बादलों में बैठकर मौसम को समझते जर्मन वैज्ञानिक
२८ अप्रैल २०१७ये रिसर्च स्टेशन आल्प्स में त्सुगश्पित्से चोटी पर स्थित है. 3,000 मीटर की ऊंचाई वाली ये जर्मनी की सबसे ऊंची चोटी है. एक रोपवे के जरिये घाटी से ऊपर पहुंचा जाता है. शिखर के ठीक नीचे जर्मनी का सबसे ऊंचा रिसर्च स्टेशन है, जिनका नाम है श्नीफेर्नहाउज. वैज्ञानिकों के दस अलग अलग ग्रुप यहां साल भर के मौसम और जलवायु के आंकड़े जुटाते हैं. हर तरह के बदलाव को रजिस्टर किया जाता है.
ऊंचाई और साफ हवा के चलते ये सेंटर जलवायु परिवर्तन के विश्लेषण का जबरदस्त मौका देता है. वैज्ञानिक यह भी देखते हैं कि ग्लेशियर कैसे पिघल रहे हैं. इस सेंटर में काम करने वाले पर्यावरण विज्ञानी प्रोफेसर मिषाएल बिटनर बताते हैं, "वैज्ञानिकों ने साथ में खोज की और कहा, हम यहां ऊपर अपनी क्षमताओं को साथ लाएंगे. इस ग्रुप में शामिल वैज्ञानिक खास एरिया के एक्सपर्ट हैं. इसका इस्तेमाल कर हम धरती के सिस्टम को बेहतर समझ सकते हैं."
बेहद उन्नत उपकरणों की मदद से वैज्ञानिक आल्प्स की आबोहवा में जलवायु परिवर्तन के हानिकारक प्रभावों को दर्ज करते हैं. सिर्फ कार्बन डायॉक्साइड ही नहीं, बल्कि नाइट्रस ऑक्साइड भी मापी जाती है. ये गैसें खेती में खाद छिड़कने से निकलती हैं. हाल के बरसों में जुटाये गए आंकड़े बता रहे हैं कि ग्रीन हाउस गैसों के बढ़ते उत्सर्जन के लिए इंसान जिम्मेदार है.
एक लेजर मेजरिंग मशीन से वैज्ञानिक पूरे वायुमंडल का तापमान भी माप सकते हैं. स्टेशन से 100 किलोमीटर ऊपर आकाश का तापमान भी. धरती पर हो रहे जलवायु परिवर्तन के परिणाम बहुत व्यापक हैं. पर्यावरण विज्ञानी बिटनर कहते हैं, "धरती की तुलना में वायुमंडल का तापमान ज्यादा बढ़ता है, हम उस पर नजर रखते हैं."
वैज्ञानिक बादलों में छुपे रहस्यों को समझना चाहते हैं. मेजरिंग तकनीक के जरिये वे एक प्रकाश छोड़ते हैं, बादल इसे परावर्तित करेंगे. परावर्तित प्रकाश के कलर स्पेक्ट्रम की समीक्षा करने से मौसम विज्ञानियों को पता चलता है कि बारिश होगी या बर्फ गिरेगी. मौसम विज्ञानी फ्लोरियान एवाल्ड कहते हैं, "इससे हमें बादलों की यथास्थिति और उनके कंपोजिशन की जानकारी मिलती है."
स्टेशन की ऊंचाई आदर्श है, वैज्ञानिक बादलों के ऊपर होते हैं. आंकड़ों के जरिये मशीनें टेस्ट की जाती हैं. जल्द ही ऐसी मशीनों को जर्मनी के खोजी विमान में लगाया जाएगा, फिर दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन संबंधी आंकड़े जुटाए जाएंगे.
रिपोर्ट: ओएसजे/एके