फ्रांस में हड़ताल पड़ी मामूली सी मद्धिम
२८ अक्टूबर २०१०पखवाड़े भर से समूचे फ्रांस को पंगु बना देने वाली कर्मचारी यूनियनों की हड़ताल अब भी जारी है. विरोध प्रदर्शनों के निशाने पर चल रहे पेंशन सुधार कानून के मसौदे को राष्ट्रपति निकोला सारकोजी की सरकार संसद से पारित कराने में कामयाब रही लेकिन इसके पक्ष में माहौल बना कर जनता का गुस्सा शांत करना सरकार के लिए आसान नहीं दिखता.
सरकार के लिए राहत की मामूली सी बात यह हो सकती है कि संसद से विधेयक को हरी झंडी मिलने के बाद विरोध प्रदर्शन उम्मीद के मुताबिक उग्र नहीं हुए हैं. पिछले 24 घंटों में हड़ताल कुछ हद तक कमजोर पड़ी है. हालांकि रिटायरमेंट की उम्र 60 से बढ़ाकर 62 साल करने की सरकार की योजना पर पलीता लगाने के लिए देशव्यापी विरोध प्रदर्शन जारी है. इस दौरान देश में सड़क, रेल और हवाई यातायात अभी भी सुचारु नहीं हो पाया है.
फ्रांस की वाणिज्य मंत्री क्रिस्टीने लगार्ड ने बताया कि एक अनुमान के मुताबिक हड़ताल के कारण अर्थव्यवस्था को 20 से 40 करोड़ यूरो का प्रतिदिन नुकसान हो रहा है. इससे सबसे ज्यादा नुकसान छोटे उद्योगों को हुआ है.
राजधानी पेरिस की सड़कों पर प्रदर्शनकारी अपनी अपनी यूनियनों के झंडे बैनर के साथ मुस्तैद हैं वहीं दक्षिणी शहर मार्शिले में ढोल नगाड़ों के साथ विरोध के स्वर वातावरण में गूंज रहे हैं.
सड़कों पर उतरे लोग एक आखिरी कोशिश के रूप में सारकोजी पर इतना अधिक दबाव बनाने में जुटे हैं कि वह प्रस्तावित कानून के मसौदे पर अपने दस्तखत न करें. यूनियन लीडर जीन क्लाउड मेली ने विरोध के कुछ कमजोर पड़ने की बात स्वीकार करते हुए कहा कि इसमें भी कोई शक नहीं है कि हड़ताल मील का पत्थर तो साबित हुआ ही है और इसके दूरगामी परिणाम भी होंगे.
हड़ताल के कारण विमान सेवाओं में अभी भी 30 से 50 प्रतिशत कटौती जारी है जबकि रेल सेवा भी सामान्य होने में अभी वक्त लग सकता है. हालांकि हाईस्पीड रेल सेवाएं तुलनात्मक रूप से कम प्रभावित हैं. ऑयल इंडस्ट्री फेडरेशन के प्रमुख जां लुइ शिलांस्की ने बताया कि देश भर में मौजूद ऑयल सर्विस स्टेशनों में पांच में से बमुश्किल एक से ही आपूर्ति हो पा रही है और आरपार की यह लड़ाई अपने निर्णायक पड़ाव पर है.
गृह मंत्रालय के आकलन के मुताबिक देश भर की सड़कों पर प्रदर्शनकारियों की संख्या लगभग दो लाख रह गई है. जबकि हड़ताल के शुरू में 19 अक्टूबर को यह संख्या 4 लाख 98 हजार थी. प्रदर्शनकारियों का कहना है कि अभी विधेयक कानून की किताब में दर्ज नहीं हुआ है और सरकार कितना भी जोर लगा ले लेकिन कर्मचारियों की आवाज को दबा नहीं सकती.
रिपोर्टः एजेंसियां निर्मल
संपादनः उभ