बीजेपी की जीत के मायने
२३ दिसम्बर २०१४हिंदू बहुल जम्मू में भारतीय जनता पार्टी ने शानदार प्रदर्शन किया है लेकिन घाटी ने उसके सांप्रदायिक एजेंडे को नकार दिया. जम्मू कश्मीर में नरेंद्र मोदी ने जानबूझकर 44 प्लस का टार्गेट रखा था, उन्हें पता था कि यह टार्गेट आसानी से नहीं मिलने वाला है. उन्हें कार्यकर्ताओं को जोश में लाने के लिए इसकी जरूरत थी. बीजेपी को सभी 25 सीटें जम्मू क्षेत्र से मिलीं, जहां हिंदू मतदाता बहुसंख्या में है. वे हिंदू मतदाताओं को लुभाने में सफल रहे हैं लेकिन घाटी में उनका जादू नहीं चला. भले ही उन्होंने कांग्रेस और अब्दुल्लाह परिवार पर निशाना साधा हो या फिर दीवाली कश्मीरियों के साथ मनाई हो. उन्हें अपनी छवि पर और काम करने की जरूरत है.
मोदी का कद बढ़ा या घटा
जम्मू कश्मीर में बीजेपी को मिले मतों से यह बात भी साफ हो गई है कि लोकप्रियता के बावजूद नरेंद्र मोदी जम्मू और कश्मीर के बीच गहरी खाई को भर पाने में विफल रहे हैं. मई में हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी को जम्मू कश्मीर की छह में तीन सीटों पर जीत हासिल हुई थी. राज्य के 32 फीसदी मतदाताओं ने उसे वोट दिया था. लेकिन विधानसभा चुनाव में यह वोट शेयर घटकर 23 फीसदी रह गया है.
राज्य में 9 फीसदी वोटर ऐसे हैं जिन्होंने लोकसभा चुनाव में बीजेपी को वोट दिया लेकिन विधानसभा चुनाव में मुंह फेर लिया. झारखंड में भी ऐसा ही कुछ हाल दिखा लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के विकास की गाड़ी पर सवार बीजेपी ने 41 फीसदी वोट पाए थे और राज्य की 14 में से 12 लोकसभा सीटें जीती थीं लेकिन ताजा विधानसभा चुनाव में उसे 32 फीसदी ही वोट मिले हैं.
बीजेपी के सामने विकल्प
बीजेपी अगर नतीजों को गंभीरता से ले तो उसे तय करना होगा कि उसका असली एजेंडा क्या है, विकास या धर्म के नाम पर राजनीति. यदि मतदाता विकास के एजेंडे को गंभीरता से लेते तो उसे घाटी में जीत हासिल होती. लेकिन यह नतीजे मोदी के लिए चुनौती हैं जो पिछले कुछ महीनों में विकास के एजेंडे पर जोर देते रहे हैं.
पार्टी का हिंदूवादी धड़ा यह तर्क जरूर दे सकता है कि धार्मिक ध्रुवीकरण ने जम्मू में उसे बड़ी बढ़त दिलाई है लेकिन यदि पिछले दिनों धर्मांतरण जैसे विवादास्पद मुद्दे नहीं होते तो पार्टी और बेहतर प्रदर्शन कर सकती थी. इससे घाटी के लोगों को भी झटका लगा है जो विकास और सुशासन के लिए तरस रहे हैं. मोदी के सामने विकास पुरुष की छवि को बचाने की चुनौती है.