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बीमार करते हैं कुछ प्रोटीन

Priya २५ सितम्बर २०१३

इंफेक्शन के लिए सिर्फ वायरस या बैक्टीरिया ही जिम्मेदार नहीं होते, कुछ तरह के प्रोटीन भी इंसान के लिए खतरनाक हो सकते हैं. दो स्विस रिसर्चरों ने पता लगाया है कि मैडकाव जैसी बीमारी प्रोटीन के इंफेक्शन से पैदा होती है.

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तस्वीर: Fotolia/psdesign1

हममें से हर किसी के शरीर में प्रोटीन होते हैं जो गायों में बीएसई और इंसानों में क्रॉयत्सउेल्ट याकोब बीमारी पैदा करते हैं. वैसे तो वे हानिकारक नहीं हैं, लेकिन अपना रूप इस कदर बदल सकते हैं कि वे वायरस बन जाते हैं और बीमार कर देते हैं. वे तंत्रिका की कोशिकाओं में गांठ की तरह जमे रहते हैं. सबसे खतरनाक हैं विकृत प्रोटीन, जिन्हें प्रियोन कहा जाता है. ये कोशिकाओं में घूमते रहते हैं और अपनी तरह के प्रोटीन को बीमार करने वाला वायरस बनने के लिए प्रेरित करते हैं. इस तरह वे बढ़ने लगते हैं और मस्तिष्क को नुकसान पहुंचाने लगते हैं. इसके बाद इस घातक बीमारी को रोकना नामुकनिन हो जाता है.

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प्रियोन से होता है बीएसईतस्वीर: AP

हर शरीर में वायरस

वैज्ञानिकों को प्रियोन का पता 1980 के दशक में चला, जब वे बीएसई पर काम कर रहे थे, जिसे बोलचाल की भाषा में 'मैड काव डिसीज' भी कहते हैं. बाद में नोबेल पुरस्कार जीतने वाले स्टैनली प्रूसीनर ने पहली बार बताया कि बीमारी के लिए एक प्रोटीन जिम्मेदार है. फ्लोरिडा में स्क्रिप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट में काम करने वाले स्विस रिसर्चर चार्ल्स वाइसमन ने बाद में साबित किया कि यह धारणा सचमुच सही थी. और इतना ही नहीं डॉयचे वेले को एक साक्षात्कार में उन्होंने बताया, "हमने इस बात का भी सबूत दिया कि यह ऐसा प्रोटीन है जो आम तौर पर हमारे मस्तिष्क में ही रहता है."

बीमारी को उकसाने वाला अपने ही शरीर का उत्पाद है और यह बात एकदम नई थी. क्रॉयत्सफेल्ट याकोब बीमारी का शिकार होने का खतरा हम सबमें है. लेकिन यह प्रोटीन शायद ही कभी अचानक बीमार करने वाले वायरस का रूप ले लेते हैं. ज्यूरिख यूनिवर्सिटी के आड्रियानो आगुत्सी ने पाया, "इस वायरस को सक्रिय करने के लिए आम तौर पर एक वायरस को बाहर से आना होता है." मसलन बीएसई के शिकार पशु का मांस खाने से. आगुत्सी का कहना है कि शरीर का विकृत प्रोटीन आंत और रक्तवाहिनी से होकर इंसान के तंत्रिकातंत्र में पहुंच जाता है.

Charles Weissmann und Adriano Aguzzi
वाइसमन और आगुत्सी

बैक्टीरिया से ताकतवर

प्रियोन बहुत ताकतवर होते हैं. ऑपरेशन की छूरियों या दूसरे उपकरणों पर वे तब भी चिपके रहते हैं और इंफेक्ट करने की हालत में होते हैं, जब उन्हें बहुत ही असरदार डिसइंफेक्टेंट फॉर्मलडिहाइड से धोया जाता है. वाइसमन बताते हैं, "ऐसे करीब 100 मामले हैं जिनमें ऑपरेशन की वजह से मरीज को प्रियोन का इंफेक्शन हुआ है, क्योंकि उस समय पता नहीं था कि यह वायरस क्या है और इसे किस तरह निष्क्रिय किया जा सकता है."

वे एक मरीज के बारे में बताते हैं. डॉक्टरों ने जिसके मस्तिष्क में इलेक्ट्रोड घुसाया था, वह मरीज क्रॉयत्सफेल्ट याकोब बीमारी से ग्रस्त था. फॉर्मेलडायहाइड्रेड से डिसइंफेक्ट करने के बाद डॉक्टरों ने उसकी इलेक्ट्रोड का इस्तेमाल दूसरे मरीज पर किया. बाद में वह भी क्रॉयत्सफेल्ट याकोब बीमारी से संक्रमित हो गई और जान गंवा बैठी. चार्ल्स वाइसमन ने अपने शोध में इस बात की पुष्टि की है कि प्रियोन को निष्क्रिय करने के लिए फॉर्मेलडिहाइड से डिसइंफेक्ट करना काफी नहीं है. उसे मारने के लिए 130 डिग्री सेल्सियस पर 20 मिनट तक औजार को गर्म करना जरूरी है.

फिलहाल इस घातक बीमारी को रोकने या धीमा करने के लिए दवा की खोज जरूरी है. साल 2000 से यूरोपीय संघ के देशों में इस बीमारी का शिकार होने वाले लोगों की संख्या लगातार घट रही है. इसकी वजह यह भी है कि वैज्ञानिक संक्रामक प्रोटीन के बारे में 20 साल पहले के मुकाबले ज्यादा जानते हैं. चार्ल्स वाइसमन और आड्रियानो आगुत्सी का भी इसमें महत्वपूर्ण योगदान है.

रिपोर्ट: ब्रिगिटे ओस्टराथ/एमजे

संपादन: ईशा भाटिया

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