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फोटो के लिए मारा मारी

३ अप्रैल २०१३

उत्तर प्रदेश से बहुत से लोग फिल्मों में हैं. लेकिन लखनऊ में शूटिंग हो तो सितारों को देखने के लिए आज भी भीड़ जमा हो जाती है. लेकिन जमाना बदल गया है. आज उनकी तस्वीरों को लोकर मारा मारी हो रही है.

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तस्वीर: DW

पान सिंह तोमर को राष्ट्रीय पुरस्कार की घोषणा हुई तो जश्न लखनऊ में हुआ. क्योंकि इसके निर्देशक तिगमांशु धूलिया अपनी अगली फिल्म 'बुलेट राजा' की शूटिंग के लिए पूरे लाव लश्कर के साथ पिछले करीब दो महीने से लखनऊ में मौजूद हैं. बुलेट राजा में सैफ अली खान, सोनाक्षी सिन्हा, जिमी शेरगिल जैसे सितारे हैं. देर रात तक चले इस जश्न में डेढ़ इश्किया के खालूजान यानी नसीरुद्दीन शाह, मुनिया यानी हुमा कुरैशी और बब्बन यानी अरशद वारसी भी शामिल हुए क्योंकि ये लोग भी उसी होटल में रुके हुए हैं. नहीं आ पाए तो हीरो इरफान जिन्होंने वादा किया था कि जश्न तिगमांशु के साथ लखनऊ में जरूर मनाएंगे.

डेढ़ इश्किया का निर्देशन इश्किया वाले निर्देशक अभिषेक चौबे ही कर रहे हैं. उसकी भी शूटिंग लखनऊ में चल रही है. कभी राजा महमूदाबाद के किले में तो कभी चैक या महानगर में. महमूदाबाद किले के प्रबंधक अनवर हुसैन इस शूटिंग से इतने व्यस्त हैं कि बात तक नहीं करते. सुबह बसों में भर कर पूरी टीम पहुंचती तो किले के गेट पर भीड़ जुट जाती. पर दो तीन दिन में ही उत्साह काफूर हो गया. कभी धक धक गर्ल रहीं माधुरी दीक्षित के दीदार को लोग तरस गए. पान दुकानदार से लेकर किले में रहने वाली सौ सवा सौ घरों वाली राजा साहब की रिआया तक सब मायूस. वहां रहने वाला एक युवक तनवीर कहता है, "इससे पहले भी यहां शूट हुआ है और इस बार भी दस पाबंदियां हम पर, इधर से जाओ उधर से न जाओ."

Indien Lucknow Filmdreh
तस्वीर: DW

शूटिंग का ये सिलसिला पत्रकारों-फोटोग्राफरों के लिए भी कम आफत नहीं बना हुआ है. उन्हें तो किसी भी तरह खबर भी चाहिए और फोटो भी. लेकिन तगड़े बाउन्सर्स से कौन निपटे तो नए नए तरीके निकाले जा रहे हैं. बुलेट राजा के निर्माता राहुल मित्रा ने शूटिंग सेट से एक अखबार के दफ्तर फोन करके कहा, "अपने फोटोग्राफर से कहिए कि प्लीज इस बार वो फोटो के लिए पेड़ पर न चढ़े, गिर सकता है, फोटो कर ले आकर." क्योंकि कुछ ही दिन पहले पेज थ्री के उस फोटोग्राफर को जब सिक्योरिटी ने रोक लिया तो वह पेड़ पर चढ़ गया और वहां से क्लिक कर लिया.

सोना से तो तौबा....

होटल के हर कर्मचारी की उसी दिन से सिट्टी पिट्टी गुम है जिस दिन से सोनाक्षी ने सबकी क्लास लगवा दी थी. मामला फोटो का ही था. सुबह सुबह होटल की लाबी में सोनाक्षी टहल रहीं थीं कि पपराजी बनने की ललक में घात लगाए बैठे स्थानीय अखबार का एक फोटोग्राफर उनका फोटो खींच भाग निकला. होटल के मैनेजर राहिल (बदला हुआ नाम) बताते हैं कि ऐसी मुसीबत उन्होंने अपने 18 साल की नौकरी में कभी नहीं झेली. सोनाक्षी मैम ने ऊपर तक फोन घुमा डाले कि होटल स्टाफ कोऑपरेट नहीं कर रहा, फोटोग्राफर को रोका नहीं. डयूटी मैम ने ये लगवाई कि उस फोटोग्राफर को ढूंढा जाए, वो फोटो किसी भी हाल में छपना नहीं चाहिए. बताते हैं, "अरे हर अखबार को फोन कर कर के थक गए लेकिन किसी ने नहीं कुबूला कि उसका फोटोग्राफर था. उलटे लोग पूछते कि क्या सोनाक्षी कुछ ऐसी वैसी डेस में थी"! किस्सा यहीं खत्म नहीं हुआ, बड़ी मशक्कत के बाद उस फोटोग्राफर का पता चला. फिर उसके सम्पादक से बात कर वो फोटो डिलीट करवाया, तब जाकर होटल वालों की जान में जान आई.

Indien Lucknow Filmdreh Arshad Warsi
तस्वीर: DW

लेकिन रिसेप्श्निस्ट पूर्वा खुश हैं कि उनको बालीवुड के कई सितारों से पिछले दिनों बात करने का मौका मिला. एक मैनेजर अरुण कुमार बहुत गुस्से मे हैं, "ये सब बहुत बददिमाग लोग हैं, अरे घर में रहना मुश्किल हो गया है, बीवी बच्चे माधुरी दीक्षित से मिलने के लिए रोज हाय तौबा मचाए रहते हैं और यहां का हाल ये है कि इनसे बात करना तो दूर इन्हें मन भर देख भी नहीं सकते." सोनाक्षी सिन्हा के एपिसोड के बाद तो किसी में इतनी हिम्मत ही नहीं बची है कि किसी से बात करे. सोनम जरूर खुश हैं कि उन्होंने कुछ की आरती उतारी लेकिन होटल प्रबंधन की इजाजत से.

फिल्म जैसा थियेटर

कुछ वक्त निकाल नसीरुद्दीन शाह एक दिन लखनऊ से 20 किलोमीटर दूर बाराबंकी पहुंच गए. वहां वो एक टूटी फूटी हवेली को काफी देर तक अंदर बाहर जाकर निहारते रहे.जब उनके पिता अंग्रेजों के जमाने में बाराबंकी के डिप्टी कलेक्टर थे तो नसीरुद्दीन शाह का जन्म इसी हवेली में हुआ था. नसीर भाई ने लखनऊ वालों को मायूस नहीं किया और एक शाम लिटरेरी फेस्ट में पहुंच गए और भारतेंदु नाट्य अकादमी भी जाना वो नहीं भूले जहां छात्र उनसे मिलकर विभोर हो गए. छात्रों को बताया कि एनएसडी में वे कैसे क्लास बंक किया करते थे. उन्होंने उन्हें यह भी बताया कि थियेटर भी फिल्म जैसा ही है. भावों के लिए परिस्थतियों का जानना बहुत जरूरी है.

रिपोर्ट: सुहेल वहीद, लखनऊ

संपादन: महेश झा

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