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बाइडेन के एशिया दौरे में क्या है खास?

राहुल मिश्र
२१ मई २०२२

अमेरिका का राष्ट्रपति बनने के बाद जो बाइडेन की यह पहली एशिया यात्रा तो है ही, लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध, चीन को लेकर चिंताओं, और उत्तर कोरिया की बेलगाम मिसाइल प्रक्षेपण गतिविधियों ने इस यात्रा को और अहम बना दिया है.

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दक्षिण कोरिया में राष्ट्रपति जो बाइडेन से साथ प्रधानमंत्री पार्क जिन
दक्षिण कोरिया में राष्ट्रपति जो बाइडेन से साथ प्रधानमंत्री पार्क जिन तस्वीर: Evan Vucci/AP Photo/picture alliance

जो बाइडेन एशिया के अहम दौरे पर हैंजिसमें वो दक्षिण कोरिया और जापान की यात्रा कर रहे हैं. बाइडेन प्रशासन से अमेरिका के तमाम एशियाई दोस्तों को काफी उम्मीदें हैं, लेकिन उम्मीदें जितनी ज्यादा होती हैं, निराशा हाथ लगने का डर भी उतना ज्यादा होता है.

मिसाल के तौर पर दक्षिण कोरिया को ही ले लीजिये जो कि राष्ट्रपति बाइडेन की यात्रा का पहला पड़ाव है. कोरियन प्रायद्वीप में शांति के पक्षधर मून जे-इन के कार्यकाल के बाद अब देश में दक्षिण पंथी यून सुक-योल की सरकार है. 

चुनावी प्रचार के समय से ही सुक-योल उत्तरी कोरिया को लेकर काफी आक्रामक रहे हैं. 10 मई 2022 को सत्ता संभालने के बाद से फिलहाल उन्होंने दक्षिण कोरिया की सुरक्षा और सामरिक व्यवस्था सुधारने से जुड़ी कोई घोषणा तो नहीं की है लेकिन यह खबरें जरूर आयीं कि क्वाड प्लस में कोरिया शिरकत कर सकता है. 

दूसरी ओर खतरे की आहट पाते ही पड़ोसी उत्तरी कोरिया ने सुक-योल के सत्ता में आने के उपलक्ष्य में 4 मई को एक और बैलिस्टिक मिसाइल का टेस्ट कर डाला. अपने बयानों में सुक-योल ने अमेरिका-प्रायोजित थाड (टर्मिनल हाई अल्टीट्यूड एरिया डिफेंस) को दक्षिण कोरिया में तैनात करने की बात कही थी. उत्तरी कोरिया पिछले कई सालों से इसके खिलाफ रहा है. 

राष्ट्रपति जो बाइडेन का यह पहला एशियाई दौरा है
राष्ट्रपति जो बाइडेन का यह पहला एशियाई दौरा हैतस्वीर: Lee Jin-man/AP Photo/picture alliance

4 मई का उत्तर कोरियाई मिसाइल परिक्षण सुक-योल के लिए एक सीधा और कड़ा संदेश है कि कड़वाहट और जंग की दिशा में किम जोंग-उन और उत्तरी कोरिया उनसे काफी तेजी से भाग सकते हैं. आखिरकार दशकों से अंतरराष्ट्रीय बॉयकॉट और अमेरिका-दक्षिण कोरिया की धमकियां झेल रहे उत्तरी कोरिया के पास खोने को भी तो कुछ नहीं है.

आशंका जताई जा रही है कि बाइडेन की यात्रा के दौरान भी उत्तर कोरिया मिसाइल या परमाणु परीक्षण करेगा. बाइडेन की सियोल यात्रा के दौरान इस मुद्दे पर व्यापक चर्चा होनी है. बिना अमेरिकी सहायता के दक्षिण कोरिया ना उत्तर कोरिया से निपट सकता है और ना ही उसे परमाणु निशस्त्रीकरण के लिए मना सकता है. 

हालांकि चीन के साथ अमेरिका के तल्ख संबंधों के चलते ऐसा मुश्किल है कि चीन इस मसले पर तटस्थ रहे, और तो और, अब तो रूस का भी दखल बढ़ सकता है.

यह भी पढ़ेंः उत्तर कोरिया फिर क्यों हथियारों का परीक्षण कर रहा है

इन तमाम पहलुओं के चलते दक्षिण कोरिया के लिए बेहतर होगा कि वह क्वाड प्लस के चक्कर में पड़ कर उड़ता तीर ना ले और आप अपनी फजीहत ना कराये. एक अच्छा दोस्त और सहयोगी होने के नाते अमेरिका को भी क्वाड प्लस में कोरिया को लाने से पहले उसकी सुरक्षा चाक चौबंद करनी चाहिए.

दक्षिण कोरियाई राष्ट्रपति के साथ जो बाइडेन
दक्षिण कोरियाई राष्ट्रपति के साथ जो बाइडेनतस्वीर: Song Kyung-Seok/REUTERS

अपनी यात्रा के दूसरे चरण में बाइडेन जापान पहुंचेंगे जहां वो बेहद महत्वपूर्ण क्वाड शिखर वार्ता में शिरकत करेंगे. उम्मीद की जा रही है कि इस बैठक के दौरान बाइडेन इंडो-पैसिफिक इकनोमिक फ्रेमवर्क की घोषणा भी करेंगे. अमेरिका और इंडो-पैसिफिक समर्थक तमाम देशों के सामने यह बड़ी चुनौती है कि कैसे वह इस क्षेत्र को एक व्यापक आर्थिक, सामरिक, और कूटनीतिक ढांचा मुहैया करायें.

इंडो-पैसिफिक इकनोमिक फ्रेमवर्क के लांच की घोषणा अमेरिका आसियान शिखर वार्ता के दौरान होनी थी लेकिन आसियान देशों के ढुलमुल रवैये के चलते अमेरिकी प्रशासन ने इसे क्वाड शिखर बैठक के एजेंडा में डाल दिया.

जानकारों का मानना है कि इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क इस क्षेत्र में आर्थिक निवेश के अंतरराष्ट्रीय मानदंडों को तय करने, सप्लाई चेन व्यवस्था को ज्यादा विश्वसनीय बनाने, भ्रष्टाचार से निपटने और कब्जे की नीयत से होने वाले निवेश संबंधी खतरनाक गतिविधियों को रोकने का एक जरिया बन सकता है और चीन की बेल्ट और रोड परियोजना का अच्छा विकल्प प्रस्तुत कर सकता है. 

जिस आर्थिक दुर्दशा से आज श्री लंका गुजर रहा है वह कमोबेश इन्हीं गलतियों का नतीजा है. क्वाड की एक और बड़ी जिम्मेदारी है छोटे और मझोले देशों की सुरक्षा.

जो बाइडेन जापान भी जायेंगे और क्वाड की बैठक में भारतीय प्रधानमंत्री से मिलेंगे
जो बाइडेन जापान भी जायेंगे और क्वाड की बैठक में भारतीय प्रधानमंत्री से मिलेंगेतस्वीर: Jonathan Ernst/REUTERS

चीन और सोलोमन आइलैंड के बीच रक्षा समझौते के बाद से आस्ट्रेलिया की सुरक्षा और नौसैनिक सुरक्षा पर सीधा असर पड़ा है. दूसरी और जहां भारत गलवान में चीनी आक्रामकता से दो-चार हो रहा है तो वहीं जापान की सेनकाकू आइलैंड को लेकर वैसी ही चिंता और परेशानी है. शिखर वार्ता में इन चारों देशों को आपसी सलाह मशविरे और सहयोग के जरिये इन चिंताओं के समाधान की और जोर देना चाहिए 

क्वाड के चारों देश इस बात से बखूबी वाकिफ हैं कि चीन से निपटना किसी महा-रणनीति का हिस्सा नहीं, उनकी रोजमर्रा की सुरक्षा जरूरतों का हिस्सा बन चुका है. ऐसे में रूस पर अमेरिका की चिंताएं और उस और क्वाड देशों का ध्यान बंटाने की कोशिश अच्छे परिणाम नहीं दे सकेगी.

जहां तक अमेरिका का सवाल है तो बाइडेन की एशिया यात्रा के जरिये वह संदेश देना चाहता है कि रूस पर निगाहें गड़ाए रखने और यूक्रेन को इस लड़ाई में करोड़ों डालर की मदद की घोषणा के बावजूद वह इंडो-पैसिफिक को और चीन को ना भूला है ना उसे भूलेगा. एक महाशक्ति के लिए यह तर्कसंगत और न्यायपरक बात है कि वह दोस्तों और प्रतिद्वंदियों को ना भूले. हालांकि भूलने याद रखने की कवायद से बड़ा सवाल है वादों को निभाने की क्षमता. 

अमेरिका और क्वाड के देश एक दूसरें से और बाकी दोस्तों से किये वादों को कैसे निभा पाते हैं इसकी झलक क्वाड बैठक में दिखेगी और उसके बाद के आने वाले दिन, महीने, और साल में भी.

(राहुल मिश्र मलाया विश्वविद्यालय के एशिया-यूरोप संस्थान में अंतरराष्ट्रीय राजनीति के वरिष्ठ प्राध्यापक हैं. आप @rahulmishr_ ट्विटर हैंडल पर उनसे जुड़ सकते हैं)