1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

बुंडेसलीगा का ध्रुवतारा हैम्बर्ग

१७ अगस्त २०१०

आम तौर पर वे अच्छा खेलते हैं, और हर बार चैंपियनशिप के दावेदार के तौर पर उन्हें देखा जाता है. लेकिन अक्सर वे चैंपियनशिप से कुछ दूर रुक जाते हैं. कहना मुश्किल है कि हैम्बर्ग की किस्मत इस बार कैसी होगी.

https://p.dw.com/p/On0l
जीत की ख़ुशीतस्वीर: AP

हैम्बर्ग शहर से इस बार दो टीमें बुंडेसलीगा में हैं. दूसरी लीग से सेंट पाउली ऊपर आई है और हैम्बर्गर एसवी, जिसे आम तौर पर हैमबर्ग ही कह दिया जाता है. यह जर्मनी के सबसे पुराने क्लबों में एक है, 1963 में बुंडेसलीगा की स्थापना के बाद अकेली टीम है, जिसे कभी दूसरी लीग में नहीं खेलना पड़ा. उससे पहले भी यह क्लब हमेशा जर्मन फ़ुटबॉल प्रतियोगिता में पहली पांत में रहा, कभी उसे दूसरी पांत में नहीं उतरना पड़ा.

हैम्बर्ग के और कई रिकॉर्ड हैं. अपने स्टेडियम में उसकी सबसे बड़ी जीत 8-0 से हुई, 1966 में कार्ल्सरुहे के खिलाफ़. और उसकी सबसे बड़ी हार 1954 में आर्मिनिया हनोवर के ख़िलाफ़ हुई थी. नतीजा था 2-10. राष्ट्रीय स्तर पर यह अब तक का अकेला मैच है, जिसमें किसी टीम ने 10 गोल दागे हों.

कई मशहूर खिलाड़ी इस क्लब के साथ जुड़े रहे हैं, मसलन 1950 और 60 के दशक में ऊवे ज़ेलर और 1980 के दशक में फ़ेलिक्स मागाथ, जो इस समय बुंडेसलीगा के सबसे सफल जर्मन कोच माने जाते हैं. मागाथ की कप्तानी में हैम्बर्ग 1982 और 83 में बुंडेसलीगा चैंपियन बना, 1983 में उसी के साथ यूरोपीय चैंपियंस कप विजेता.

पिछले साल टीम में महंगे खिलाड़ियों के बावजूद हैम्बर्ग किसी यूरोपीय प्रतियोगिता के लिए क्वालिफ़ाई नहीं कर पाया. नए कोच आर्मिन फ़ेह टीम के अनुभवी और नए खिलाड़ियों के बीच सामंजस्य पर काफ़ी जोर दे रहे हैं. शाल्के 04 से राष्ट्रीय टीम के खिलाड़ी हाइको वेस्टरमान को लाया गया है, गेंद की कलाबाज़ी के लिए मशहूर म्लादेन पेत्रिच हैं और नीदरलैंड्स के रूड फ़ान नीस्टलरॉय. नये युवा खिलाड़ियों में एल्येरो एलिया और मार्सेल यानज़ेन का ज़िक्र किया जा सकता है. पूर्व कोच ब्रुनो लाबाडिया प्रयोगों पर बहुत ज़्यादा ज़ोर देते थे, जो खिलाड़ियों को अक्सर पसंद नहीं आता था. फ़ेह खिलाड़ियों की परंपरागत ताकत को तरजीह देने वाले कोच हैं.

पिछले सत्र में एक समय दूसरी लीग में उतरने का ख़तरा पैदा हो गया था. फ़ैन्स को उम्मीद है कि अब ऐसा नहीं होगा.

लेखः उज्ज्वल भट्टाचार्य

संपादनः ए जमाल