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बिलावल भुट्टो कुछ कर पाएंगे या नहीं?

शामिल शम्स
१८ अक्टूबर २०१६

पाकिस्तान में बिलावल भुट्टो अपनी पार्टी में नई जान फूंकने में जुटे हैं. लेकिन बात बनती नहीं दिख रही है. भुट्टो खानदान के इस चश्मो चिराग में अपनी मां बेनजीर भुट्टो वाला करिश्मा नजर नहीं आता.

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Pakistan Bilawal Bhutto Zardari
तस्वीर: picture-alliance/dpa

28 साल के बिलावल के सामने चुनौती बड़ी है. चुनौती उस पार्टी को फिर से खड़ा करने की है, जिसे कई सियासी पंडित खत्म मान चुके हैं. पार्टी में नई जान फूंकने के लिए बिलावल को अपनी मां बेजनीर भुट्टो और नाना जुल्फिकार अली भुट्टो जैसे करिश्मे की जरूरत है. नौ साल हो गए जब बेनजीर भुट्टो की एक चुनावी रैली के दौरान हत्या कर दी गई.

बेनजीर भुट्टो ने अपनी वसीयत में बिलावल को अपना उत्तराधिकारी बनाया था. लेकिन वो अब तक सियासत में अपनी जगह बनाने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं. हालांकि इसके लिए उनके पिता और पूर्व राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने बेटे के सियासी करियर को परवान चढ़ाने के लिए कई कोशिशें की हैं. जानकार मानते हैं कि बिलावल में न तो नेतृत्व की कोई खास क्षमताएं हैं और न ही आम लोगों के बीच उन्हें अपने मां या नाना जैसी लोकप्रियता हासिल है.

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बेनजीर की मौत के बाद पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी ने 2008 का चुनाव जीता और जरदारी देश के राष्ट्रपति बने. लेकिन 2013 में पार्टी को बुरी हार का सामना करना पड़ा और वो सिंध तक सिमट कर रह गई जिसे भुट्टो खानदान का सियासी गढ़ कहा जाता है. जरदारी की सरकार पर भ्रष्टाचार, लचर प्रशासन, भाई-भतीजावाद और कट्टरपंथियों को काबू न करने के आरोप लगे. पाकिस्तानी पीपुल्स पार्टी के समर्थक भी इस बात से खफा रहे कि उनकी अपनी सरकार बेनजीर के कातिलों को कानून के कठघरे तक नहीं ला सकी.

पाकिस्तान में बहुत से लोग बिलावल का सियासी भविष्य बहुत डांवाडोल मानते हैं क्योंकि पीपीपी अपने अस्तित्व के लिए जूझ रही है. उनका कहना है कि पीपीपी बेनजीर की मौत के साथ ही 2007 में मर गई थी. आज की पीपीपी तो जरदारी की पार्टी है और उसकी विचारधारा भी अलग ही है. बेनजीर भुट्टो के करीबी सहयोगी रहे नहीद खान ने अब खुद को पार्टी से अलग कर लिया है. वो कहते हैं, "आज की पीपीपी की दिलचस्पी सिर्फ सत्ता हासिल करने में है. उन्होंने असली पीपीपी की विचारधारा को छोड़ दिया है.” वो कहते हैं कि बिलावल अगर पार्टी को फिर से खड़ा करना चाहते हैं तो उन्हें वापस अपनी मां और नाना की विचारधारा को अपनाना चाहिए और अपने पिता से दूरी बना लेनी चाहिए.

Asif Ali Zardari Präsident Pakistans zu Besuch in Indien
तस्वीर: dapd

लेकिन बेनजीर की मौत के बाद पाकिस्तान में सियासत आगे बढ़ गई है. राजनीतिक आसमान में नए दावेदार आ गए हैं. क्रिकेटर से राजनेता बने इमरान खान युवाओं में खूब लोकप्रिय हैं और भ्रष्टाचार के खिलाफ बाकायदा मुहिम चला रहे हैं. इसलिए सत्ता में आने की उनकी संभावनाएं बिलावल से कहीं ज्यादा है. कराची के एक छात्र अहमद बिन मतीन कहते हैं, "सबसे बड़ी बात है सिस्टम को बदलना. भ्रष्टाचार को खत्म करना. हम राजनेताओं की नैतिकता और जबावदेही पर जोर देना चाहते हैं.”

हालांकि अब भी पाकिस्तान में बेनजीर भुट्टो बहुत से उदारवादियों और बुद्धिजीवियों को अपनी तरफ खींचती हैं जो मानते हैं कि बेनजीर ने पाकिस्तान की एकता और लोकतंत्र के लिए अपनी जान कुरबान कर दी. लाहौर में एक पीपीपी कार्यकर्ता ने डीडब्ल्यू को बताया, "पीपीपी अब भी पाकिस्तान में एक वास्तविक प्रगतिशील पार्टी है. यही वो पार्टी है जो सैन्य जनरलों और देश में बढ़ते कट्टरपंथ से मुकाबला कर सकती है. भुट्टो हमेशा उदार लोकतंत्र के प्रतीक के तौर पर हमारी प्रेरणा रहेंगे.” हालांकि प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के समर्थक इससे सहमत नहीं होंगे.