बर्लिनाले: टेक्नीकलर के 100 साल
इस साल बर्लिन फिल्म फेस्टिवल, बर्लिनाले में टेक्नीकलर के सौ साल पूरे होने के उपलक्ष्य में एक खास सेक्शन रखा गया है. बर्लिन में होने वाले इस सालाना जलसे में इस बार टेक्नीकलर युग की 30 चुनिंदा फिल्में दिखाई जा रही हैं.
टेक्नीकलर, 100 साल पहले अमेरिका में शुरू हुई एक कंपनी है, जिसने रंगीन फिल्मों की कई नई तकनीकें विकसित कीं. 1930 के मध्य में यह फिल्मों की दुनिया में नए मानक गढ़ रहा था. 1953 तक टेक्नीकलर फॉर्मेट में कई उत्कृष्ट रचनाएं हो चुकीं थीं. 1934 में तीन रंगों में आई पहली फिल्म थी "ला कुकराचा."
1930 के दशक में एनीमेशन फिल्मों की जबरदस्त सफलता के कारण टेक्नीकलर सिस्टम खूब लोकप्रिय हुआ. टेक्नीकलर का आविष्कार करने वाले हर्बर्ट कैल्मस ने खुद मिकी माउस के जनक वॉल्ट डिज्नी के साथ काम किया. इंसानों के बजाए कार्टूनों को रंगीन करना कहीं ज्यादा आसान था. 1934 में आई ऐसी ही एक सफल फिल्म थी "फनी लिटिल बनीज."
1939 में आई "विजर्ड ऑफ ओज" को टेक्नीकलर सिस्टम का एक प्रमुख बिंदु माना जाता है. विक्टर फ्लेमिॆंग और किंग विडोर के निर्देशन में बनी इस फिल्म में रंगों का इस्तेमाल कई तरह के नाटकीय प्रभाव पैदा करने के लिए हुआ, जो दर्शकों को बेहद पसंद आया.
टेक्नीकलर मूल रूप से एक अमेरिकी आविष्कार था, जो काफी समय तक हॉलीवुड में ही फलता फूलता रहा. इसके बाद यह यूरोप और ब्रिटिश फिल्म इंडस्ट्री में भी पहुंचा. इस दौर की यादगार ब्रिटिश फिल्मों में से एक थी 1940 में बनी फैंटेसी फिल्म "थीफ ऑफ बगदाद."
1940 के मध्य तक टेक्नीकलर ने अपनी पक्की जगह बना ली थी. आज भी 1945 की नॉयर फिल्म "लीव हर टू हेवेन" के चमकीले रंग दर्शकों को लुभाते हैं. इसमें फिल्म के किरदारों की भावनाओं को खूबसूरत रंगों में ढला दिखाया गया है.
1945 की म्यूजिकल कॉमेडी "योलांडा एंड दि थीफ" को बहुत अच्छा स्वागत नहीं मिला क्योंकि फिल्म के अदाकार फ्रेड अलेस्टेयर को एक अपराधी की भूमिका में दिखाया गया था. आज इस फिल्म और इसके 15 मिनट लंबे डांस सीक्वेंस को कलर और मोशन का बेजोड़ संगम माना जाता है.
"ब्लैक नार्सिसस" नाम की ये फिल्म ब्रिटिश डायरेक्टर प्रोड्यूसर की जोड़ी ने दूसरा विश्व युद्ध खत्म होने के दो साल बाद बनाई थी. इसमें ननों के एक समूह की कहानी बताई गई है जिसने हिमालय के एक सुनसान से गांव में एक अस्पताल बनाया था. असल में पूरी फिल्म लंदन के एक स्टूडियो में शूट हुई थी.
"शी वोर अ येलो रिबन" 1949 में आई थी, जो निर्देशक जॉन फोर्ड की सबसे खूबसूरत फिल्म मानी जाती है. इस फिल्म का चित्रण प्रेडरिक रेमिंग्टन की पेंटिंग्स से प्रभावित था.
एडवेंचर फिल्मों के मामले में 1951 की "एफ्रीकन क्वीन" सबसे यादगार रही. कहानी कांगो, तंजानिया और जांबिया जैसे देशों के सीमाई इलाके में आधारित थी. इसे अफ्रीका के ही जंगलों में फिल्माया गया था.
मार्लिन मुनरो की मुख्य भूमिका वाली 1953 की फिल्म "जेंटलमेन प्रेफर ब्लॉन्ड्स" टेक्नीकलर में बनी आखिरी कुछ फिल्मों में से एक थी. इसके बाद इससे भी बेहतर तकनीकें आ गईं और टेक्नीकलर सिस्टम गायब होने लगा. 65वें बर्लिनाले में उसी युग की याद फिर ताजा की जा रही है.