बसेरा ढूंढते जानवर
इक्वाडोर की राजधानी किटो में उन जानवरों को बचाने के लिए बातचीत हुई जो विलुप्त होने के गंभीर खतरे में हैं, जैसे हिम तेंदुआ, शार्क, प्रवासी पक्षी और अफ्रीकी शेर. इन्हें लॉबी चाहिए.
खतरे में राजा
अफ्रीकी बब्बर शेर पहले बाल्कन देशों और मध्य पूर्व में भी मिलता था. वहां वह इंसान के साथ लड़ाई हार गया. आज यङ सिर्फ भारत और सहारा के दक्षिणी हिस्सों में मिलता है. गर्व के साथ रहने वाले इस राजा को इन दिनों जान के लाले हैं.
हिरण
साइगा हिरण ऐसे लगते हैं जैसे ये धरती के जीव नहीं हों. छोटी सी सूंड वाले ये जानवर हिमयुग जितने ही पुराने हैं. आज ये रूस, कजाकिस्तान, मंगोलिया में मिलते हैं. लेकिन शिकार के कारण इनकी संख्या लगातार कम हो रही है. ये बहुत अच्छे तैराक हैं और हर दिन करीब 120 किलोमीटर दौड़ सकते हैं.
पंख बिन मछली
चीन और जापान में शार्क मछली के फिन इतने पसंद किए जाते हैं कि मछुआरे अक्सर इन्हें काट लेते हैं और मछली को पानी में ही छोड़ देते हैं. वहां वे तड़पती हुई मर जाती हैं. इस मांस को सुरिमी या फिश एंड चिप्स नाम से बेचा जाता है. शार्क की त्वचा से पर्स भी बनाए जाते हैं.
आरी वाली मछली
आरी जैसे मुंह वाली ये आठ मीटर लंबी मछली खुद भी खतरे में है. अक्सर दूसरी मछलियों के साथ ये भी अपने दांतों के कारण जाल में फंस जाती हैं और मारी जाती हैं.
जहर के मारे गिद्ध
डिक्लोफिनेक इन पक्षियों की जान पर बन आया है. गायों, सुअरों, घोड़ों को दी जाने वाली ये दवाई गिद्धों को मार देती है. इन दवाओं वाले मांस को खाने पर ये गिद्ध किडनी फेल होने से मर जाते हैं.
खच्चर
पिछले 15 साल में इन खच्चरों की संख्या आधी रह गई है. इन्हें अक्सर बोझा ढोने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. इन्हें कजाकिस्तान के जंगलों में अब भी देखा जा सकता है.
प्लास्टिक से मुश्किल
22.5 करोड़ साल पुराना कछुआ इंसान से भी पहले धरती पर है. और क्रमिक विकास में वह बहुत अच्छे से अब तक टिका हुआ है. लेकिन अब या तो तट पर उनके अंडे चुरा लिए जाते हैं या फिर प्लास्टिक के कारण वे अपनी जान गंवा देते हैं.
हिम भालू
इनके पैर के नीचे से बर्फ पिघलती जा रही है. ये सुंदर सफेद भालू आर्कटिक के बर्फीले इलाकों में रहते हैं. धरती के बढ़ते तापमान से इनका जीवन खतरे में है.
मुश्किल में
कांटों वाली पीठ के कारण इस मछली का नाम थॉर्नबैक रे पड़ा है. अपने आकार और धीरे तैरने के कारण मछली पकड़ने के जाल में वह फंस जाती है. इसके ऊपरी पंखडे तले जाते हैं या फिर पूंछ का ऊपरी हिस्सा सुखा कर खाया जाता है.
रहने को घर नहीं
रात का यह शहजादा घर को तरसता है. अगर सूखे पेड़ गिरा दिए जाते हैं तो इस चमगादड़ के रहने की जगह खत्म हो जाएगी. पवन चक्कियों के बढ़ने और पेड़ों के कटने से इसे भारी खतरा है.