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बंगाल में फिर उठी अलग राज्य की मांग

प्रभाकर२३ फ़रवरी २०१६

पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनावों से ठीक पहले ग्रेटर कूचबिहार नामक अलग राज्य के गठन की मांग में शुरू हुए आंदोलन ने सरकार की मुश्किलें बढ़ा दीं. धरनों के चलते रेल सेवाएं अस्त-व्यस्त हैं और कई ट्रेनें रद्द करनी पड़ीं.

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Kombobild Narendra Modi Mamta Banerjee
तस्वीर: Getty Images/AFP/D. Sarkar/K. Frayer

ग्रेटर कूचबिहार पीपुल्स एसोसिएशन (जीसीपीए) नामक संगठन अपनी मांग में शनिवार सुबह से ही न्यू कूचबिहार स्टेशन पर रेल की पटरियों पर धरना दे रहा है. नतीजतन रेल सेवाएं अस्त-व्यस्त हैं. रेल रोको आंदोलन के कारण एक ट्रेन के कई घंटे तक कूचबिहार स्टेशन पर खड़े रहने की वजह से रविवार को एक युवा यात्री की मौत हो गई थी.

आंदोलन

जीसीपीए कूचबिहार को केंद्रशासित प्रदेश या सी श्रेणी के राज्य का दर्जा देने की मांग कर रहा है संगठन के हजारों समर्थक शनिवार सुबह से ही इस मांग में रेलवे पटरियों पर धरना दे रहे हैं. इस वजह से देश के बाकी हिस्सों से पूर्वोत्तर का रेल संपर्क लगभग ठप्प हो गया है. कुछ ट्रेनों का रास्ता बदला गया है तो कुछ को गंतव्य से पहले ही रोक दिया गया. इस बीच, कोलकाता के दौरे पर आए रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने रविवार को आंदोलनकारियों से ट्रेनों की आवाजाही ठप्प नहीं करने और रेलवे की संपत्ति को नुकसान नहीं पहुंचाने की अपील की थी. लेकिन उनकी अपील का कोई असर नहीं पड़ा है.

जीसीपीए अध्यक्ष बंशी बदन बर्मन की दलील है कि कूचबिहार के महाराजा और भारत सरकार के बीच हुए एक समझौते के तहत कूचबिहार राज्य को भारत में शामिल किया गया था. लेकिन बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री विधानचंद्र राय ने बाद में इसे एक जिले के तौर पर राज्य में शामिल किया. उन्होंने कहा कि कूचबिहार को सी दर्जे के राज्य या केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा नहीं मिलने तक आंदोलन जारी रहेगा. बर्मन मानते हैं आंदोलन से आम यात्रियों को भारी परेशानी हो रही है. लेकिन उनका कहना था कि कूचबिहार के लोग तो बीते 66 वर्षों से परेशानी झेल रहे हैं.

बर्मन ने कहा कि संगठन तीन दिनों से न्यू कूचबिहार स्टेशन पर धरना दे रहा है लेकिन अब तक कोई भी अधिकारी उनसे बातचीत के लिए नहीं आया है. रविवार को एक नई पैसेंजर ट्रेन का उद्घाटन कार्यक्रम भी रद्द कर दिया गया. यह स्थानीय लोगों के अपमान का ताजा सबूत है. बर्मन ने कहा कि जब तक केंद्रीय गृह मंत्रालय के प्रतिनिधि बातचीत के लिए यहां नहीं आते तब तक आंदोलन जारी रहेगा.

शुरूआत

जीसीपीए के बैनर तले अलग राज्य की इस मांग ने सबसे पहले सितंबर 2005 में जोरदार तरीके से सिर उठाया था. उस समय तीन लाख लोगों ने एक साथ भूख हड़ताल शुरू कर दी थी. पुलिस के लाठीचार्ज और फायरिंग के बाद पांच दिनों बाद यह हड़ताल खत्म हुई. लेकिन उस संघर्ष में पुलिसकर्मियों समेत कई लोगों की मौत हो गई थी और दर्जनों लोग घायल हुए थे. उसके बाद पुलिस के बढ़ते दबाव और तत्कालीन लेफ्टफ्रंट सरकार के कड़े रुख की वजह से संगठन धीमे चलने पर मजबूर हो गया था. जीसीपीए प्रमुख बंशी बदन बर्मन को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया था. वर्ष 2011 में उनके रिहा होने के बावजूद तेलंगाना राज्य का गठन नहीं होने तक यह आंदोलन धीमा रहा. तेलंगाना के गठन के बाद बर्मन और उनके समर्थकों ने जातीय भावनाओं को भड़का कर एक बार फिर आंदोलन की गति तेज कर दी है. जीसीपीए नेतृत्व कूचबिहार के भारत में विलय की वैधता को ही चुनौती दे रहा है.

भारत सरकार और कूचबिहार के महाराज जगद्वीपेंद्र नारायण के बीच 28 अगस्त, 1949 को हुए एक समझौते के तहत कूचबिहार राज्य का देश में विलय हुआ था. समझौते के मुताबिक, कूचबिहार को 12 सितंबर, 1949 को सी श्रेणी के राज्य का दर्जा दिया गया था. बर्मन की दलील है कि 1 जनवरी, 1950 में पश्चिम बंगाल सरकार ने समझौते के प्रावधानों के खिलाफ कूचबिहार को एक जिले के तौर पर बंगाल में शामिल किया जो अवैध है. वह कहते हैं, ‘कूचबिहार के लोग शुरू से ही इसका विरोध कर रहे हैं. हम लोग बंगाली नहीं हैं. हम कूचबिहार राज के नागरिक हैं.'

यात्री परेशान

आंदोलन के कारण कई ट्रेनों के रद्द होने और लंबी दूरी की ट्रेनों का मार्ग बदलने या उनको गंतव्य से पहले ही रोक देने की वजह से यात्रियों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. रविवार को एक ट्रेन के घंटों कूचबिहार स्टेशन पर खड़े रहने की वजह से एक युवा यात्री की तबियत बिगड़ गई और कुछ देर में ही उसकी मौत हो गई. जलपाईगुड़ी के दिब्यज्योति घोष कहते हैं, ‘मुझे रविवार को ही राजधानी एक्सप्रेस से डिब्रूगढ़ जाना था. वहां 23 फरवरी को मेरी शादी थी. लेकिन ट्रेन रद्द हो जाने की वजह से शादी की तारीख भी आगे बढ़ानी पड़ी है.' पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे के एक प्रवक्ता पार्थसारथी शील कहते हैं, ‘लंबी दूरी की कुछ ट्रेनों को दूसरे रूट से घुमा कर उनकी मंजिल तक भेजने का प्रयास किया जा रहा है.' राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि चुनावों को देखते हुए इस आंदोलन के और जोर पकड़ने का अंदेशा है.