1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

फर्जी तालिबान से मिले "असली" अफगान राष्ट्रपति

२६ नवम्बर २०१०

एक आम आदमी कप्तान बन कर आया, और नगर पालिका दफ्तर से सारा पैसा उठा ले गया. बर्लिन में कोएपेनिक के कप्तान की यह कहानी मशहूर है. अब अफगान राष्ट्रपति हामिद करजई के साथ भी ऐसा ही हुआ है.

https://p.dw.com/p/QJXc
यह तो फर्जी निकला !तस्वीर: AP

ब्रिटिश खुफिया सेवा के एजेंट फूले नहीं समा रहे थे कि तालिबान के एक महत्वपूर्ण नेता, मुल्ला अख्तर मोहम्मद मंसूर के साथ उनके संपर्क बने हैं, और वह अफगान सरकार के साथ बातचीत करने को तैयार है. इस वर्ष मई के महीने के बाद से उसे लाखों डॉलर दिए गए, ब्रिटिश सी130 विमान से कई बार उसे "शांति वार्ता" के लिए पाकिस्तान के क्वेटा से काबुल ले जाया गया. और यह सब उस देश की सीक्रेट सर्विस की करामात थी, जिसका फिल्मी जासूस जेम्स बॉन्ड सारी दुनिया में मशहूर है.

अब टाइम्स अखबार ने रिपोर्ट दी है कि मंसूर तालिबान के भूतपूर्व मंत्री नहीं, बल्कि क्वेटा का एक छोटा सा दुकानदार है और तालिबान का एक मामूली कमांडर है. इसी हफ्ते न्यूयार्क टाइम्स की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि अफगान सरकार के साथ गुप्त शांति वार्ता करने वाला तथाकथित तालिबान नेता फर्जी है. मंगलवार को वॉशिंगटन पोस्ट में भी रिपोर्ट दी गई थी कि दो वरिष्ठ अफगान अधिकारियों ने कहा था कि यह व्यक्ति क्वेटा में एक छोटी दुकान का मालिक है. इस बारे में पूछे जाने पर विदेश मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने कहा कि वे न तो इस खबर की पूष्टि कर सकते हैं और न ही खंडन करना चाहते हैं, जबकि राष्ट्रपति करजई का कहना था कि मंसूर नाम के किसी व्यक्ति से उनकी सरकार की कोई बातचीत नहीं हुई है.

वॉशिंगटन पोस्ट के साथ एक इंटरव्यू में अफगान राष्ट्रपति के चीफ ऑफ स्टाफ मोहम्मद उमर दाउदजाई ने कहा है कि जुलाई या अगस्त में ब्रिटिश खुफिया एजेंट मुल्ला मंसूर को करजई से मुलाकात के लिए ले आये थे. लेकिन एक अफगान अधिकारी ने पहचान लिया था कि यह शख्स फर्जी है. उन्होंने कहा कि इस घटना से साबित हो जाता है कि शांति प्रक्रिया का नेतृत्व अफगानों के हाथों में होना चाहिए. उन्होंने कहा,हमारे अंतरराष्ट्रीय साझेदारों को बहुत जल्दी उत्साहित होने की आदत छोड़नी पड़ेगी.

कंदहार में अमेरिका के प्रतिनिधि रह चुके बिल हैरिस का कहना था कि गलती सिर्फ ब्रिटेन की नहीं है. उन्होंने कहा, इतनी बड़ी बेवकूफी के लिए टीमवर्क जरूरी होता है.

रिपोर्ट: एजेंसियां/उभ

संपादन: एस गौड़

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी