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बहुत सारे विकल्प नहीं हैं भारत के पास

कुलदीप कुमार१९ सितम्बर २०१६

उड़ी में सैनिक अड्डे पर आतंकी हमले के बाद प्रधानमंत्री मंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार विकल्पों पर विचार कर रही है. कुलदीप कुमार का कहना है कि भारत के पास विकल्पों की सूची पहले से तैयार होनी चाहिए थी.

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Pakistan New Delhi - Sitzung nach Uri Terrorangriff
तस्वीर: UNI

नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से अब तक उनकी सरकार की पाकिस्तान के प्रति नीति पूरी तरह से अस्पष्ट रही है. पहले उन्होंने सोचा कि साड़ी और आम के तोहफे भेजकर पाकिस्तान के साथ संबंध सुधारे जा सकते हैं, फिर उन्होंने अचानक नवाज शरीफ के जन्मदिन और उनकी पौत्री की शादी के अवसर पर लाहौर पहुंचकर सबको चौंका दिया. लेकिन इसके कुछ ही दिन बाद पठानकोट में वायुसेना के ठिकाने पर आतंकवादी हमले ने सिद्ध कर दिया कि इस नीति का कोई परिणाम निकलने वाला नहीं है. इसके बाद भी पाकिस्तान के प्रति कठोर नीति अपनाने के बजाय उसके जांच दल को इस संवेदनशील सैन्य ठिकाने में आने की इजाजत की गई जबकि उसमें पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई का एक अधिकारी भी शामिल था.

रविवार को उड़ी में सेना के ठिकाने पर हुए आतंकवादी हमले के बाद भी इसी तरह के बयान सुनने में आ रहे हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने घोषणा की है कि इन हमलों के दोषी बिना सजा मिले नहीं रह पाएंगे. कश्मीर पर उनकी पार्टी की रणनीति बनाने वाले राम माधव ने कहा है कि अब एक दांत के बदले पूरा जबड़ा तोड़ देने का समय आ गया है. आज प्रधानमंत्री ने इस बात पर विचार करने के लिए एक उच्चस्तरीय बैठक बुलाई कि सरकार के सामने क्या विकल्प हैं, जबकि सरकार के पास पहले से ही सुचिन्तित विकल्पों की एक सूची तैयार होनी चाहिए थी. अधिकांश लोगों का मानना है कि गिलगित और बलूचिस्तान पर भारत के बदले रुख के बाद यह भांपने के लिए कि भारत किस सीमा तक जा सकता है, पाकिस्तान-समर्थित जैश-ए-मुहम्मद की ओर से यह हमला किया गया है.

Pakistan Lal Chowk Srinagar - Nach Uri Terrorangriff
तस्वीर: UNI

खबर है कि भारत अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान को अलग-थलग करने के लिए अभियान छेड़ेगा और उसके खिलाफ सभी सुबूत संयुक्त राष्ट्र तथा विभिन्न देशों को देगा. लेकिन इसका बहुत अधिक असर होने की आशा नहीं है क्योंकि पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद को विदेशनीति के एक अंग के रूप में इस्तेमाल करने के बारे में पूरी दुनिया अच्छी तरह से जानती है. पाकिस्तान द्वारा प्रशिक्षित और समर्थित हक्कानी गुट अमेरिकी सैनिकों की हत्या करता रहता है लेकिन फिर भी अमेरिका द्वारा पाकिस्तान को हथियार और आर्थिक मदद दिया जाना बंद नहीं होता. उधर चीन इस मुद्दे पर भी उसी का साथ देता है, दूसरे बलूचिस्तान में चीन-पाक आर्थिक कॉरिडॉर के निर्माण के कारण उसके आर्थिक हित हैं और भारत द्वारा बलूचिस्तान के बारे में दिये गए बयान उसे पाकिस्तान के साथ उसके संबंध और अधिक मजबूत ही हुए हैं.#bbig

भारत के सामने एक विकल्प पाकिस्तान के नियंत्रण वाले कश्मीर में स्थित आतंकवादी प्रशिक्षण शिविरों और पाकिस्तान सेना की चौकियों पर बिना नियंत्रण रेखा पार किए क्रूज मिसाइलों से हमले करना है. लेकिन इसमें निर्दोष नागरिकों के मारे जाने का भी खतरा है क्योंकि अचूक निशाना तो अमेरिका के मिसाइल भी अक्सर नहीं लगा पाते. दूसरे भारत के पास ऐसे विस्तृत नक्शे भी शायद नहीं हैं जिनके सहारे ऐसे हमलों को अंजाम दिया जा सके. ब्रह्मोस मिसाइल दाग कर पाकिस्तान के भीतर आतंकवादी ठिकानों पर हमला करना भी काफी जोखिम भरा है क्योंकि परमाणु हथियारों से लैस पाकिस्तान इसके जवाब में पलटवार जरूर करेगा और इससे व्यापक पैमाने पर युद्ध भड़कने का खतरा है. निर्गुट आंदोलन से दूरी बनाकर अमेरिका के पाले में जाने की मोदी सरकार की नीति से भी पाकिस्तान और चीन की नजदीकी बढ़ी है.

कश्मीर में पिछले ढाई महीने से चल रहे विरोध प्रदर्शनों और उनमें 70 से अधिक लोगों की मृत्यु और सैकड़ों के घायल होने के कारण पाकिस्तान को कश्मीर का मुद्दा सभी अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर उठाने का मौका मिल गया है. उसकी विदेश और रक्षा नीति में यूं भी नागरिक सरकार का कोई दखल नहीं होता और सेना ही उसे चलाती है. सेना भारत के खिलाफ आतंकवादी हमलों के माध्यम से परोक्ष युद्ध चलाते रहने की अपनी नीति छोड़ने वाली नहीं है. ऐसे में मोदी सरकार के सामने बहुत अधिक विकल्प नहीं हैं. जो हैं भी उनमें अपने आग उगलने वाले बयानों पर खरा उतर सकने वाले विकल्प तो कतई शामिल नहीं है.