सुंदरबन के डूबने का खतरा
२२ फ़रवरी २०१५समुद्र के खारे पानी ने काफी पहले ही मंडल के परिवार की करीब 5 एकड़ खेती लायक जमीन को तबाह कर दिया. मंडल के पूर्वज पहले भारत के बाली द्वीप पर इस जगह धान की अच्छी खेती करते थे और तालाबों में मछली पालते थे. फूस के छप्पर वाली उनकी झोपड़ी सार्वजनिक जमीन पर बनी है. पिछले पांच सालों में बनी यह पांचवी झोपड़ी है. हर साल समुद्र का तल बढ़ने के कारण उन्हें अपना ठिकाना बदलना पड़ता है. मंडल बताते हैं, "हर साल हमें थोड़ा और अंदर की ओर खिसकना पड़ता है."
आंकड़े बताते हैं कि सुंदरबन में समुद्र स्तर विश्व औसत दर से दोगुनी दर पर बढ़ रहा है. सुंदरबन एक गहरा-डेल्टा क्षेत्र है जहां से बंगाल की खाड़ी में करीब 200 द्वीप बनते हैं. इन द्वीपों में आज भी लगभग 1.30 करोड़ गरीब भारतीय और बांग्लादेशी लोग रहते हैं. मंडल जैसे लाखों लोग बेघर हो चुके हैं और वैज्ञानिकों का अनुमान है कि अगले 15 से 25 सालों में पूरा सुंदरबन पानी के नीचे डूब सकता है.
विश्व बैंक के साथ काम करने वाले दिल्ली स्थित पर्यावरण विशेषज्ञ तापस पॉल बताते हैं कि इससे लाखों "क्लाइमेट रिफ्यूजी" इलाके को छोड़ने के लिए मजबूर हो जाएंगे. इससे भारत और बांग्लादेश दोनों सीमावर्ती देशों के लिए बड़ी मुश्किल खड़ी होगी. विश्व बैंक हर साल करोड़ों डॉलर खर्च कर सुंदरबन इलाके में नुकसान का अंदाजा लगाने और उससे निपटने की योजना बनाने की कोशिश कर रहा है. पॉल कहते हैं, "अगर सुंदरबन के सभी लोगों को उनका घर छोड़ कर जाना पड़े तो यह मानव इतिहास में आज तक की सबसे बड़ी विस्थापन की घटना होगी." अब तक ऐतिहासिक रूप से सबसे बड़ा विस्थापन 1947 में भारत और पाकिस्तान के विभाजन के समय हुआ था, जिसमें करीब एक करोड़ लोग के एक से दूसरे देश में जाकर बसे थे.
मंडल को नहीं पता कि वह कहां जाएंगे. उनके परिवार के छह सदस्य फिलहाल उन पड़ोसियों पर निर्भर हैं जिनकी जमीन अभी भी समुद्र ने नहीं ली है. ऐसे भी दिन आते हैं जब उन्हें खाने को कुछ भी नहीं मिलता. सूनी आंखों से पास ही समुद्र के दलदली किनारे को देखते मंडल कहते हैं, "पिछले दस सालों तक मैं समुद्र से लड़ता रहा, लेकिन अब सबकुछ जा चुका है."
सुंदरबन में डूबने के डर के साथ जी रहे निवासी बाघ, घड़ियालों, जहरीले सांपों और दलदली इलाकों में पाई जाने वाली खास तरह की विशालकाय मधुमक्खियों के खतरे से भी जूझते हैं. इस सबके बीच उनके लिए खेती या मछली पकड़ने जैसे जरूरी काम भी चुनौती बन चुके हैं. भारत की सीमा के करीब 50 लाख और बांग्लादेश के करीब 80 लाख लोग सुंदरबन के इस इलाके में जीने को मजबूर हैं.
आरआर/आईबी (एपी)