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बदहाल है महिला कैदियों की स्थिति

३० सितम्बर २०१६

भारत में लगभग 18 हजार महिलाएं जेलों में बंद हैं. उनमें से नौ फीसदी अपने बच्चों के साथ वहां रहती हैं. सुप्रीम कोर्ट ने इस बच्चों के मौलिक अधिकारों पर फैसला दिया है लेकिन उनका पालन नहीं के बराबर हो रहा है.

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Indien Gefängnis Frauen
तस्वीर: DW/Prabhakar Mani

नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) के ताजा आंकड़ों से इसका खुलासा हुआ है. यह आंकड़े वर्ष 2014 के आखिर तक के हैं. दिलचस्प बात यह है कि जेलों में बंद कुल लोगों में से महिला कैदियों की तादाद बीते तीन दशकों के दौरान महज चार फीसदी यानी समान रही है. लगभग 1800 बच्चे भी बिना किसी कसूर के अपनी माताओं के साथ जेल में बचपन बिताने पर मजबूर हैं. वैसे तो देश में महिलाओं के लिए अलग जेल भी है. लेकिन महज 17 फीसदी यानी तीन हजार महिलाओं को ही वहां रखने की जगह है. बाकियों को विभिन्न केंद्रीय जेलों और जिला जेलों में ही अलग बैरकों में रखा जाता है. इनमें लगभग आठ सौ विदेशी महिलाएं हैं.

इंडिया स्पेंड की ओर से इस महीने जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2011 से 2014 के बीच महिला कैदियों की तादाद में चार फीसदी की दर से इजाफा हुआ. इस दौरान कुल कैदियों की तादाद नौ फीसदी बढ़ कर 3.85 लाख से 4.18 लाख तक पहुंच गई. नतीजतन जेलों में भीड़ तेजी से बढ़ी. दूसरी ओर, एनसीआरबी ने कहा है कि महिला कैदियों की तादाद के मामले में उत्तर प्रदेश (3,572) पहले नंबर पर है. उसके बाद महाराष्ट्र (1,430) और पश्चिम बंगाल (1,317) का स्थान है.

जेल में बदहाली

जेल में बंद महिला कैदियों की स्थिति बदहाल है. समय-समय पर उनके यौन शोषण की खबरें आती रहती हैं. लेकिन केंद्र या किसी राज्य सरकार ने अब तक इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया है. सबसे बड़ी समस्या तो जगह की कमी की है. मुकदमों की बढ़ती तादाद की वजह से कई मामलों में बिना सुनवाई के ही महिला कैदियों को बरसों जेल में रखा जाता है. लगभग हर जेल में कैदियों की तादाद क्षमता से ज्यादा है. राष्ट्रीय महिला आयोग अपनी एक रिपोर्ट में पहले ही इस पर गंभीर चिंता जता चुका है. लेकिन उसकी रिपोर्ट भी ठंढे बस्ते में ही पड़ी है.

लंबित मामलों की सुनवाई शीघ्र होने पर हजारों कैदियों को जेल से मुक्ति मिल सकती है. इसके लिए त्वरित अदालतों का गठन किया जा सकता है. जेल में महिलाओं के यौन शोषण पर अंकुश लगाने के लिए कोई कारगर व्यवस्था नहीं है. वहां महिला सुरक्षा कर्मचारियों की कमी से यह समस्या और गंभीर हुई है. इन महिलाओं के लिए स्वास्थ्य सुविधाएं भी नहीं के बराबर हैं. जेल में बंद ज्यादातर महिलाओं को समाज और परिवार का समर्थन नहीं मिलता. नतीजतन कई मामलों में सजा पूरी होने या जमानत मिलने के बावजूद ऐसी महिलाएं जेल से बाहर नहीं आ पातीं. जेलों में साफ-सफाई और स्नानघर जैसी सुविधाओं की भी भारी कमी है. कई जेलों में तो डेढ़ सौ कैदियों के लिए महज दो स्नानघर हैं.

Podiumsdiskussion Frauen in indischen Gefängnissen
तस्वीर: DW/J. Singh

कैदियों के बच्चे

एनसीआरबी के ताजा आंकड़ों में कहा गया है कि देश की विभिन्न जेलों में महिला कैदियों के साथ उनके 1,817 बच्चे भी रह रहे हैं. महिला कैदियों के साथ उनके बच्चों को भी जेल में रखने के विवादास्पद प्रावधान पर अक्सर विवाद होता रहता है. सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2006 में जेल में महिला कैदियों के साथ रहने वाले बच्चों की सुरक्षा व जीवनस्तर के बारे में कई दिशानिर्देश दिए थे. लेकिन अब तक शायद ही किसी जेल में उनको लागू किया गया हो. अदालत ने तब कहा था कि जेल बच्चों के पालन-पोषण के लिए मुफीद जगह नहीं है. लेकिन वह बिना किसी गलती के जेल में रहने पर मजबूर हैं. अदालत ने इन बच्चों को छह साल की उम्र तक अपनी मांओं के साथ रहने की अनुमति दी थी. उसके बाद उनको किसी सरकारी संरक्षण गृह में रखने का प्रावधान है.

सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों को जेलों में मां के साथ रहने वाले बच्चों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करने के साथ ही उनके कल्याण, सामाजिक, शैक्षणिक और सांस्कृतिक विकास की व्यवस्था करने का निर्देश दिया था. अदालत ने उनके लिए रहने, खाने, स्वास्थ्य सुविधाओं और शिक्षा की भी व्यवस्था करने को कहा था. लेकिन हाल में मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल ने देश की विभिन्न जेलों के दौरे के दौरान पाया कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का कहीं भी ठीक से पालन नहीं हो रहा है. अदालत ने संरक्षण गृह में रहने वाले छह साल से ज्यादा उम्र के बच्चों को सप्ताह में एक दिन जेल जाकर मां से मिलने का प्रावधान रखा है. लेकिन उसका पालन नहीं किया जाता. इसके अलावा जेलों में तमाम इंतजाम पुरुष कैदियों के हाथों में होने की वजह से महिला कैदियों के साथ हर जगह दोयम दर्जे का व्यवहार किया जाता है. संगठन का कहना है कि अपने कानूनी व संवैधानिक अधिकारों से अवगत नहीं होने की वजह से ज्यादातर महिलाओं के सामने शारीरिक व मानसिक शोषण सहने के अलावा कोई विकल्प नहीं है. आवाज उठाने की स्थिति में उनके साथ और बुरा बर्ताव किया जाता है.

महिला संगठनों की मांग

महिला और मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि महिला कैदियों की दशा सुधारने की दिशा में न्यायपालिका, केंद्र व राज्य सरकारों को ठोस कदम उठाना जरूरी है. इसमें गैर-सरकारी संगठनों को भी साथ लिया जा सकता है. एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2014 में हालातों व यौन उत्पीड़न से आजिज आकर 51 महिला कैदियों ने आत्महत्या कर ली थी. मुकदमों के निपटारे में होने वाली देरी और जेलों में महिला कैदियों की सुरक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं बढ़ा कर हालत सुधारी जा सकती है. इसके साथ ही महिला कैदियों के बच्चों के भविष्य को ध्यान में रखते हुए ठोस योजना बनाई जानी चाहिए ताकि वह आगे चल कर देश के बेहतर और जिम्मेदार नागरिक बन सकें.

कर्नाटक के पुलिस महानिदेशक (जेल) सत्यानारायण राव कहते हैं, "बच्चों के साथ रहने वाली महिला कैदियों को स्वच्छ और स्वास्थ्यवर्धक माहौल मुहैया कराने की दिशा में अभी काफी कुछ किया जाना है. इनमें से सबसे पहला है 38 साल पुराने जेल मैन्यूल में बदलाव." लेकिन सरकार की प्राथमिकताएं शायद कुछ और हैं.

रिपोर्टः प्रभाकर