बारिश न होने से खत्म हुई माया
१० नवम्बर २०१२पर्यावरण में बदलाव का आधुनिक सभ्यता पर क्या असर पड़ रहा है, यह जानने के लिए किए एक रिसर्च से पता चलता है कि माया नाम की मानव सभ्यता प्रकृति में बदलावों को नहीं झेल सकी और खत्म हो गई. अकाल, जंग और लंबे समय से चले आ रहे गीले मौसम में बदलाव के कारण आए सूखे ने एक हंसती खेलती सभ्यता का नामोनिशान मिटा दिया. अंतरराष्ट्रीय रिसर्चरों की एक टीम ने पर्यावरण के बारे में एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार की है, जिसमें 2000 साल से लेकर अब तक के गीले और सूखे मौसम का ब्यौरा है.
आधुनिक काल में जिसे मध्य अमेरिका का बेलिज कहते हैं, 300 से 1000 सदी के बीच यहीं माया सभ्यता बसती थी. गुफाओं में टपकते पानी के बीच बचे हुए खनिजों और माया के छोड़े पुरातात्विक सबूतों के आधार पर तैयार रिसर्चरों की रिपोर्ट साइंस जर्नल में गुरुवार को छपी है. इस समय का गर्म होता वातावरण तो इंसान की गतिविधियों की देन है जो ग्रीन हाउस गैसों के बढ़ते उत्सर्जन के कारण है. लेकिन माया सभ्यता के खात्मे के दौरान इंसान की गतिविधियां नहीं बल्कि मौसम के मिजाज में भारी बदलाव की वजह से ऐसा हुआ.
रिपोर्ट तैयार करने वालों में शामिल पेन स्टेट यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डगलस केनेट बताते हैं कि उस दौर में बदलते मौसम के कारण आई अत्यधिक नमी ने कभी माया सभ्यता के विकास को रोका तो कभी सूखे मौसम और अकाल के शताब्दी भर चले दौर ने. ज्यादा नमी वाले मौसम का मतलब था ज्यादा खेती और सभ्यता की आबादी का बढ़ना. इसके साथ ही राजाओं का प्रभाव भी बढ़ता था क्योंकि वो बारिश होने का श्रेय लेते थे जिससे समृद्धि आती थी. ये राजा खेती के लिए अच्छा मौसम बना रहे, इसके लिए लोगों को बलि भी चढ़ा देते.
आधुनिक सभ्यता से समानता
जब बारिश का दौर धीरे धीरे सूखे मौसम में बदलने लगा तो राजाओं की सत्ता ढहने लगी. इसके साथ ही संसाधनों के घटने के कारण आपसी लड़ाइयों का सिलसिला भी तेज हो गया. केनेट बताते हैं, "आप कल्पना कर सकते हैं कि माया इस जाल में फंस गई. जब तक बारिश होती रही उसने सब लोगों को साथ रखा. जब आप अच्छे दौर में होते हैं तो सचमुच सब अच्छा होता है लेकिन जब हालात खराब होते हैं तो फिर कुछ काम नहीं आता. उसमें राजा तरह तरह के उपाय तो कर रहे थे लेकिन उनका कोई असर नहीं हो रहा था. ऐसे में लोग उनके अधिकारों पर सवाल उठाने लगे."
माया राजाओं का राजनीतिक पतन साल 900 के करीब हुआ, जब लंबे समय से चले आ रहे सूखे ने उनके प्रभाव को खोखला कर दिया. हालांकि माया की आबादी उसके बाद भी करीब एक शताब्दी और रही. साल 1000 से 1100 के बीच पड़े भयानक सूखे ने माया आबादी के बड़े केंद्रों को अपना आवास छोड़ने पर मजबूर कर दिया. जब माया सभ्यता अपने शिखर पर थी उन दिनों भी पर्यावरण पर इंसानों का असर था. उस वक्त ज्यादातर इंसान खेती करते थे और इसकी वजह से भूमि का कटाव बहुत बढ़ गया था. केनेट के मुताबिक, "आधुनिक संदर्भ में देखें तो कुछ समानताएं हैं जिनकी वजह से हमें अफ्रीका और यूरोप के लिए चिंता करनी चाहिए." अगर पर्यावरण में बदलाव का असर खेती पर पड़ता है तो इसकी वजह से अकाल पड़ेगा और सामाजिक अस्थिरता आएगी. इसके बाद यह जंग दूसरे हिस्से में रह रहे लोगों को भी अपनी चपेट में लेगी, ठीक वैसे ही जैसे कि माया सभ्यता में हुआ था.
एनआर/एमजे (रॉयटर्स)