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बायोडीजल का फायदा या नुकसान

९ दिसम्बर २०१०

दुनियाभर में आजकल बायोडीजल की खूब चर्चा है. साथ ही यह सवाल भी उठ रहे हैं कि अलग तरह की फसलें या मीठे चुकंदरों से बना यह डीजल पर्यावरण के लिए फायदेमंद है या नुकसानदेह.

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तस्वीर: Picture-Alliance /dpa/AP

एक तरफ यह स्पष्ट है कि जो कारें इस तरह के बायोडीजल से चलती हैं, उनसे बहुत कम उत्सर्जन होता है. लेकिन दूसरी तरफ अगर इस तरह की फसलों को उगाने के लिए वर्षावनों को नष्ट किया जाता है जैसा कि इंडोनेशिया और ब्राजील में हो रहा है, तब इसका क्या फायदा. इसलिए व्यापार पर नियंत्रण रखने के लिए यूरोपीय संघ ने उत्पादकों के लिए एक विशेष तरह का सर्टिफिकेट तैयार किया है. इसे उत्पादकों और व्यापारियों को जनवरी 2011 से पेश करना होगा. इस सर्टिफिकेट के जरिए यह सुनिश्चित किया जाएगा कि जब उत्पादक यूरोपीय संघ के देशों या देशों में कंपनियों के साथ बिजनेस करना चाहते हैं तो उनके बायो ईंधन यानी फ्यूल्स पर्यावरण को नुकसान न पहुंचाने वाले तरीकों के साथ बनाए गए हैं. यूरोपीय संघ के नए कानूनों के चलते दुनियाभर में कंपनियों की जांच करने वालों में से एक हैं इंगो वेंत्सल. वे बताते हैं, "उदाहरण के लिए हम इंडोनेशिया जैसे देश में स्पष्ट रूप से कोई विभाग स्थापित नहीं कर सकते हैं जो किसानों या कंपनियों की जांच करें. इसलिए वैश्विकरण के दौर में हमें अलग तरह का ढांचा बनाना होगा ताकि हम अपनी शर्तों पर नियंत्रण रख सकें और इसलिए मेरे हिसाब से सर्टिफिकेट के जरिए ऐसा करना पर्याप्त माध्यम है. "

Tankstelle
तस्वीर: DW

इसका मतलब यह है कि जो भी बायो फ्यूल्स के निर्माण से जुड़ा है उसे इस तरह का सर्टिफिकेट पेश करना होगा, चाहे वह किसान हो, इन उत्पादों के ट्रांस्पोर्ट के काम से जुड़ा हो या फिर या उन्हें बेचने में लगा हो. इंगो वेंत्सल बताते हैं कि वह निर्माण की पूरी व्यवस्था की जांच करते हैं. "हमारी इच्छा है कि हम पर्यवारण की रक्षा करें. हम नहीं चाहते हैं कि वनों को नष्ट किया जाए. जो भी दलदलें हैं उन्हें खेत बनाया जाए या हरे भरे इलाकों में औद्योगिक तरीके से खेती बाड़ी हो. हम यह भी सुनिश्चित करना चाहते हैं कि इन बायो फ्यूएल्स का इस्तेमाल भी हो और ऐसा न हो कि हम कभी 1000 टन की बात करें और फिर 10 000 टन की."

इंगो वेंत्सल बताते हैं कि अब तक ब्राजील, गुआटेमाला या पाकिस्तान जैसे देशों में किसी तरह की कंपनियों को सर्टिफिकेट नहीं दिए गए हैं. यह तीन देश उदाहरण के लिए यूरोपीय संघ को इथानोल बेचते हैं जो बायोफ्यूलों में इस्तेमाल होता है. "मुझे ऐसा लगता है कि नए नियमों को देखते हुए कई देशों के लिए सबसे बड़ी समस्या यह है कि कंपनियों को अपने काम के हर कदम को बाकायदा दस्तावेज का रूप देना होगा. यानी उन्हें बताना है कि वह एक हेक्टेयर जमीन पर कितनी खाद का इस्तेमाल करते हैं, कितने घंटे मजदूर काम करते हैं, कितना तेल वह इस प्रक्रिया में पैदा कर सकते हैं, और कितना वह बेचते हैं.

Biodiesel
तस्वीर: AP

यूरोपीय संघ का सर्टिफिकेट पाना फिलहाल बहुत ही महंगा साबित हो सकता है." विशेषज्ञों को आशंका है कि सिर्फ बड़ी कंपनियां ही इसे पाने के योग्य हैं. क्योंकि कंपनी के आकार से तय होगा कि उसे सर्टिफिकेट के लिए 1000 यूरो यानी करीब 60,000 रुपये देने हैं या छह लाख से भी ज्यादा. फिलहाल जर्मनी और ऑस्ट्रिया ही यूरोपीय संघ के अंदर नए कानून का पालन कर रहे हैं. समस्या यह है कि अब यूरोपीय कंपनियों को भी सेर्टिफिकेट के जरिए दिखाना होगा कि वे अपने निर्माण के साथ पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचा रहे हैं. कई किसानों के मुताबिक यह बात ठीक नहीं है. क्रिस्टियान बोक वर्षों से जर्मनी के राज्य सेक्सनी में सरसों उगाते हैं और हर साल 9,000 टन सरसों से तेल निकालते हैं. वे कहते हैं कि जर्मनी में इस तरह के उत्पादन के लिए जरूरी है कि टिकाऊ तरीकों का इस्तेमाल किया जाए. "मुझे कभी कभी ऐसा लगता है कि मैं राजनेताओं के खेल में गेंद जैसा हूं. हर साल कानून बदल रहे हैं और बाधाएं खड़ी की जा रही हैं. सर्टिफिकेट इसी तरह की नई बाधा है."

क्रिस्टियान बोक को 7000 यूरो देकर सर्टिफिकेट मिला है. विशेषज्ञों का मानना है कि छोटी कंपनियों के पास इतना पैसा नहीं है और शायद उन्हें यूरोप में या तो अपना धंधा बंद करना होगा या उन्हें सिर्फ यूरोपीय संघ के बाहर की कंपनियो के साथ काम करना होगा. लेकिन दूसरों का मानना है कि उत्पादक और उपभोकता के लिए पारदर्शिता बहुत जरूरी है.

रिपोर्टः डॉयचे वेले/प्रिया एसेलबॉर्न

संपादनः ए कुमार

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