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समाज

ब्रिटेन की जनसंख्या में आई 13 लाख की कमी

स्वाति बक्शी
२ मार्च २०२१

कोविड महामारी के कारण नौकरियां खत्म होने और आर्थिक कठिनाइयों का गंभीर असर प्रवासी कामगारों पर पड़ा है. यूरोपीय देशों से आए कामगार लाखों की संख्या में ब्रिटेन छोड़ रहे हैं.

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Symbolbild - Brexit
तस्वीर: picture-alliance/D. Cliff

ब्रिटेन में कोरोना महामारी से देश को निकालने का चरणबद्ध कार्यक्रम सार्वजनिक हो चुका है. फिलहाल वायरस म्यूटेशन से आगे निकलने और वैक्सीन में भरोसा जगाने की दिक्कतें खासी बड़ी नजर आ रही हैं. हालांकि इस दौर से निकलने के रास्ते में आगे और भी चुनौतियां खड़ी हो सकती हैं. ब्रेक्जिट के बाद बीते दो महीनों में व्यापारिक दिक्कतों से निपटने के लिए चल रही कोशिशों की खबरें आती रही हैं लेकिन इस सबके बीच एक सिलसिला और भी चल रहा है- लाखों प्रवासियों के ब्रिटेन छोड़ने का सिलसिला जिसका एक बड़ा हिस्सा यूरोपीय प्रवासियों का है.

अंदेशा यह है कि राजधानी लंदन समेत ब्रिटेन के कई शहरों में जनसंख्या का स्वरूप, श्रम बाजार और सामाजिक-सांस्कृतिक ताने बाने पर इसका गहरा असर होगा. फिलहाल ठोस नतीजे सामने आने में अभी वक्त लगेगा. धीरे-धीरे आर्थिक गतिविधियां फिर शुरू होने और कामगारों की जरूरत बढ़ने पर यह खुलकर सामने आएगा कि श्रम की उपलब्धता इस पलायन से कैसे प्रभावित हो रही है. सवाल यह भी है कि इस जरूरत को पूरा करने के लिए क्या ब्रिटिश कामगार पर्याप्त होंगे.

आंकड़े, रोजगार और प्रवासी

कोविड महामारी के चलते आंकड़े इकट्ठे करने में हो रही परेशानियों के बावजूद ब्रिटेन में प्रवासियों और श्रम बाजार पर नजर रखने वाली संस्थाओं के अनुमानों के मुताबिक प्रवासी कामगारों की संख्या तेजी के साथ कम हुई है. ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय स्थित माइग्रेशन ऑब्जर्वेट्री का अनुमान है कि साल 2020 की आखिरी तिमाही में प्रवासी कामगारों की संख्या 83 लाख हो गई है जो 2019 की उसी तिमाही में 92 लाख थी यानी 10 फीसदी की गिरावट.

एक ब्रिटिश थिंक टैंक- इकॉनॉमिक स्टैटिस्टिक्स सेंटर ऑफ एक्सीलेंस (इस्को) का अनुमान है कि इस अवधि में ब्रिटेन की कुल जनसंख्या में करीब 13 लाख की कमी आई है. सेंटर के मुताबिक राजधानी लंदन में रहने वालों की संख्या में करीब 7 लाख की गिरावट का अंदेशा है यानी प्रवासियों की एक बड़ी संख्या इस दौर में बाहर निकल चुकी है. ये आंकड़े सरकारी रिपोर्टों पर आधारित अनुमान हैं जिनकी पूरी तरह पुष्टि होने के लिए अभी और प्रमाण चाहिए.

इतना तय है कि कोविड के कारण नौकरियां खत्म होने और आर्थिक कठिनाइयों का गंभीर असर प्रवासी कामगारों पर पड़ा है. इनमें पोलैंड, लात्विया, स्लोवाकिया जैसे यूरोपीय देशों से आए कामगार लाखों की संख्या में हैं. ब्रिटेन छोड़ने वाले यूरोपीय प्रवासियों में ज्यादातर वे लोग हैं, जो पिछले कुछ बरस के दौरान आए थे या जिनका कोई स्थायी पारिवारिक आधार नहीं है. उम्मीद यह भी है कि शायद प्रवासी वापिस लौटें लेकिन ब्रेक्जिट के बाद वीजा हासिल करने के नए नियमों के मद्देनजर कितने लोग इसमें कामयाब होंगे, इसका दावा नहीं किया जा सकता. हालांकि सवाल यह भी है कि क्या सिर्फ कोविड और आर्थिक अवसरों का सिमटना ही इस अभूतपूर्व पलायन का कारण हैं. 

युवा यूरोपीय प्रवासियों का पलायन

साल 2020 में कोविड की भयंकर परिस्थितियों को प्रवासियों के लौटने की नजर से अहम माना जा रहा है लेकिन इस सिलसिले की शुरूआत ब्रेक्जिट की लंबी और तनावपूर्ण प्रक्रिया के दौरान ही हो चुकी थी. अपने भविष्य और सुरक्षा को लेकर उपजी चिंताओं ने खासकर युवा यूरोपीय प्रवासियों को ब्रिटेन से विदा लेने के लिए मजबूर कर दिया. मध्य इंग्लैंड के लेमिंग्टन स्पा इलाके में काम करने वाले एक इतालवी जोड़े- टोमाशो रोमानो और लौरा ने साल 2019 में ब्रेक्जिट के बाद भेद-भाव झेलने के कारण इटली वापिस लौटने का फैसला किया.

अपने फैसले पर बातचीत करते हुए टोमाशो ने कहा, "जैसे-जैसे ब्रेक्जिट की प्रक्रिया उलझती जा रही थी, हमारे आस-पास माहौल बदलने लगा था. अखबारों में प्रवासियों के खिलाफ हमलों की खबरें दिखने लगी थीं लेकिन हमें नहीं लगा था कि हमारे साथ ऐसा होगा. फिर एक दिन वेल्स में काम के बाद मैं अपने बॉस के साथ एक पब में गया. बाहर बारिश हो रही थी, तो हमने सोचा कि अंदर ही खड़े होकर कुछ खा लेंगे लेकिन पब में काम करने वाले कर्मचारी का रवैया बेहद रूखा और कड़ुवाहट भरा था. उसने कहा कि ब्रेक्जिट हो चुका है. अब अगर आपको यहां कुछ हो गया तो कौन जिम्मेदार होगा? मुझे उस पल लगा कि अब यह हमारा घर नहीं हो सकता”.

टोमाशो की पार्टनर लौरा अंतरिक्ष विज्ञान की छात्रा रही हैं और उन्हें काम करने के लिए ब्रिटेन मुनासिब लगा लेकिन ब्रेक्जिट के बाद यहां से निकलने का विकल्प उन्हें भी तार्किक लगा. लौरा कहती हैं, "मेरे क्षेत्र में इटली में काम की संभावनाएं कम थीं और मैं अंतरराष्ट्रीय अनुभव लेना चाहती थी जिसके लिए ब्रिटेन बेहतर लगा. जब ब्रेक्जिट का लंबा सिलसिला शुरू हुआ, तो प्रवासी होने की वजह से कई बार मुझे अस्पताल में भेद-भाव झेलना पड़ा. हमने आपस में बात की और घर वापसी सही विकल्प दिखाई दिया. वैसे भी हम नहीं चाहते कि भविष्य में होने वाले अपने बच्चे को ऐसे माहौल में बड़ा करें”.  

ब्रिटेन के विभिन्न शहरों में आम जनजीवन पर प्रवासी समुदायों की गहरी सांस्कृतिक छाप है. होटल उद्योग और रोजमर्रा के जीवन से जुड़ी सेवाएं देने वाले छोटे व्यवसायों में यूरोपीय कामगार बड़ी संख्या में रहे हैं. लाखों की संख्या में प्रवासियों के जाने का व्यापक असर फिलहाल आंकड़ों की धुंध में लिपटा पड़ा है. लेकिन इसमें शक नहीं है कि दोबारा पटरी पर लौटने को बेकरार अर्थव्यवस्था में कामगारों की कमी के साथ ब्रिटेन के सामाजिक-सांस्कृतिक स्वरूप पर इस पलायन के निशान स्पष्ट तौर पर देखने को मिलेंगे.

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