बल्बों के बदले दीवारें देंगी रोशनी
१४ दिसम्बर २०१०स्टार ट्रैक देखने वालों को याद होगा कि छत से रोशनी किस तरह आती है. भविष्य में उसी तरह से आवाज से दिए गए आदेश या स्विच को हल्का सा दबाते ही घर में रोशनी मिलने लगेगी. ऐसा करने के लिए जरूरी तकनीक ऑर्गेनिक लाइट एमिटिंग डायोड पर आधारित है, जिसे संक्षेप में ओलेड ( ओएलईडी) कहते हैं. जैसे ही इन डायोड से करंट गुजरता है वे विशेष मॉलेक्यूल का इस्तेमाल कर रोशनी देने लगते हैं.
पहले ओलेड हाल ही से बाजार में उपलब्ध हैं. वे छोटे हैं लेकिन महंगे हैं. 8 सेंटीमीटर व्यास वाले एक डिस्क की कीमत लगभग 300 डॉलर होती है. लेकिन आखेन के लेजर टेक्नोलॉजी फ्राउएनहोफर संस्थान के शोधकर्ता फिलिप्स कंपनी के साथ इन लैंपों को बड़ा और सस्ता बनाने की परियोजना पर काम कर रहे हैं. तब यह बाजार में आम लोगों के लिए भी उपलब्ध होगा.
इस समय ये लैंप इसलिए महंगे हैं कि उन्हें बनाने की प्रक्रिया काफी महंगी है.ओलेड की संरचना सैंडविच जैसी होती है. सबसे नीचे सपाट इलेक्ट्रोड होता है और उसके ऊपर कई मध्यवर्ती लेयर तथा चकमकाहट वाले पदार्थ का लेयर जिसमें ऑर्गेनिक मोलेक्यूल होता है. अंतिम लेयर दूसरा इलेक्ट्रोड लेयर होता है विशेष पदार्थ इंडियुम टिन ऑक्साइड का होता है. इन सब लेयरों को रोशनी के लिए उपलोग में लाने की प्रकिया काफी जटिल है.
नई प्रक्रिया में बहुत सारे पदार्थ का इस्तेमाल करने और उसे हटाने के बदले वैज्ञानिक सिर्फ धातु की उतनी ही मात्रा का इस्तेमाल करेंगे जितने की जरूरत है. प्रोजेक्ट मैनेजर क्रिस्टियान फेडर का कहना है कि उनकी टीम ने दिखाया है कि उनकी प्रक्रिया प्रयोगशाला में काम करती है. अगला चरण है इस प्रक्रिया को फिलिप्स के साथ औद्योगिक व्यवहार में लागू करना और प्लांट टेकनॉलॉजी का विकास करना. नई प्रक्रिया दो से तीन साल तक लागू हो जाएगी.
रिपोर्ट: एजेंसियां/महेश झा
संपादन: एस गौड़