महिलाओं में फुटबॉल का बुखार
२५ मई २०१४चिली के ग्राउंड में महिला टीम की प्रैक्टिस चल रही है. सांस लेने की फुर्सत मिली तो राष्ट्रीय टीम की कप्तान डानिएला पार्दो ने कहा, "जब मैं छोटी थी, तो मेरे मुहल्ले में सिर्फ मैं ही खेलती थी. इसे महिलाओं के लिए बेहद खराब माना जाता था."
पार्दो बताती हैं कि कैसे सब कुछ बदला, "इसमें बहुत बड़ा बदलाव हुआ है. अब इसे अलग तरीके से देखा जाता है. समझा जाता है कि इससे महिलाओं को स्वतंत्रता मिलती है. अब तो मैं अपने मुहल्ले में महिलाओं की आदर्श बन गई हूं."
खास हैं लातिन अमेरिकी खिलाड़ी
दक्षिण अमेरिका की महिलाएं ज्यादा खेल रही हैं और उनके खेल की क्वालिटी भी बेहतर हुई है. फीफा ने बार बार कहा है कि भले ही उनके पास आंकड़े न हों लेकिन लातिन अमेरिकी देश की महिलाएं लगातार अच्छा कर रही हैं.
पूरी दुनिया में करीब 2.9 करोड़ महिलाएं फुटबॉल खेल रही हैं. लेकिन दक्षिण अमेरिका में उनकी खासी संख्या है. मजेदार बात है कि यह इलाका "मर्दानगी" दिखाने वाले इलाके के तौर पर जाना जाता है. इसकी शुरुआत ब्राजील में हुई लेकिन अब अर्जेंटीना, चिली, कोलंबिया और वेनेजुएला में भी यह जोर पकड़ चुका है.
कोलंबिया की महिला टीम को कोचिंग देने वाले फेलिपे टाबोर्डा का कहना है, "महिला फुटबॉल तेजी से बढ़ रहा है. अब यह एक बुखार बन चुका है."
फुटबॉल का सपना
चिली की राजधानी सांटियागो में पांच से 10 साल के आस पास की लड़कियां ग्राउंड में फुटबॉल की प्रैक्टिस कर रही हैं. पोनी टेल में बंधी उनकी चोटियां बल खा रही हैं. खावियेरा पावेस ने दो साल की उम्र में फुटबॉल खेलना शुरू किया. अब वह चिली के लिए वर्ल्ड कप जीतना चाहती है.
ब्राजील की मार्ता महिला फुटबॉल की एक बड़ी आदर्श बन चुकी हैं. पांच बार की विश्व की सर्वश्रेष्ठ महिला फुटबॉलर 28 साल की मार्ता का कहना है, "अबकी बार ब्राजील में वर्ल्ड कप हो रहा है. उसे देखने के बाद वैसा ही कुछ करने का सपना हमारा भी होगा." हालांकि दक्षिण अमेरिका की टीमों ने पुरुषों के वर्ल्ड कप नौ बार जीते हैं लेकिन महिला टीम अब तक ऐसा नहीं कर पाई है. आम तौर पर अमेरिका, जर्मनी, जापान और स्कैंडिनेवियाई देश ही महिला फुटबॉल में आगे हैं. अगला महिला फुटबॉल वर्ल्ड कप 2015 में कनाडा में होगा.
सामाजिक और आर्थिक
लातिन अमेरिका का इलाका हिंसा और बेरोजगारी की चपेट में भी है. ज्यादातर महिलाओं के लिए फुटबॉल से प्रेम उनकी प्राथमिकता सूची में काफी नीचे है. सामाजिक के साथ साथ आर्थिक बाधा भी है. राष्ट्रीय टीमें अपनी महिला खिलाड़ियों को ज्यादा पैसे नहीं देतीं. इसकी वजह से उन्हें साथ में नौकरी भी करनी पड़ती है. वेनेजुएला की खिलाड़ी युसमेरी मीको असकानियो का कहना है, "हम सिर्फ जुनून के लिए महिला फुटबॉल खेलते हैं. लोकप्रियता या पैसे के लिए नहीं."
मीडिया में भी महिला फुटबॉल कम ही कवर होता है और स्टेडियमों में आम तौर पर ज्यादा दर्शक नहीं आते. अर्जेंटीना की 23 साल की डिफेंडर एसतेफानिया बानिनी का कहना है, "दक्षिण अमेरिका में कई अच्छी खिलाड़ी हैं लेकिन कोई उन्हें नहीं जानता."
महिला टीम के कोचों का कहना है कि खिलाड़ी बहुत समर्पित भाव से खेलती हैं. चिली की कप्तान पार्दो कहती हैं, "हम इसके लिए कुछ भी छोड़ने को तैयार हैं. और बदले में हमें कई बार कुछ नहीं मिलता. लेकिन मुझे इसका अफसोस नहीं." वह दिन के वक्त एक पुरुष क्लब में प्रशासनिक काम करती हैं.
एजेए/एएम (रॉयटर्स)