतरना अब ब्रिटिश सामान के लिए जरूरी है.

क्या है उत्तरी आयरलैंड प्रोटोकॉल (एनआई प्रोटोकॉल)

एनआई प्रोटोकॉल के तहत उत्तरी आयरलैंड अब भी ईयू एकल वस्तु बाजार का सदस्य है और सामान की गुणवत्ता से जुड़े मानदंडों का पालन करता है. इसका मतलब ये है कि ब्रेक्जिट के बाद ब्रिटेन और उत्तरी आयरलैंड के बीच सामान की जांच करने के लिए एक नए तंत्र की जरूरत है लेकिन इसे लागू करने के लिए रखी गई रियायती समय सीमा यानी ‘ग्रेस पीरियड'  31 मार्च को खत्म हो जाएगी.

इस तरह ईयू के मानदंडों को नरमी से लागू करने की सहमति हुई लेकिन ब्रिटेन ने मार्च की शुरूआत में इस रियायती समयावधि को बढ़ाकर अक्टूबर तक करने का फैसला कर लिया. इसकी वजह से ब्रिटेन की तरफ से सामान की कड़ाई से जांच की व्यवस्था सुनिश्चित करने में देरी हुई है.

ईयू ने इसे समझौते का उल्लंघन करार देते हुए कानूनी रास्ता लिया है. हालांकि ईयू की तरफ से उम्मीद जताई गई है कि मामले को यहीं सुलझा लिया जाएगा और बात बिगड़ने की नौबत नहीं आएगी. ईयू के उपाध्यक्ष मारोस सेफकोविच ने ट्विटर पर लिखा, "हमने गुड फ्राइडे समझौते को बचाने के एकमात्र उपाय के तौर पर एनआई प्रोटोकॉल को अपनाया. हम उसे मिलकर लागू करने के लिए प्रतिबद्ध हैं. एकतरफा कार्रवाई विश्वास को कमजोर करती है. ईयू इस प्रोटोकॉल को सबके लिए लागू करने पर वचनबद्ध हैं. मैं ब्रिटेन को साझा रास्ते पर वापसी के लिए आमंत्रित करता हूं”.

हालांकि इससे पहले ही बॉरिस जॉनसन अपने एक बयान में कह चुके थे कि ब्रिटेन की तरफ से किया गया फैसला "अस्थाई और तकनीकी कदम है जो हमारी समझ से विवेकपूर्ण है”. एक तरफ जहां प्रोटोकॉल को लेकर दिक्कतें बकायदा जारी हैं, तो दूसरी तरफ ब्रिटेन की ओर से ईयू को होने वाले निर्यात में भारी गिरावट दर्ज की गई है.

ईयू को होने वाले निर्यात में भारी गिरावट

ब्रिटेन के राष्ट्रीय सांख्यकीय कार्यालय के आंकड़ों को मुताबिक ईयू को किए जाने वाले सामान के निर्यात में जनवरी में 40.7 फीसदी की भयंकर गिरावट दर्ज की गई है. इसके साथ ही आयात में भी 28.8 फीसदी की कमी हुई है. साल 1997 में जबसे ये आंकड़े दर्ज किए जा रहे हैं, तब से ये अब तक की सबसे बड़ी गिरावट है.

ब्रेक्जिट के बाद पहली बार दर्ज हुई इस व्यापारिक पछाड़ के पीछे कोविड से पैदा हुई रुकावटों जैसे अस्थाई कारणों का हवाला दिया जा रहा है. ब्रिटेन में आयात किए जाने वाले सामान में गिरावट मुख्य तौर पर मशीन और यातायात से जुड़े उपकरणों में देखी गई. इसके साथ ही कारों, दवाइयों और फार्मास्यूटिकल सामान की आमद भी प्रभावित रही है.

एक वैश्विक अकाउंटेसी फर्म केपीएमजी के मुताबिक इस गिरावट के लिए ब्रेक्जिट की वजह से पैदा हुई व्यापारिक दिक्कतों को ही जिम्मेदार ठहराया जा सकता है. ब्रिटिश चेम्बर्स ऑफ कॉमर्स में हेड ऑफ इकॉनॉमिक्स, सूरेन थिरू ने अपने एक बयान में कहा, "ब्रिटिश निर्यातकों को जिस तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ा है वो सिर्फ शुरूआती रुकावटें नहीं हैं, ब्रिटेन के आर्थिक विकास पर इसका असर 2021 की पहली तिमाही में चलता रहेगा. यूके-ईयू निर्यात में जो भारी कमी आई है, ये ब्रेक्जिट के बाद सीमाओं पर हुई रुकावटों से बर्बाद हुए व्यापार का सुबूत है”.

ब्रिटेन की बॉरिस जॉनसन सरकार ऐसे दावे लगातार करती रही है कि ब्रेक्जिट के बाद व्यापारिक दिक्कतें बस बदलाव की शुरुआती अड़चने भर हैं और समय बीतने के साथ सब सामान्य होने लगेगा. फिलहाल स्थिति ये है कि पहली तिमाही खत्म होने के नजदीक है और यूरोपियन यूनियन व्यापार से जुड़े आंकड़े व उत्तरी आयरलैंड प्रोटोकॉल पर विवाद थमने के बजाए, ब्रिटेन की ब्रेक्जिट के बाद की कशमकश में इजाफा करते हुए ही नजर आ रहे हैं.

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