अब लिंग लिखना जरूरी नहीं
३१ अक्टूबर २०१३अब तक बर्थ सर्टिफिकेट में भरने के लिए मां बाप को तुरंत ही तय करना होता था कि वे बच्चे का लिंग क्या लिखना चाहते हैं, या अगर वे उसका लिंग परिवर्तन कराएंगे तो वह क्या होगा. लेकिन अब ऐसा नहीं होगा. पहली नवंबर से लागू हो रहे कानून के अनुसार बच्चे का लिंग स्त्री या पुरुष ना होने की स्थिति में मां बाप बर्थ सर्टिफिकेट में वह ब्लॉक खाली छोड़ सकेंगे. इसका मतलब होगा बच्चा स्त्री या पुरुष किसी भी एक लिंग का नहीं है.
भारत में पासपोर्ट बनवाने के लिए भरे जाने वाले फॉर्म में स्त्री और पुरुष के अलावा एक अन्य श्रेणी का प्रावधान है. हालांकि बर्थ सर्टिफिकेट बनवाने के लिए गृह मंत्रालय की वेबसाइट पर ऑनलाइन आवेदन फॉर्म में बच्चे का लिंग लिखने के लिए स्त्री या पुरुष लिखने का ही विकल्प है कोई तीसरा विकल्प नहीं दिया गया है.
जर्मनी की ब्रेमन यूनिर्सिटी में लॉ प्रोफेसर कोंस्टांसे प्लेट कहती हैं, "यह इतिहास में पहली बार होगा कि कानून इस बात को स्वीकृति दे कि ऐसे मनुष्य भी हैं जो ना तो स्त्री ना ही पुरुष होने की श्रेणी में आते हैं." इस कानून के साथ ही ऐसे बच्चों के माता पिता से दबाव कम होने की उम्मीद की जा रही है. इससे उन्हें बच्चे के पैदा होते ही यह तय करने के लिए परेशान नहीं होना पड़ेगा कि आगे जाकर बच्चे की क्या पहचान होगी. लेकिन इस बारे में ये सवाल भी उठ रहे हैं कि बिना किसी कानूनी लैंगिक पहचान के किसी व्यक्ति के लिए समाज का हिस्सा होना क्या मुश्किल नहीं होगा?
जर्मन पासपोर्ट पर भी अभी फिलहाल पुरुष के लिए एम और स्त्री के लिए एफ लिखने का विकल्प ही मौजूद है. जर्मनी के गृह मंत्रालय के प्रवक्ता ने बताया कि अब इसके अलावा पासपोर्ट में एक तीसरी श्रेणी एक्स हुआ करेगी. किन्नरों के मानव अधिकार मामलों की जानकार प्लेट ने कहा कि अब हमारे साथ समाज में ऐसे भी लोग होंगे जिनका कोई रजिस्टर्ड लिंग नहीं होगा. यानि उन्हें पारंपरिक तौर पर किसी एक लिंग को स्वीकारने की जरूरत नहीं होगी.
आगे देखना यह होगा कि शादी जैसे कानूनों के मामले में इस कानून का क्या असर पड़ेगा. अभी यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि उस बारे में क्या कानूनी कदम उठाए जाएंगे.
विशेषज्ञों के अनुसार जर्मनी में पैदा होने वाले 1500 से 2000 में से एक बच्चा ऐसा होता है. लेकिन कानूनी जानकारों का कहना है कि यह संख्या कहीं ज्यादा है. नए कानून से इस श्रेणी में आने वाले लोगों को मजबूत पहचान मिलने में मदद मिलने की उम्मीद की जा रही है. लेकिन साथ ही डर भी है कि कहीं उनके साथ भेदभाव की घटनाएं ना बढ़ जाएं.
जर्मनी में इंटरसेक्स लोगों का समर्थन करने वाले समूह की अध्यक्ष लूसी फाइथ मानती हैं यह बेहद जरूरी है कि इन बच्चों के प्रति माता पिता, डॉक्टर और टीचर सभी पढ़े लिखे और समझदार हों. साथ ही उन्होंने कहा कि सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि इनके साथ किसी प्रकार का भेदभाव ना हो.
रिपोर्टः समरा फातिमा (एएफपी,रॉयटर्स)
संपादनः आभा मोंढे