ब्रिक देशों की बैठकः विवाद और विकल्प
१५ अप्रैल २०१०2001 में निवेश बैंक गोल्ड़मैन सैक्स के अर्थशास्त्री जिम ओनील ने चार देशों को पहली बार एक साथ 'ब्रिक' कह कर संबोधित किया था. भारत, ब्राज़ील, चीन और रूस विश्व की सबसे प्रभावशाली अर्थव्यवस्थाओं में गिने जाते हैं. विश्व की 40 प्रतिशत जनसंख्या इन देशों में रहती है और ये देश विश्व आर्थिक उत्पाद में 20 प्रतिशत का योगदान देते हैं.
माना जा रहा है कि ब्रिक देश इस सम्मेलन में आईएमएफ़ औऱ विश्व बैंक जैसी संस्थाओं में और भागीदारी की मांग करेंगे. साथ ही आपसी व्यापार को आगे बढ़ाने पर भी चर्चा की जाएगी. भारतीय वित्त मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि ब्रिक देशों में साझेदारी बढ़ने से विश्व के अन्य आर्थिक तौर पर बड़े देशों को चुनौती दी जा सकेगी.
चीन और ब्राज़ील शिखर सम्मेलन के दौरान व्यापार संबंधों को बढ़ावा देने के लिए अगले पांच वर्षों के लिए रणनीतिक समझौते पर हस्ताक्षर करेंगे.
चारों देशों में बढ़ती साझेदारी के बावजूद चीन नहीं चाहता कि ब्रिक गुट वॉशिंगटन को चुनौती दे. चीन के उप विदेश मंत्री सियू तियांकाई का कहना है, "हम आपसी मदद के लिए साथ आए हैं, बाकी देशों से विवाद पैदा करने के लिए नहीं."
कार्नेगी एंडाउमेंट संस्थान के यूरी दादुश कहते हैं कि ब्रिक देश भले ही पश्चिमी देशों और जापान की आर्थिक ताक़त को संतुलित करने के लिए साथ आए हों, लेकिन वे एक राजनीतिक गठबंधन का रूप नहीं ले सकते. दादुश का मानना है कि चारों देश की मांगे और इच्छाएं अलग हैं और इन देशों को कई चीज़े एक दूसरे से विभाजित करती हैं.
मिसाल के तौर पर चीन और भारत के बीच सीमाओं को लेकर विवाद है तो चीन और रूस संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सदस्यता के लिए ब्राज़ील और भारत की मांग का समर्थन नहीं करते हैं.
जर्मन अंतरराष्ट्रीय मामलों के इंस्चिच्यूट के श्टेफान माएर तो इस बात को भी गंभीरता से लेते हैं कि चीन और रूस में सरकार काफी शक्तिशाली है और उसका नियंत्रण भी ज़्यादा माना जाता है जबकि भारत और ब्राज़ील में लोकतांत्रिक प्रणाली है.
रिपोर्टः सारा बर्निंग/एम गोपालकृष्णन
संपादनः एस गौड़