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बीवी से बिना मर्जी सेक्स क्या बलात्कार नहीं है?

मारिया जॉन सांचेज
३१ अगस्त २०१७

महिला संगठन वैवाहिक बलात्कार को अपराध बनाना चाहती हैं, जबकि भारत सरकार का कहना है कि ऐसा करने से महिलाओं को पतियों को तंग करने का हथियार मिल जायेगा. सरकार को विवाह के संस्था के कमजोर होने का भी डर है.

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Indien Muslimische Hochzeit
तस्वीर: picture alliance/AP Photo/R. Kakade

भारत सरकार ने दिल्ली हाई कोर्ट में वैवाहिक बलात्कार के मुद्दे पर हलफनामा दाखिल करके उन अनेक नागरिकों को निराश किया है जो उससे सामाजिक सुधारों को समर्थन दिये जाने की उम्मीद रखते हैं क्योंकि पिछले दिनों उसने मुस्लिम पतियों के अपनी पत्नियों को एक-साथ तीन बार तलाक-तलाक-तलाक कह कर उनसे संबंध विच्छेद करने की प्रथा का विरोध किया था.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार का कहना है कि वैवाहिक बलात्कार को बलात्कार यानी एक अपराध मान लेने से विवाह संस्था पर प्रतिकूल असर पड़ेगा इसलिए इसे अपराध की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता. भारतीय दंड संहिता भी पंद्रह वर्ष से अधिक आयु की पत्नी के साथ सहवास को बलात्कार नहीं मानती, भले ही वह उसकी मर्ज़ी के बिना ही क्यों न हुआ हो.

सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ वकील, पूर्व राज्यपाल और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के पति स्वराज कौशल ने यह ट्वीट करके इस विवाद को सोशल मीडिया पर भी हवा दे दी है कि वैवाहिक बलात्कार जैसी कोई चीज़ नहीं होती और यदि इसे अपराध मान लिया गया तो जितने पति घरों में मिलेंगे, उससे अधिक जेलों में होंगे. उनके इस ट्वीट में यह स्वीकारोक्ति भी झलकती है कि वैवाहिक बलात्कार की समस्या बहुत व्यापक है वरना घरों से अधिक पति जेलों में क्यों दिखेंगे?

यह एक सर्वमान्य लोकतांत्रिक सिद्धान्त है कि कोई भी संबंध, चाहे वह सामान्य मित्रता हो या प्रेम संबंध या यौन संबंध, दोनों पक्षों की आपसी सहमति पर आधारित होना चाहिए. यदि पत्नी की सहमति के बिना पति उसके साथ जबर्दस्ती संभोग करता है, तो यह स्पष्ट रूप से बलात्कार है. इसे बलात्कार न मानने के पीछे वही पुरानी सामंती मानसिकता है जो पत्नी को पति की संपत्ति समझती है और निर्देश देती है कि पत्नी का धर्म पति की हर इच्छा और आदेश का पालन करना है.

यह भी अब सभी स्वीकार करते हैं कि बलात्कार का संबंध सेक्स से कम और नारी पर अपनी शक्ति के प्रदर्शन से अधिक है. यह पति-पत्नी संबंधों में सत्ता-समीकरण से सीधी-सीधे जुड़ा है और इसका एकमात्र उद्देश्य यह स्थापित करना है कि पति हर हाल में पत्नी का स्वामी है. अक्सर इस प्रकार के वैवाहिक बलात्कार की शिकार पत्नियां पति की शारीरिक और मानसिक हिंसा को झेलने के लिए भी अभिशप्त होती हैं.

वर्ष 2015 में स्वयंसेवी संगठन ‘स्नेह' के मुंबई के धारावी-स्थित सलाह केंद्र में घरेलू हिंसा की शिकायत करने वाली 664 महिलाओं में से 159 महिलाओं ने वैवाहिक बलात्कार की शिकायत भी की थी. बांद्रा-स्थित सलाह केंद्र ‘दिलासा' के पास उपलब्ध आंकड़ों का कहना है कि घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं में से 60 प्रतिशत वैवाहिक बलात्कार की शिकार भी होती हैं.

भारत सरकार के हलफनामे से एक सवाल यह भी खड़ा होता है कि क्या विवाह संस्था का संरक्षण उसकी संवैधानिक ज़िम्मेदारी है या फिर उसकी संवैधानिक जिम्मेदारी लिंगभेद की समाप्ति, पति-पत्नी के बीच समानता पर आधारित संबंध और मानवीय जीवन स्थितियों को सुनिश्चित करने की है? पोलैंड ने 1932 में ही वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित कर दिया था. निवर्तमान सोवियत संघ और पूर्वी यूरोप के समाजवादी देशों में भी यही कानून था. स्केंडिनेवियन देशों में भी इसी व्यवस्था को अपनाया गया है. दक्षिण अफ्रीका, अमेरिका, आयरलैंड, कनाडा, मलेशिया और इस्राएल जैसे अनेक देशों में वैवाहिक बलात्कार को अपराध माना जाता है.

एक समय था जब हिन्दू और रोमन कैथोलिक धर्मों में तलाक की व्यवस्था नहीं थी और उसे विवाह संस्था के लिए खतरा माना जाता था. परंपरावादियों का भी यही तर्क था कि तलाक की व्यवस्था करने से विवाह की सामाजिक संस्था के नष्ट होने का खतरा पैदा हो जाएगा. इस समय यही तर्क भारत सरकार दे रही है और यह मूलतः सामाजिक सुधारों के विरोध में दिया जाने वाला तर्क है.

हाल ही के सुप्रीम कोर्ट के निजता के अधिकार वाले ऐतिहासिक फैसले के बाद तो यह तर्क और भी लचर लगता है क्योंकि इसे मानें तो पत्नी को अपने शरीर और अपनी निजता पर कोई अधिकार ही नहीं है. उसे यह स्वायत्तता भी नहीं है कि वह अपनी इच्छा से यौनकर्म में हिस्सा ले. यहां यह याद दिलाना अप्रासंगिक न होगा कि जस्टिस जे. एस. वर्मा समिति ने इस बात की सिफ़ारिश की थी कि महिलाओं की "पूर्ण यौन स्वायत्तता” सुनिश्चित करने के लिए महिलाओं के अधिकारों के संबंध में संसद में अलग से एक विधेयक लाया जाए और इस बारे में कानून बनाया जाए. आशा है कि मोदी सरकार इस सिफारिश पर ध्यान देगी.