बढ़ रहा है मैर्केल पर दबाव
२५ जुलाई २०१६हर कहीं लोकप्रिय चांसलर मैर्केल की मुस्कुराती तस्वीर पर शरणार्थी संकट के सिलसिले में बहुत सारे साए पड़े हैं. मैर्केल मस्ट गो के नारे की उसके पहले के सालों में कल्पना भी नहीं की जा सकती थी. मैर्केल ने खुद को शरणार्थियों की चांसलर के रूप में पेश किया था. इसने जर्मनों के एक हिस्से में उन्हें मान्यता दिलाई, लेकिन बहुत से दूसरे लोगों ने अविश्वास में सिर पकड़ लिया. पिछले हफ्तों में ध्रुवीकृत आवाजें कुछ थमने सी लगी थी. पश्चिम बाल्कान रास्ते के बंद होने के बाद शरणार्थियों की घटती संख्या का घरेलू बहस पर भी असर हुआ था. मीडिया में शरणार्थियों का मुद्दा नीचे चला गया और मैर्केल की पार्टी सीडीयू के लिए समर्थन फिर चढ़ने लगा.
मैर्केल की छवि
अंगेला मैर्केल के लिए अनुकूल रहा उनके और उनकी पार्टी के लिए खतरनाक अति दक्षिणपंथी पार्टी एएफडी का अंदरूनी झगड़ा. एएफडी के नेतृत्व ने दिखाया कि वे टीम के रूप में आगे बढ़ने के बदले राजनीतिक तौर पर अंतिम दम तक झगड़ना चाहते हैं. सर्वे में तुरंत उनका समर्थन गिरने लगा. पिछले हफ्तों जर्मनी में अलग अलग जगह पर हुई घटनाएं नया मोड़ दिखाती हैं.
जनमत में मैर्केल और शरणार्थी शब्दों एक जोड़ा बन गए हैं. अब चूंकि शरणार्थी फिर से नकारात्मक सुर्खियों में आ रहे हैं, मैर्केल के ऊपर दबाव फिर से बढ़ेगा. चाहे वुर्त्सबुर्ग, रॉयटलिंगेन या अंसबाख के हमले सचमुच शरणार्थियों ने किए हों या उनकी इस्लामी पृष्ठभूमि हो, अभी जांच चल रही है. बहुत से लोग जरूरी अंतर नहीं कर पाएंगे और न ही करना चाहेंगे. विदेशी, प्रवासी, शरणार्थी, जर्मन ईरानी, सबको एक समझा जाता है. इन दिनों की तरह फिर जब हिंसा की वारदात होगी चिंगारी भड़कना दूर नहीं.
एएफडी की कामयाबी
इन मतदाताओं को मानसिक समर्थन एएफडी की ओर से मिल रहा है जिनके राजनीतिक लक्ष्यों के लिए ये घटनाएं कामयाबी की सीढ़ी हैं. एएफडी के राजनीतिज्ञों के ट्विटर अकाउंट पर इस या उस रूप में पढ़ा जा सकता है, "हमने तो ये पहले ही कहा था कि अनियंत्रित आप्रवासन का मतलब खतरा है." इसकी जिम्मेदारी मुख्य रूप से मैर्केल की है जो खुली सीमाएं चाहती थीं.
जब म्यूनिख की घटना हुई तो चांसलर मैर्केल छुट्टियों में थीं. आधिकारिक तौर पर कहा गया कि उन्हें सूचनाएं दी जा रही हैं और चांसलर के रूप में वे हमेशा काम पर होती हैं. लेकिन छुट्टी में भी आराम वे शायद ही कर सकती हैं. क्योंकि जर्मनी में हिंसक वारदातों के अलावा तुर्की में सैनिक विद्रोह और उसके बाद उठाए गए कदम राष्ट्रपति एर्दोआन के साथ मैर्केल द्वारा मुश्किल से कराए गए शरणार्थी समझौते को डावांडोल हालत में ला रहे हैं.
अगले चुनाव
करीब एक साल बाद जर्मनी के संसदीय चुनाव होंगे. अंगेला मैर्केल ने अब तक साफ नहीं किया है कि वे अगले साल चुनाव लड़ेंगी या नहीं. उनका फैसला मुख्य रूप से इस बात पर निर्भर करेगा कि शरणार्थियों के मुद्दे पर क्या प्रगति होती है. पेरिस या ब्रसेल्स जैसा बड़ा आतंकी हमला मैर्केल के लिए एक और कार्यकाल को असंभव बना देगा.
और जहां तक एएफडी का सवाल है, तो उसके लिए ये सितंबर ही फैसलाकून हो सकता है. मैर्केल के प्रांत मैक्लेनबुर्ग में होने वाले चुनाव में संभव है कि एएफडी सबसे मजबूत पार्टी होकर उभरे. अभी सीडीयू के साथ अंतर काफी ज्यादा है, लेकिन यदि कोई हत्याकांड या आतंकी हमला होता है तो ये अंतर घट सकता है. इस बीच एएफडी के नेता अपने सत्ता संघर्ष को निबटाने में लगे हैं.